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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, July 26, 2015

माणा की बिरही (गढ़वाली मेघदूत ) (1950 से पहले की कविता )

रचना - सदानंद जखमोला (1901 -1977, चंडा , शीला पट्टी , पौड़ी गढ़वाल )
इंटरनेट प्रस्तुति --भीष्म कुकरेती

रांसो सी या हुड़कि बजदो ताल कांसो कंस्याळ 
नन्ना भै की खितकणी जसी भौण सी माळुसै की 
सौंजड्या की मलकणि जसी स्यूंद सी ह्यून्द बौ की 
बिळमें दींदा बिकळ मन कु बौळ बगदी छिचाड़ी
जैंकि होली कुरळी मनमा जैकु घंगतोळ नाड्यूँ 
झूली का जो भंबड़ि पगळी डांडि ढळकी सिं आणी 
आंशू जेँ का पलक पकड़ी खैरी लांदा झुमैला 
स्या होली मयळि मुखड़ी मेरी रुपए निशाणी।

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