सन 1899 ई के करीब की गढ़वाली कविता
ब्वार्युं विरह बेदना
ब्वार्युं विरह बेदना
रचना --लीला नन्द कोटनाला (श्रीनगर 1846 -1926 )
आयी चैतर मास
सुणा दौं मेरी ले सास -सुणा दौं मेरी ले सास
बण बणु सबि मौळी गैने
चौंटे मौळी गैने घास !
फूल फुलाड़ी रंगवाड़ी फूली गै छ
फूली गै छ बुरांस !
स्वामी मेरी परदेस गैतो
द्वी तीन होई गेन मॉस !
अज्युं तईं कुछ सुणी नि भणी
ज्यूको ह्वैगे उत्पास
जौंका स्वामी घरु छन
तौंकी होयुं छ बिलास !
रंग बिरंगे चादर ओढ़ी ओढ़ी
अड़ोस पड़ोस सुहास !
इंटरनेट प्रस्तुति -भीष्म कुकरेती १३/७ /२०१५
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