जिंदा गढ़वळि साहित्यकारों हंत्या पुजै
चबोड़ -चखन्यौ --भीष्म कुकरेती
पुछेर (थाळि माँगक पील चौंळ सुंगद ) - ओम नमो गुरु को आदेस .... आप पौड़ी बिटेन खबर सार का सम्पादक विमल नेगी छन ?
विमल नेगी - जी माराज
पुछेर, बक्की ( घुण्ड हिलैक) - आप पर भगवती प्रसाद नौटियाल जीक हंत्या लगीं च.
विमल नेगी - पण माराज मी ह्वाई नेगी अर भगवती प्रसाद जी ह्वाई नौटियाल. अर हंत्या त परिवारौ लोगूँ आन्द
पुछेर, बक्की - आप पर साहित्यिक हंत्या लगीं च. आप सौब लोग साहित्यिक कुटम का छंवां
विमल नेगी - पण माराज हंत्या त मोर्याँ लोगूँ आन्द. अपण नौटियाल जी त क्या सुन्दर छन , बिलकुल तंदुरस्त छन . अचला नन्द जीक दगड गढवाली शब्दकोश प्रकाशन कि तैयारी करणा छन. पण माराज यि नै किस्मौ हंत्या कैन पुजण . कख छन जागरी जु ज़िंदा मनिखौ हंत्या पूजन?
पुछेर, बक्की - या कळगुगि हंत्या च. जाओ गढवाल भवन मा जाओ उख ज़िंदा गढ़वळि साहित्यकारों हंत्या पूजै हुणि च.
[ विमल नेगी क गढ़वाल भवन क तर्फां जाण ]
विमल नेगी- चलो उना इ जये जाओ जख ज़िंदा साहित्यकारों हंत्या पूजै च
[गढ़वाल भवन को चौक मा भीड़ लगिं च ]
एक दर्शक - यि कनफणि सि हंत्या घड्यळ उरयूँ च .
हैंको दर्शक - हाँ भै हंत्या ज़िंदा मनिखों अर जागरी छन भग्यान स्वर्गवासी लोग
तिसरु दर्शक - हाँ सि द्याखो ना जागरी छन स्व. अबोध बंधु बहुगुणा अर थाळि बजौण वाळ छन गोविन्द चातक अर भौण पुजण वाळु मा छन डा. हरि दत्त भट्ट शैलेश, डा. शिवा नन्द नौटियाल आदि आदि सौब भग्यान हुंयाँ छन.
अबोध बंधु बहुगुणा डौञरु ब्जान्दन अर डा. गोविन्द चातक थाळि छणकांदन
अबोध बंधु बहुगुणा - भै जै जै तै डौर लगदि ह्वाऊ या आलोचना सहन नि करी सकदा ह्वावन ओ भैर चली जवान . आज दुनिया मा पैलि दै ज़िंदा लोगूँ हंत्या पुजै हुणि च अर हम सौब जागरी अर भौणेर स्वर्गवासी छंवां.
[कुछ लोग भैर चली जान्दन ]
अबोध बंधु बहुगुणा --
ओ ध्यान जागि जा
गरीबी का मरयाँ गढवाली साहित्यकार को ध्यान जागि जा
डा. हरि दत्त भट्ट शैलेश, डा. शिवा नन्द नौटियाल आदि आदि (भौण पुजदन ) -ओ ध्यान जागि जा
अबोध बंधु बहुगुणा -- ओ अपण बाड़ी पळयो खैकी भाषा सेवा का भड़ को ध्यान जागि जा
डा. हरि दत्त भट्ट शैलेश, डा. शिवा नन्द नौटियाल आदि आदि (भौण पुजदन ) -भाषा सेवा का भड़ को ध्यान जागि जा
अबोध बंधु बहुगुणा --वो प्रकाशक का थिन्च्याँ गढवळी साहित्यकार को ध्यान जागि जा
डा. हरि दत्त भट्ट शैलेश, डा. शिवा नन्द नौटियाल आदि आदि (भौण पुजदन ) - ओ गढवळी साहित्यकार को ध्यान जागि जा
अबोध बंधु बहुगुणा -- ओ सरकारी अवहेलना का मरयां , पिट्यां साहित्यकार को ध्यान जागि जा
डा. हरि दत्त भट्ट शैलेश, डा. शिवा नन्द नौटियाल आदि आदि (भौण पुजदन ) - मरयां , पिट्यां साहित्यकार को ध्यान जागि जा
अबोध बंधु बहुगुणा -- ओ अपणो इ समाज से तिरयां, दुतकर्याँ गढवळी साहित्यकार को ध्यान जागि जा
डा. हरि दत्त भट्ट शैलेश, डा. शिवा नन्द नौटियाल आदि आदि (भौण पुजदन ) -तिरयां, दुतकर्याँ साहित्यकार को ध्यान जागि जा
अबोध अबन्धु बहुगुणा - हिंदी , अंग्रेजी की धौंस का रुवयां गढवळी साहित्यकार को ध्यान जागि जा
डा. हरि दत्त भट्ट शैलेश, डा. शिवा नन्द नौटियाल आदि आदि (भौण पुजदन ) -धौंस का रुवयां गढवळी साहित्यकार को ध्यान जागि जा
अबोध बंधु बहुगुणा (जोर से ) -- ओ भाषा संस्थान को अनुदान जागि जा
डा. हरि दत्त भट्ट शैलेश, डा. शिवा नन्द नौटियाल आदि आदि (भौण पुजदन ) - अनुदान जागि जा
अबोध बंधु बहुगुणा (हौर जोर से )- संस्कृति विभाग कि कृपा जागि जा
डा. हरि दत्त भट्ट शैलेश, डा. शिवा नन्द नौटियाल आदि आदि (भौण पुजदन ) - कृपा जागि जा , कृपा जागि, जागि जा
अबोध - हाँ त मेरा सुणदेरा ! अब जागर कथा चातक जी अर नौटियाल जी सुणाला
गोविन्द चातक - ओ जैन्तो बार मा अभिमन्यु रुपी गढ़वळि भाषा तै मारणो चक्र व्यूह रच्यूं च
भौणेर - व्यूह रच्युं च,
चातक - अभिमन्यु का समणि कौरवों का क्वी भड़ नि टिक साकू
भौणेर -क्वी भड़ नि टिक साकू
शिवानन्द नौटियाल - तब जैन्तो बार मा बाळा अभिमन्यु तै सात जोधाउं न मारी दे
एक पर हंत्या आई - (वै तै धुपण सुंगये जाणु च . ) ये दिदाओं . वो कु कु जोधा छ्या जौन इकदगड़ी अभिमन्यु मारे ?
विश्वम्बर चंदोला - पैलो जोधा छयो ब्रिटिश राजशाही जैन गढवाली रुपी अभिमन्यु की साँस रोकी.
भौणेर - गढ़वळि कि साँस रोकी
सदानंद कुकरेती - अंग्रेजी की धौंस दुसरो जोधा छयो जैन गढ़वळि कि मौणि मड़काई
भौणेर -गढ़वळि कि मौणि मड़काई
शिव नारायण सिंग बिष्ट - तिसरो जोधा भारतीय सरकार न भंयकर रूप मा हिंदी का बाण गढ़वळि कि छाती मा मारिना
भौणेर -गढ़वळि कि छाती मा बाण मारिना
भजन सिंग सिंग - चौथो जोधा छयो उत्तर प्रदेश को शासन तैन गढ़वळि का हथ खुट तोड़ीन
भौणेर -गढ़वळि का हथ खुट तोड़ीन
हरि दत्त भट्ट शैलेश- पंचों जोधा छयो उत्तराखंड शासन जैन गढ़वळि का घुण्ड मुंड फोड़ीन
भौणेर -गढ़वळि का घुण्ड मुंड फोड़ीन
सबि [एक दगड़ी ]- अर सातों जोधा छयो गढ़वाली समाज जैन गढ़वळि भाषा तै तिराई , भगाई, लत्यायी
सबी [एक दगड़ी ] औ इन मा गढ़वळी रुपी अभिमन्यु मारे ग्याई
गढ़वळी रुपी अभिमन्यु मारे ग्याई
भौणेर - अपडो न अपड़ो तै लात मारी
केशव अनुरागी - ये दिदा भिलन्कार पोड़ी गे, दैसत पोड़ी गे. कुंती बुल्दी बल कनो बाळि उमर मा अपणो न इ अपण तै मारि .
[इथगा मा दर्शक दीर्घा बिटेन एक दर्शक पर हंत्या आई ]
अबोध बंधु बहुगुणा - ये पौन माराज अपणो घौर च कैको नुकसान ना करी . तेरी पूजा होली. त्वे तै से प्रशंशा पत्र कि बळि द्योला मानि जा पौन दिबता ..
भौणेर - मानि जा पौन दिबता .
अबोध बंधु बहुगुणा - अपणो नाम बथा, अपणो कुल बथा, अपणो लालसा बथा . तेरी जळकटे होली .
भौणेर -पौन दिबता अपणो नाम बथा, अपणो लालसा बथा
जीत सिंग नेगी - मी जीत सिंग नेगी छौं . नई नई कज्याण्यु बिगरौ मा जन बुल्यां सौब में बिसरी गेन . म्यरा कैसेट नी छन त क्या मी गितांग नि छौं / क्या इतियास मै से यि पूछल बल मीन इथगा गीत लेखिन अर फिर गैबि छन पण चूंकि मेरा नया ज़माना का हिसाब से कैसेट नि ऐन त मि गितांग इ नि छौं ?
भजन सिंग सिंग - भुला जीत सिंग ! जब तलक ये संसार मा सूरज रालो त्यरा नाम गढ़वळी संसार मा रालों . धष्माना जी अर तुम इ वो जोधा छंवां जौंका रिकोर्ड पैलि बार रिकोर्ड ह्वेन पौन दिबता मानि जा
भौणेर - जब तलक सूरज रालो जीत सिंग जीको नाम गढ़वळी संसार मा रालों
दर्शक दीर्घा से बालेन्दु बडोला को पौन - होई होई मोरि ग्यों मोरि गयौं . मि बालेन्दु बडोला छौं . क्वी सुणदेर नी च, क्वी पूछंदेर नी च.
भौणेर -गढ़वाली भाषा थौळ मा क्वी सुणदेर नी च, क्वी पूछंदेर नी च
भौणेर - क्वी सुणदेर नी च, क्वी पूछंदेर नी च
भौणेर - क्वी पूछंदेर नी च
डंडरियाल भौणेर - ओ दिदा बालेन्दु ! इन कठोर बचन ना बोल. , भुला तन ना बोल
भौणेर - भुला कठोर बचन ना बोल
बालेन्दु कु पौन - ओ जब भीष्म कुकरेती तै “खबर सार” मा एक ना द्वी दफैं पूछे गे. ऊं पर संदेह करे गे कि तुमन सची इथगा ल्याख त मेरो क्या हाल होला
भौणेर -त मेरो क्या हाल होला , त मेरो क्या हाल होला
महावीर गैरोला भौणेर - ये पौन दिवता इन क्या होई ग्याई जु तू पौन रूप मा आई गेयी
भौणेर -पौन रूप मा आई गेयी
बालेन्दु बडोला कु पौन - खबर सार मा भीष्म कुकरेती भगार लगाये गे बल भीष्म कुकरेती झूट बोलणु च कि वैन बारा सौ तेरा सौ से जादा लेख लिखेन .
भौणेर -बारा सौ तेरा सौ से जादा लेख लिखेन
बालेन्दु बडोला - अर वो बि इलै कि भीष्म कुकरेती क क्वी किताब नी छपी.
भौणेर-बारा सौ तेरा सौ से जादा लेखुं क बाद बि क्वी किताब नी छपी. क्वी किताब नी छपी
डंडरियाल भौणेर - पण भुला या त कुकरेती कि परेशानी च
भौणेर-कुकरेती कि परेशानी च , तेरी परेशानी नी च
बालेन्दु बडोला कु पौन [डौञड्या नरसिंग का विकराळ रूप मा ] - फूं , फूं ,फूं फ्वां ,फूं फ्वां
शिव नारायण सिंग बिष्ट - ये पौन माराज अपनों भेष मा आ .सांत ह्व़े जा माराज
भौणेर- औ औ सांत ह्व़े जा माराज , अपणो मिजाज मा आओ माराज .
शिव नारायण सिंग बिष्ट -तुमारि ल़ाळसा क्याच माराज
बालेन्दु बडोला कु पौन- मीन बि पचास से बिंडी कथा लेखिन, पत्रिकाओं मा छपैन
भौणेर-पचास से बिंडी कथा लेखिन
भौणेर- पत्रिकाओं मा छपैन
बालेन्दु बडोला कु पौन- अर अब नरेंद्र कठैत सरीखा युवा जोधा मै से सवाल कारल कि मैन क्या लेखी ? अर मेरो लिख्युं पर संदेह कारल त मै पर क्या बीतली !
भौणेर- इथगा लिख्युं पर संदेह कारलु
भौणेर- मै पर क्या बीतली ! जिकुड़ी जौळळि
भौणेर-जिकुड़ी जौळळि
जबर सिंग कैंतुरा, मोहन लाल ढौंडियाल अर ललित केशवान का पौन नाचण मिसे गेन
जबर सिंग कैंतुरा - मि जबर सिंग कैंतुरा छौं अर मेरी किताब नी छपीं त क्या मि गढ़वळि कथाकार नि छौं ?
मोहन लाल ढौंडियाल - मीन बि कथा पत्रिकाओं मा छपाईन .पण किताब नि आई
भौणेर- अपड़ो न अपड़ो तै मार . बथा केशवान जी क्या बिपदा च ?
केशवान कु पौन - मेरी बि कथा छपीं छ्न. पण किताब क्वी नि छपी
भौणेर- औ औ किताब क्वी नि छपी
केशवान - कठैत सरीखा मै तै पूछल कि मीन कुछ नि ल्याख त मै पर क्या बीतली ?
भौणेर- औ औ मै पर क्या बीतली ?
अर्जुन सिंग गुसाईं भौणेर-मि अर्जुन सिंग गुसाई भर्वस दिलांदु बल गढ़वळि कथाओं मा केशवान को नाम रालो
भौणेर- औ औ कथाओं मा केशवान को नाम रालो
केशवान (रुंद रूंद ) - ना मेरी क्वी किताब छप, नाइ इ कथा मेरा पास छन
भौणेर- औ औ नाइ इ कथा मेरा पास छन
केशवान ( भाकोरा भाकोरिक रूंद ) - अपण कठैत सरीखा क्वी नवाड़ी भड़ शक्क कारल त क्या होलू ?
भौणेर- औ औ नवाड़ी भड़ शक्क कारल त क्या होलू ?
अर्जुन सिंग गुसाईं - कवा ककड़ान्दन ढाकरी चलदा रौंदन
भौणेर- औ औ कवा ककड़ान्दन ढाकरी चलदा रौंदन
भजन सिंग सिंग -- ये कथाकारों सांत ह्व़े जाओ. किताब छप या ना छप तुमारो मिळवाग क बड़ी बडै होलि
भौणेर- औ औ किताब छप या ना छप तुमारो मिळवाग क बडै होलि
भौणेर- कठैत की बात से याद आँदी बल अपड़ो न अपड़ो तै मार .
शिव नारायण सिंग बिष्ट - माध्यम बदलदा रौंदन पण मिळवाग त मिळवाग होंद. माध्यम क्वी बि ह्वाओ अंशदान त अंशदान होंद.
भौणेर- कठैत की बात से याद आँदी बल अपड़ो न अपड़ो तै मार .
अबोध बंधु बहुगुणा - सांत ह्व़े जाओ ये सौब पश्वा माराज
भौणेर- कठैत की बात से याद आँदी बल अपड़ो न अपड़ो तै मार .
जय लाल वर्मा ---आधुनिक गढ़वाली काव्य तू जाग . त्यरो ध्यान जागी जा
आधुनिक गढ़वाली काव्य का भौं भौं ब्युंत तू जाग
आधुनिक गढ़वाली कथा तू जाग
आधुनिक गढ़वाली नाटक तू जाग
आधुनिक गढ़वाली समीक्षा तू जाग
आधुनिक गढ़वाली व्यंग्य तू जाग
आधुनिक गढ़वाली निबंध तू जाग
आधुनिक गढ़वाली साहित्य का भौं भौं ब्युंत तू जाग
भौणेर - साहित्य का सबि ब्युंत जाग , युंका ध्यान जागि जा
गुणा नंद जुयाल - प्रकट ह्व़े जान, प्रकट ह्व़े जान भौंभौं किस्मौ का ब्युंत प्रकट ह्व़े जान,
भौणेर - औ औ भौंभौं किस्मौ का ब्युंत प्रकट ह्व़े जान,
मदन डुकलाण कु पौन - मै छयो मेरा दामी निंदरा भुल्युं
अर मेरा दामी मै छयो सियूँ
झलकारा बेडशीट , झलकारा कौट
अर मेरा दामी तुइन लगाए पराज
भौणेर - औ औ अर मेरा दामी तुइन लगाए पराज
तारा दत्त गैरोला - प्रकट ह्व़े जैन , प्रकट ह्व़े जैन , सम्पादकीय ब्युंत प्रकट ह्व़े जैन
भौणेर - औ औ सम्पादकीय ब्युंत प्रकट ह्व़े जैन
ललिता वैष्णव - संपादकों का भड़पन तू जाग
जाग जाग रे संपादकों का निस्वार्थ सेवा तू जाग
पुंगड़ी पाटळि बेचीं , लौड़ गौड़ नि देखी ,
हे संपादको का त्याग तू जाग
भौणेर - औ औ अपड़ो ना अपड़ो तै मारी
अलग भौण का भौणेर - औ औ हे संपादको का त्याग तू जाग
अर्जुन सिंग गुसाईं - धाद का ध्यान सौंजा
चिट्ठी पत्री को ध्यान सौंजा,
गढ़ ऐना को ध्यान सौंजा,
अन्ज्वाळ को ध्यान सौंजा,
बुरांस को ध्यान सौंजा
गढ़वळी धाई को ध्यान सौंजा
रन्त रैबार को ध्यान सौंजा
खबर सार को ध्यान सौंजा
भौणेर - आजक सबि गढवळि पत्रिकाओं क ध्यान सौंजा
भौणेर - आज का सबि संपादकों का ध्यान सौंजा
दामोदर प्रसाद थपलियाल - हिंदी की आंचलिक पत्रिकाएं जु गढवळी तै मजबूत करणा छन कु ध्यान सौंजा
शिखरों के गरजते स्वर को ध्यान सौंजा
पराज को ध्यान सौंजा
शैलवाणी को ध्यान सौंजा
गढ़ जागर को ध्यान सौंजा
अर्जुन सिंग गुसाईं - हे ज़िंदा पितरों ! कैको नाम रै गे हो त माफ़ कर्याँ माराज
भौणेर - औ औ ज़िंदा पितरों माफ़ कर्याँ माराज
बिगळयाँ भौण का भौणेर - कठैत की बात से याद औंद बल अपड़ो न अपड़ो तै मार .
मदन डुकलाण कु पौन - कु सुणलु मेरी बात ?
भौणेर - औ औ कु सुणलु मेरी बात ?
जय कृष्ण उनियाल - मि फ्यूंळी पत्रिका का कु सम्पादक जय कृष्ण उनियाल सुणलु तेरी बात
लोकेश नवानी को पौन (झिंग्री लेक )- धाद कु मि लोकेश . कु सुणलु मेरी बात ?
दामोदर थपलियाल - मि रान्को कु सम्पादक दामोदर थपलियाल सुणलु तेरी बात
इश्वरी प्रसाद उनियाल कु पौन - मि पैलो दैनिक गढ़ ऐना अर रंत रैबार कु सम्पादक इश्वरी प्रसाद उनियाल छौं. कु सुणलु मेरी बात ?
सकुंत जोशी - मी रैबार कु सकुंत जोशी छौं मि सुणलु तेरी बात
पूरण पंत - मि गढ़वाली धाई कु सम्पादक पूरण पंत .कु सुणलु मेरी बात ?
सतेश्वर आजाद - मि मैती कु सम्पादक सतेस्वर आजाद . मि सुणलु तेरी बात
भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार .
सदानंद कुकरेती - विशाल कीर्ति की जय हो . मि सबि संपादको तर्फान सदानंद कुकरेती आपसे अरज करदो कि आप तैं क्या दुःख च . आपकी क्या लाळसा रै ग्याई ये मेरा सौंजड्या जरा सुणाओ त सै
भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार
सबि इकी भौण मा - नरेंद्र कठैत अपणी किताब 'लग्यां छां' (२००८) मा लिखदन बल 'पिछ्ल्या लंबा टैम बिटि गढवळि साहित्यकार , पत्रकार बडा भै विमल नेगी गढवळि पाक्षिक 'उत्तराखंड खबर सार ' मा कुणा कुमच्यरो बिटि' नौ का कालम मा छपणा छन. गढ़वाली भाषा साहित्य पर विमल भै कि लगन अर मेहनत भौत कुछ सिखलाणि च . वूंका देखा देखी हौरी आंचलिक पत्र पत्रिकौन बि गढवळि व्यंग्य छपण सुरु कर याली ."
अर्जुन सिंग गुसाईं - घोर अन्याय. घोर अन्याय . हिलांस मा त गढवळि व्यंग्य छपदा छया. हिलांस से व्यंग्यकारो विज्वाड़ पैदा ह्व़े पत्रिकाओं दगड घोर अन्याय
भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार . अपडो न अपडो पर अन्याय कार
लोकेश नावानी कु पौन (डौञड्या नरसिंग आंदो ) हु हु धाद से त व्यंगकारो की फ़ौज खड़ी ह्व़े
पराज कु विनोद नेगी अ पौन - फूं फूं फ्वां फ्वां ! पराज का गढवळि व्यंग्यों से त सभाओं मा बहस सुरु ह्व़े.
भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार . अपडो न अपडो पर अन्याय कार
इश्वरी प्रसाद उनियाल कु पौन (हथ मा खुन्करी अर तलवार लेकी अपण छाती पर कटांग लगान्द लगान्द. ल्वे का छींटा .. ) झूट सब झूट . बेज्जती, सरासर बेज्जती, तौहीन . तिरस्कार
भौणेर -बेज्जती, सरासर बेज्जती, तौहीन . तिरस्कार
भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार . अपडो न अपडो कि बेज्जती कार
भौणेर -अपडो न अपडो कि बेज्जती कार
इश्वरी प्रसाद उनियाल कु पौन ( अब गरम ज़िंदा क्वीला बुकांद बुकांद ) - दैनिक गढ़ ऐना मा रोज व्यंग्य छ्पदो छौ
भौणेर -दैनिक गढ़ ऐना मा रोज व्यंग्य छ्पदो छौ
भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार
इश्वरी प्रसाद उनियाल कु पौन ( उछळि उछळिक ) - दैनिक गढ़ ऐना मा रोज व्यंग्य चित्र छ्पदो छौ
भौणेर -दैनिक गढ़ ऐना मा रोज व्यंग्य चित्र छ्पदो छौ
भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार
इश्वरी प्रसाद उनियाल कु पौन (डाळ बूट इना उना ल्हसोर्दु ) हू हू झूट सौब झूट . गरजते स्वर अर रंत रैबार मा “खबर सार” से पैलि व्यंग्य छपणा रौंदा छया
भौणेर -खबर सार से पैलि व्यंग्य छपणा रौंदा छया
भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार
मदन डुकलाण (मुंड झिंगरैक , झुल्ला फाडिक ) - चिट्ठी पत्री मा त व्यंग्य छपणा इ रौंदा छा. घोर अपमान . घोर अपमान
भौणेर -घोर अपमान . घोर अपमान
भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार
पूरण पंत पथिक- मि पथिक छौं, म्यरा क्थ्गा सम्पाद्कीय व्यंग शैली मा छन . बेज्जती , बेज्जती
विश्वम्भर दत्त चंदोला - हे माराज ! सबि सम्पादक सांत ह्व़े जाओ.
भौणेर -सबि सम्पादक सांत ह्व़े जाओ.
विश्वम्भर दत्त चंदोला - इतिहास तुम तै कबि नि बिसरल. मनिख हाड मांस को पिंड च . गलती सब्युं से हुंद. कठैत जी से गलती ह्व़े गे होली.
भौणेर -इतिहास तुम तै कबि नि बिसरल
शिव नारायण सिंग बिष्ट - औ औ समीक्षा को धुरंदरो कु ध्यान जागि जा
ओउम गुरु का आदेस . समीक्षा को धुरंदरो कु ध्यान जागि जा
काव्य समीक्षा को ध्यान जाग
गद्य समीक्षा को ध्यान जाग
सबि ब्यूँतों की समीक्षा को ध्यान जाग
भौणेर - समीक्षा को धुरंदरो कु ध्यान जागि जा
भगवती प्रसाद नौटियाल कु पौन ( झिन्ग्रांद , झिन्ग्रांद ,) यो ठीक नि ह्व़े मीन माफ़ नि करण . या त क्वी समीक्षा नि ह्वेई
भौणेर - या त क्वी समीक्षा नि ह्वेई
नरेंद्र कठैत कु पौन - हाँ यू ठीक नि ह्वेइ
हरीश जुयाल कु पौन - हाँ या त क्वी बात नि ह्वेई
भगवती प्रसाद कु पौन ( झिन्ग्रांद , झिन्ग्रांद ,) हाँ यो ठीक नि ह्वेई. जिकुडि जळि गे
भौणेर - कौन देस से आई . जटा फिर्काई . गाज्न्तो बाज्न्तो कौन कौन देस से आई
भगवती प्रसाद कु पौन ( झिन्ग्रांद , झिन्ग्रांद ,)- मै भगवती प्रसाद नौटियाल छुं.
भजन सिंग सिंग - सांत माराज , सात माराज . अपणी लाळसा ब्वालो माराज
भगवती प्रसाद कु पौन ( झिन्ग्रांद , झिन्ग्रांद ,)- ये भीष्म कुकरेतीन मै आलोचक कि तलवार से घैल करी.
गोविन्द चातक - गुरु जी , आलोचना तलवार बौणिक घैल करदी इ च. आपन बि कबि आलोचना की तलवार से कतल्यो त करी होली कि ना.
भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार. आलोचना की तलवार से कतल्यो कार
हरीस जुयाल - अरे गौणि गाणिक त एकाद भूमिका लिख्वार छ्या एकी त समालोचक छ्या नौटियाल जी . फिर कुकरेती जी तै नौटियाल जी तै इन नि छिंडारण चयाणु छौ.
भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार
नरेंद्र कठैत - कुकरेती जीन भौत इ अशिष्ट काम करी
भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार, भौत इ अशिष्ट काम करी
नरेंद्र कठैत - भीष्म कुकरेती न आलोचना मा गाळी गलोज करी
भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार, गाळी गलोज करी
नरेंद्र कठैत - भीष्म कुकरेती न बोलि बल हिंदी प्रयोग ठीक नी च पण अफु बि लेखुं मा हिंदी-अंग्रेजी का प्रयोग करी.
भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार,अफु बि लेखुं मा हिंदी का प्रयोग करी.
सबि - जावा क्वी भीष्म कुकरेती तै बुलाओ
भीष्म कुकरेती को आण -
प्रथम नाम ल्योलू मि सरस्वती कु
प्रथम नाम ल्योलू मि हास्य दिवता ‘प्रथम’ कु
प्रथम नाम ल्युलू मि पंचनाम दिव्तौं कु
प्रथम नाम ल्योलू साहित्यिक गुरु अर्जुन सिंग गुसाईं को
जौन मि तै कथा लिखणो उकसाई
भौणेर -कथा लिखणो उकसाई
प्रथम नाम ल्योलू मि गुरु रमा प्रसाद घिल्डियाल पहाड़ी कु जौन मै गढ़वळि मा लिखणो उकसाई
भौणेर -गढ़वळि मा लिखणो उकसाई
सदा नन्द कुकरेती - अ रिश्ता मा तुम म्यरा ददा जी पण उमर मा मी तुमारो ददा . तुम पर भगार च बल तुमन आलोचना मा बिचकीं भाषा ,अशिष्ट भाषा इस्तेमाल कार
भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार, बिचकीं भाषा ब्वाल
भीष्म कुकरेती - जी, मीन बिचक्याँ शब्द इस्तेमाल करीन
भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार, बिचकीं भाषा ब्वाल
भीष्म कुकरेती - जरा तुम सौब इन बताओं बल सम्भोग, राति शब्द शालीन छन
भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार, बिचकीं भाषा ब्वाल
सौब - हाँ शालीन छन . नाट्य शाश्त्र का शब्द छन
भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार, बिचकीं भाषा ब्वाल
भीष्म कुकरेती - त हे म्यरा गुरु जन जु मि यूँ शब्दों गढवळि मा अनुबाद करलु त क्या होलु ?
भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार, बिचकीं भाषा ब्वाल
सौब- द्याखो जी साहित्य अर रोजमरा कि भाषा मा यो त दिखण इ पोडल कि अनुदित शब्द असभ्य नि ह्व़े जावन
भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार, बिचकीं भाषा ब्वाल
भीष्म कुकरेती - वाह ! आर्य संस्कृति से उपज्यां संस्कृत का शब्द सभ्य अर द्रविड़ सभ्यता से लियां शब्द असभ्य ?
भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार, बिचकीं भाषा ब्वाल
सौब- देस, काल अर वर्ण को ख़याल त करणि पोडल
भीष्म कुकरेती - ठीक च जु तुम सब्यूँ कि या इ राय च त सुधार करे जालो
अबोध बंधु बहुगुणा -- तुम हिंदी शब्दों विरोधी छंवां अर हिंदी , अंग्रेजी शब्दों इस्तेमाल करदवां ?
भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार, हौरू तै अड़ाण अर अफु सियूँ रौण
भीष्म कुकरेती - मी बीडी सिगरेट पींदु त क्या बीडी सिगरेट का विरोध करण बुरु च क्या ?
भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार, हौरू तै अड़ाण अर अफु सियूँ रौण
सौब - पर ...
भीष्म कुकरेती - बस यो इ हाल छन. 'पर' पर' ... कबि त स्वीकार कारो कि हिंदी गढवळि तै मारी देली. . मी अफु पर बि भगार लगान्दु. मीन 'हिंदी का वासराय' लेख मा अफु तै बि 'खत्युं बीज' ब्वाल
नरेंद्र कठैत - यू सौब झूट च भीष्म कुकरेती जी न इन कवी लेख नि ल्याख.
भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार, हौरू तै अड़ाण अर अफु सियूँ रौण
भीष्म कुकरेती - जु तुमन यू लेख नि बांच त यांक मतलब यो नी च कि यू लेख छपी नी च
नरेंद्र कठैत - यू सौब झूट च
सौब - कठैत जी ! यदि आपन क्वी लेख नि बांच त यांको यू अर्थ नि होंद कि हौरू न ल्याख इ नी च.
भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै सिखाणो बान कंडाळी न चुटी .
भौणेर - मीन नि बांच त यांको अर्थ नी होंद कि हौरून ल्याख इ नी च.
तारा दत्त गैरोला- भीष्म जी ! घपरोळ से क्या फैदा ?
भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार,
भीष्म कुकरेती - जी यू त क्वी बि 'कौंळी किरण' बांची ल्याओ फिर जाणै जै सक्यांद कि घपरोळया लेखुं से क्या फैदा होंद!
भजन सिंग सिंग - पण घपरोळ शब्द म लडै कि गंद आन्द
भीष्म कुकरेती - जी ठीक च. आज से इन कॉलम का नाम होलु 'घचकाण'
नरेंद्र कठैत - पण इन बहस इ ठीक नी च
पार्थ सारथी डबराल- साहित्य मा सम्वाद जरूरी च
भौणेर -साहित्य मा सम्वाद जरूरी च
श्याम चंद नेगी - बहस से साहित्य का बनि बनि जरूरी बातों पर साहित्यकारों ध्यान जांद.
गणेश प्रसाद बहुगुणा 'शाश्त्री' - बहस से इन बात भैर आन्दन जु इतिहास से लुक्याँ रौंदन
भौणेर -साहित्य मा सम्वाद जरूरी च
अबोध बंधु बहुगुणा - त हे मेरा दिवतौं अब सौब मानि जाओ . सांत ह्व़े जाओ
केशव अनुरागी - मी केशव अनुरागी जरा बडै कु ताल बजांदु त सौब नाचो
झेई - - - झे- - - - , ता - - - - ता -
ता ता , झेई - - - त्रिणता , झे, तागता
झगेक, झेई .......
ब्रह्मा नन्द थपलियाल - मि ब्रह्मा नन्द थपलियाल ढोल सागर कु एक छंद गौलु अर फिर आजक पूजै संपन माने जावो
अरे गुनि जन शब्द ईश्वर रूप च
शब्द कि सुरति शाखा
शब्द का मुख विचार शब्द का ज्ञान आँखा
यो शब्द बजाई , हृदया जाई बैठाई
2013 ,Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India
*लेख की घटनाएँ , स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल व्यंग्य रचने हेतु उपयोग किये गए हैं।
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