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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, July 14, 2015

सन 1899 ई के करीब की गढ़वाली कविता -विरह बेदना

सन 1899  ई  के करीब की गढ़वाली कविता


              ब्वार्युं विरह बेदना 
रचना --लीला नन्द कोटनाला (श्रीनगर 1846 -1926 ) 
आयी चैतर मास 
सुणा दौं मेरी ले सास -सुणा दौं मेरी ले सास 
बण बणु सबि मौळी गैने 
चौंटे मौळी गैने घास ! 
फूल फुलाड़ी रंगवाड़ी फूली गै छ 
फूली गै छ बुरांस ! 
स्वामी मेरी परदेस गैतो 
द्वी तीन होई  गेन मॉस ! 
अज्युं तईं कुछ सुणी नि भणी 
ज्यूको ह्वैगे उत्पास 
जौंका स्वामी घरु छन 
तौंकी होयुं छ बिलास !
रंग बिरंगे चादर ओढ़ी ओढ़ी 
अड़ोस पड़ोस सुहास !

इंटरनेट प्रस्तुति -भीष्म कुकरेती १३/७ /२०१५

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