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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, July 21, 2015

ना जा पंछी बणाग्याँ बोण /बौण 1925 -30 ki Kavita

रचना --महंत योगेन्द्र पुरी  (किंकलेश्वर चौरस , टिहरी गढ़वाल  1848 -1957 )
          इंटरनेट प्रस्तुतिकरण -भीष्म कुकरेती 

ना जा पंछी बणाग्याँ बोण /बौण 
जख छया फुल्यां बांज बुरांस 
गांदी कोयल और हिलांस 
नचदा छ जख खुशि ह्वेकि मोर 
खेल्दा छ जख सार -चकोर 
भटक्यूँ छौ जब बांसु कु बेड़ा 
क्वी नी डर छै जैका नेड़ा 
लगी रगड़ आपस मा जब 
बेड़ा पल मा भस्म बण्यो सब

                 तेरा दगड्या लग गैने रोण
                 ना जा पंछी बणाग्याँ बोण
बड़ा रसीला आम फुकेगैं  
बाग़ बगीचा खारु ह्वे गैं
             त्वेन भला अब तख क्या पौण
             ना जा पंछी बणाग्याँ  बौण
शेर जखका छया जग्वाळा 
हात्यूं का मुंड चूरण वाळा
             टूटी गेन तौंकी भी धौण
            ना जा पंछी बणाग्याँ बौण
जौं डाळयूँ मा खेल त्यरो  छौ   
जौं पंछ्युँ मा मेल त्यरो छौ
           तौंकि बि लै गैने बारी औण
            ना जा पंछी बणाग्याँ बौण
बोण बण्यूं शमशान सि सारो   
कखिम क्वीला कखिम खारो
          कखिमु स्याळ लगीने रोण 
            ना जा पंछी बणाग्याँ बोण
शेर बाघ अर गैंडा हाथी 
सब्बि फुकेगें तेरा साथी 

             तीन भि तनि जान गवाण 
           ना जा पंछी बणाग्याँ बौण

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