रचना - केशवानंद कैंथोला ( पालकोट , मवाळस्यूं , पौड़ी गढ़वाल ,1887 -1940 )
इंटरनेट प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती
जांदी छन अब पुंगड़ियों मा साटियों गोडणा
कौणी झंगोरा कू छन ढीस तीर छोडणा।
घर आइ गैने साँझ मा फिर जाण बैठी पाणी कू
नौन्याळ छन रोणा लग्यां दे बोई रोटी खाण कू।
रात अब होण लगीगे कब गोरु भैंस बांदणी
होली सभी अब फिकर ते भैर भितरा नाचणी।
रोटी छन अब ये पकाणी साग तख मा प्याज को
होली लगीं यूँ भूख भारी बोलदी नी लाज को।
हे शान्ति ! मन मा शान्ति कर क्यै छै उदासी तू हुयीं
जौंका पति घर मा छना तैंकि दशा छ या हुयीं।
जब तू किलैक सोच करदी देख लेडी हौरू को
अब काम धंधा कर सभी तू घास लादी गोरु को।
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