उत्तराखंडी ई-पत्रिका की गतिविधियाँ ई-मेल पर

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Tuesday, July 21, 2015

हास्य मा ट्रेजिडी नि ह्वावो तो हास्य व्यंग्य पैदा ह्वेइ नि सकद -हरीश जुयाल

 हास्य व्यंग्य कवि ,  साहित्यकार हरीश जुयाल से भीष्म कुकरेती की मोबाइल्या भेंट 


हरीश जुयाल आज गढ़वाली साहित्यकारों मादे सबसे अधिक पाठकों प्रथम पसंद  छन।  आज का जमाना मा कवि सम्मेलनों मा हरीश जुयाल मंच म ह्वावनत  हौल वन्स मोर वन्स से गुंजणु रौंद।  भौत सा प्रवासी युवा अर बुड्योंंन जुयाल की कृति जन कि खिकचाट , आदि से गढ़वळि बंचण शुरू कार। मीन मोबाईल से हरीश जुयाल से युवा साहित्यकारों प्रेरणा वास्ता हरेश जुयाल से हास्य रचणो   तकनीक पर छ्वीं लगैन।

भीष्म कुकरेती - जुयाल जी चूँकि मोबाइल मा बात करणा छंवां तो सीधा विषय पर ऐ जाँदा। 
हरीश  जुयाल -जी आप तो स्वयं हास्य व्यंग्य लिख्दा फिर मै से हास्य रचना तकनीक पुछणा छंवां ?
भीष्म कुकरेती -हौंस , हास्य, हंसदारी साहित्य मा तो तुम ही सम्राट छंवां तो आप ही हास्य पैदा करणो तकनीक बतै सकदां। 
 हरीश  जुयाल -आभार।  पूछा प्रश्न।  कोशिस करुल कि आप सब्युं तै संतोषप्रद जबाब दे सकुं। 
भीष्म कुकरेती - साहित्य मा हास्य पैदा करणो पैली आवश्यकता क्या च ?
हरीश  जुयाल -ट्रेजिडी हास्य पैदा करणै पैली शर्त च। 
भीष्म कुकरेती -ट्रेजिडी ?
 हरीश  जुयाल -जी ट्रेजिडी , बिडंबना , दुःख ही तो हंसी की माता छन।  बिडम्ब्नाओं, बिसंगीतियों , बेबसी से ही असली हास्य पैदा हूंद।  जोक्स वी अधिक पॉपुलर हूंद जैमा अधिकतम ट्रेजिडी ह्वावो। ब्वारी मेरी कच्याती है , खुट लछयाती है मा हंसदेरी भावना च किन्तु ट्रेजिडी से ही पैदा ह्वे। 
भीष्म कुकरेती -त्रासदी  का बाद ?
 हरीश  जुयाल - अनपेक्षित  शब्दों , कहावतों , व्यक्तियों द्वारा अतिक्रमण से अफिक हास्य पैदा ह्वे जांद। पाठ्कुं /सुणदेरुं तैं शौक /धक्का लगण चयेंद। 
भीष्म कुकरेती -वो जन आपकी   कविता माता ब्रैंडी मा  आपन  अजीब उपमा  से हास्य पैदा कार -
      
माता ब्रांडी ,पिता ओल्डमौंक  
तीन लोक तारिणी  , थ्री ऐक्स डागिणी , लाल नागिणी     
 हरीश  जुयाल -जी हाँ
भीष्म कुकरेती -तीसरी तकनीक ?
हरीश  जुयाल - मान्य मान्यताओं या चरित्र का विरुद्ध शब्द /वाक्य इस्तेमाल करण। उलटवासी जन कि नारंगी को रंगी कहे। या अमिताभ बच्चन तै जनानी वाज दे दिए जावो। 
भीष्म कुकरेती -जी जन स्व डंडरियाल जीकि कविता "म्यार गढ़वाल" कविता  भाल मा -
यखै  (गढवळै )संस्कृति---: गिंदडु , भुज्यलु , ग्यगडु , गड्याळ
सांस्कृतिक सम्मेलन--- :अठवाड़
महान बलि--- : नारायण बली
 हरीश  जुयाल -हाँ यी पूरी कविता मा हरेक पद मा महाकविन मान्यताओं से सर्वथा विरुद्ध बात बोली। अर हास्य बि पैदा ह्वे तो व्यंग्य बि।
भीष्म कुकरेती -चौथो सूत्र ?
 हरीश  जुयाल - कालभ्रम पैदा करण।
भीष्म कुकरेती -कालभ्रम ?
 हरीश  जुयाल -हाँ आज का समय मा श्रवण कुमार जन व्यवहार से बि हंसी अर व्यंग्य पैदा ह्वे जान्द। जन कि श्रवण कुमारो ब्वे बुबाओं तै चश्मा पैराओ जावो।
भीष्म कुकरेती -पंचौं  सूत्र ?
हरीश  जुयाल -असफलता , शर्मिन्दिगी , कुशलताहीनता , लज्जा आदि वर्णन से हास्य -व्यंग्य पैदा ह्वे जांद अर यी सब ट्रेजिडी ही छन। 
भीष्म कुकरेती -छटों ?
 हरीश  जुयाल - नासमझी , बात तै उलटा समजण या गलतफहमी से बि हास्य पैदा करे जांद।
भीष्म कुकरेती -जी।  हौर ?
 हरीश  जुयाल -सस्ती भावनाओं से खासकर नाटकों अर फिल्मुं माँ हास्य पैदा करे जयांद। 
भीष्म कुकरेती -और ?
 हरीश  जुयाल -जंगळीपन  ,  निरर्थकता , बिसंगति , अति कल्पना जन कि नया लोक की कल्पना , से बि हास्य रस पैदा हूंद।
भीष्म कुकरेती -जी हौर सूत्र ?
हरीश  जुयाल -पागलपन को विकास याने जोकर पन मा वृद्धि। 
भीष्म कुकरेती - हौर ?
 हरीश  जुयाल -पैरोडी से तो भौत ही कामक हास्य रचना ह्वे सकदन
भीष्म कुकरेती -आपन तो भौत सा प्रयोग पैरोडी मा कौरिन जन कि विद्यार्थी कविता एक प्रसिद्ध श्लोकै पैरोडी च।

मैच चेष्टा ब्वगठ्या  ध्यानम , सुंगर निद्रा तथैव 
डिग्री  हारी,  किताब त्यागी , विद्यार्थी पंच  लक्षणम
हरीश जुयाल -जी
भीष्म कुकरेती -धन्यवाद हरीश जी आपन युवा पीढ़ी तै हास्य रचणै  का गुर बतैन
हरीश जुयाल - जुगराज रयाँ।  हास्य कवि की गाणी -मि कैको काम तो औं ! 

@ भीष्म कुकरेती , 22 /7 /2015 

No comments:

Post a Comment

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments