Place of Rajput/Kshatriya, Viashya , Harijan In Society in Kuninda (Srughna ) Era
कुणिंद (स्रुघ्न ) युग में क्षत्रियों, वैश्यों, हरिजनों का समाज में स्थान
वैश्य
शूद्र
Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India 25/7/2015
History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur to be continued Part --151
हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास to be continued -भाग -151
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Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part - 150 हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -15-
इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
क्षत्रिय
ब्राह्मणों के बाद क्षत्रियों का समाज में स्थान था। धन , सम्पति से सम्पन इस जाति का भूमि पर प्रभुत्व था। महाभाष्य व अस्ताध्यायी में वर्णित शासक क्षत्रिय ही हैं।
ईरान से कैकेय -मद्र देस में बसे ईरानी स्त्रियां सुंदर होती थीं और क्षत्रिय इन्हे पाने के लिए विवाह करते थे या इन्हे छें ले जाते थे।
बौद्धमत से क्षत्रिय युवा प्रभावित हुए और बौद्ध मत स्वीकार करने में ये युवा विशेष उत्साह दिखते थे।
वैश्य जाति की स्थिति क्षत्रिय जाति से अधिक कम नही थी। वैश्यों का कृषि , व्यापार व गोसम्पति पर अधिकार था। इन्हे बिट कहा जाता था और आज भी गढ़वाल में सवर्णों को बिठ इसलिए कहा जाता है कि कृषि भूमि और गोसम्पति पर सवर्णों का सम्पूर्ण वर्चस्व है।
शूद्र दो तरह के थे।
अनिर्वसित शूद्र - बढ़ई , लोहार , धोबी , कोली -जुलाहा इस जाति के अंतर्गत थे। इनके छुए वर्तनों को धो कर स्वर्ण पुनः प्रयोग में ला सकते थे।
निर्वासित शूद्र - गाँवों से बाहर चंडाल और मृतप निर्वासित शूद्र कहे जाते थे जिनका छवि वर्तन को कभी भी स्वर्ण प्रयोग में नही लाते थे।
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