Rural Life in Haridwar, Bijnor, Saharanpur in Kuninda Period (Srughna period)
स्रुघ्न /कुणिंद युग में हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर का ग्रामीण जीवन
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part - 145
Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India 20/7/2015
History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur to be continued Part --146
हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास to be continued -भाग -146
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स्रुघ्न /कुणिंद युग में हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर का ग्रामीण जीवन
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part - 145
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -145
इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
ग्रामीण जीवन
गाँव
- पाणिनि व /पतंजलि ने अच्छा खासा भर्मण किया था। पतंजलि का अधिकांश जीवन
गांव खेड़ों में बीता था। पाणिनि ने भरद्वाज राज के दो गाँवों -कृकर्ण व
पर्ण गाँवों का वर्णन किया है (अष्टाध्यायी ४/२/१४५ ) तो पतंजलि ने ऐणीक व
सौषुक गाँवों का वर्णन किया है (महाभाष्य ) . पाणनि के अष्टाध्यायी
(४/२/१० ) में मारडेयपुर का वर्णन है जिसे बिजनौर का मंडावर स्थान माना
जाता है।
ग्रामीण मकान
गांवों
में मकान मिटटी पत्थर से बनाये जाते थे , भारहुत स्तूप से अंदाज लगाया जा
सकता है कि मकानों में सभा (तिबारी ) बनाने का रिवाज था।
कुणिंद काल में गृह सामग्री
घरों
में बिछौने व आसान होते थे। तख्ते व खाट का प्रयोग भी होता था
(अग्निहोत्री , पतञ्जलिकालीन भारत ) . जो बिछौना नही बना सकते थे फूस के
बिछौने प्रयोग करते थे।
साधारण जन मिटटी के व्रतं उपयोग में लाते थे
डा डबराल लिखते हैं - स्रुघ्न , मायापुर , मोरध्वज और कोटद्वार में मिटटी के अनेक वर्तन मिले हैं।
डा
डबराल को लालढांग (गढ़वाल, हरिद्वार , बिजनौर की हद का क्षेत्र ) के
पाण्डुवाला में प्राचीन कालीन मिटटी के वर्तन मिले थे (उखण्ड का इतिहास बहग
३ , पृष्ठ -१८८ -१८९ ) .
सम्पन परिवार कांसे के वर्तन प्रयोग करते थे।
दही दूध आदि द्रवों के लिए लकड़ी या मिट्टी के वर्तन प्रयोग में आते थे (अग्निहोत्री )
अन्नादि
रखने के लिए बाँस से बने छोटे बड़े पात्र प्रयोग होते थे जिन्हे मिट्टी से
लीपा जाता था। कुछ पत्रों को बिना ढक्क्न खोले अनाज निकालने के लिए नीचे की
ओर छेड़ होता था। डबराल को ऐसे पात्र भी मिले थे।
लौह
उपकरणों में खंग , खुकरी , परशु , कुल्हाड़ी डराती , हंसिया , फावड़े , सरौते
आदि प्रयोग होते थे। मैदानी भागों में चोरी -डाका सामान्य बात थी तो घरों
में हथियार रखना आवश्यक था।
Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India 20/7/2015
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