कवि -नेत्र सिंह असवाल
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प्रस्तुत है नेत्र सिंह असवाल की सन 1977 में रची एक कविता जो
गढ़वाली कविता में परिवर्तन का एक उदाहरण है। कविता विषय और कवित्व पक्ष के
हिसाब से अंतर्राष्ट्रीय कविताओं की टक्कर की कविता है -
क्रान्ति !
क्रान्ति जूनीs बगडौ खबेश नी च
जु अचणचक्कि परगट ह्वेकि
फरकै द्या पोड़ -क-पोड़
लमडै द्या सभि ल्वाड़ा
अर निशाणौ बदल जाण नी छ प्रमाण ----
बुगठ्या -खवा धुधरट्या द्यबतौं बदल जाणु !
जन दाढि मुंडि दीणि
नी छ गारंटी -वींकि नि जमणै दुबारा।
जणदु छै
क्रान्ति थैं जनम दीणा खुण
छ्वाप दीण प्वड़द -मन्द्राचली भारु /अपणा कांधों मा
छवळण पोड़द -समोदर का समोदर
दीण प्वड़द -नीलकंठी परीक्सा
सैण प्वड़द -ब्वे -बुबा याद कराणवळि प्रसव वेदना
अर फिर /वीं थैं अपणा खुटों पर
खड़ु हूण लैक बणाण तक
बिलण प्वड़दीं हजारों -हजार पापड
होम करण प्वड़दीं - अपणा मनै गाणि /सुपिना -दुबिना
नि समझि सकदु
क्वारा छिरक्वा कुर्सीखोर !
तु यु सब कुछ नि समझि सकदु !
जिन कविताओं ने गढ़वाली कविताओं शक्ल -सूरत-शैली बदली !
अस्सी
के दशक में कन्हया लाल डंडरियाल , जया नन्द खुकसाल बौऴया , रघुवीर सिंह
अयाल, नेत्र सिंह असवाल , विनोद उनियाल , पूरण पन्त 'पथिक' ललित केशवान ,
अबोध बंधू बहुगुणा , प्रेम लाल भट्ट , गिरधारी लाल कंकाल सरीखे कवियों ने
गढ़वाली कविता की शक्ल , शरीर , शैली , भौण , कवित्व पक्ष , विषय में
परिवर्तन का विगुल बजाया और गढवाली कविताओं को आधुनिक जामा पहनाया।
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