-- डॉ. बलबीर सिंह रावत , देहरादून।
मशरुम , गढ़वाली में च्यों , एक प्रकार की फफूंदी है जिसकी पौष्टिक गुण , दूध दही, मीट मुर्गा व फल सब्जी को ललकारते हैं। इस में न तो स्टार्च होता है न ही किसी प्रकार की चीनी और वसा । इमे पाये जाने वाले खनिजों में फॉस्फोरस और मैग्नीशियम महतव रखते हैं। इस में जो प्रोटीन होती है उसमे सभी अमाइनो अम्ल होते हैं, जो दूध की प्रोटीन के अलावा और किसी एकल स्रोत में एक साथ नहीं होते। मुशरूम सुपाच्य है तो इसे बच्चे, युवा, बृद्ध , शुगर की बीमारी वाले , मोटापा घटाने वाले और अन्य सभी खा सकते हैं। इसको उगाने के लिए शुरू शुरू में थोड़ा सा ही स्थान चाहिए ,केवल १० x १२ फ़ीट का , १० फ़ीट ऊंचा एक कमरा ही काफी होता है। नए नए स्वरोजगारी मशरुम उत्पादकों को छोटे स्तर से शुरू करना चाहिए। बड़े व्यवसायी तो विशेषज्ञों और प्रशिक्षित कार्मिकों को रख कर बड़े स्तर के उत्पादन फ़ार्म बना लेते हैं ।
मशरुम उगाने के लिए आद्रता ९०- ९५ % और तापमान २४ से २८ डिग्री सेल . के बीच ठीक रहता है। इसलिए मैदानी इलाकों में केवल १ या २ और पर्वतीय इलाकों में ४-५ फसलें ली जा सकती हैं। सामान्य आकार की ट्रे में कुल ८किलो तक मुशरर्ों उगाये जा सकते हैं। इनको साफ़ करके पैकेटों का मंडी भाव ४० रु प्रति किलो भी अगर मिल सकता है तो एक फसल में , एक कमरे से ६,००० रुपये मुशरूम बिक्री से कमाए जा सकते हैं, जिसमे शुद्ध लाभ ३००० रपये का हो सकता है।
आवश्यक साजो सामान : . कक्ष में दीवारो के सहारे ट्रे रखने के रैक , वांछित संख्या में उचित लम्बाई, चौड़ाई और गहराई के ट्रे , सबस्ट्रैट ( उप आधार ) बनाने के लिए पर्याप्त मात्रा में गेहू का भूसा, या धान की पयाली, या मुलायम सूखी घास, या मक्की के भुट्टों का चूरा , अमोनियम नाइट्रेट या यूरिया , अन्य खनिज तत्व , फावड़ा, बेलचा, बालटियां , साफ़ मुलायम कपड़ा, मशरुम धोने, रंग साफ़ करने और पैकिंग तथा पैकेजिंग का सामान , चाक़ू, दस्ताने, ताजे शुद्ध पानी की व्यवस्था। और अंत में विश्वास योग्य स्रोत से स्पॉन ( बीज) की सप्लाई।
तैयारी के चरण :- पहिले चरण में मशरुम उगने के लिए कम्पोस्ट तैयार की जाती है। उसे बनाना अपने में एक महत्वपूर्ण काम है। भूसे को , या जो भी वस्तु ल गयी हो लिया हो, अच्छे तरह से भिगो कर उसमे नमी ७५ % के लगभग होनी चाहिए, फिर इस सामग्री को सड़ने के लिए छोड़ दिता जाता है। सड़ने की प्रक्रिया के दौरान गर्मी पैदा होती है और अमोनिया तथा कार्बन डाई ऑक्साइड गैस पैदा होती है, इस लिए कक्ष में हवा का आना जाना सुबिश्चित करना होता है।
दुसरे चरण में इस कम्पोस्ट को कुछ दिनों बाद खूब सान कर अंदर का बाहर और बाहर का अंदर करके मिल्या जाता है और इसे फिरसे सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है। जो गर्मी पैदा होती हैउससे इसका पास्चरीकरण हो जाता है, यानी उसके अंदर के सारे नुक्सान दायक कीटाणु, जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। यह तापमान ७० डिग्री सेल. तक पहुँचता है। जब इसमें गर्मी का निकलना कम होना शुरू हो जाता है तो समझो कम्पोस्ट तैयार है. इन दो चरणो में लगभग २७-२८ दिन लगते हैं
तीसरे चरण में इसे ठण्डा कर के २५ -२६ डिग्री सेल. तक लाया जाता है और तब इसमें स्पॉन को अच्छीे तरह से मिलाया जाता है। कुछ आपूर्ति कर्ता मशरुम के स्पोरों से बना स्पॉन बेचते हैं , इस काले रंग के तरल स्पान से पैदावार उतनी नही होती जितनी किसी अनाज के छोटे बीजों में उगाये गये स्पोरों के माइसीलियमों को बोने से होती है। अगर यह उपलब्ध हो तो इसे ही लेना चाहिए ।
चौथे चरण में इस स्पॉन मिले कम्पोस्ट को ट्रेयों में डाल कर कमरे में बने रैकों में रखा जाता है , ध्यान रहे कि रैक इतन ही ऊंचे हों की उन तक आसानी से पहुंचा जा सके और अन्य क्रियाएँ की जा सकें। एक नया सस्ता तरीका भी है, बजासस्य टीन की ट्रे के तैयार कम्पोस्ट को डेढ़ फ़ीट व्यास क मजबूर प्लास्टक के थैलों में भर कर जमीन में रक्खा जाता है जिसका फर्श साफ़ और कीटाणु , जीवाणु रहित कर दिया गया है।
पांचवें चरण में इन ट्रेयों के ऊपर कम्पोस्ट की महीन परत रक्खी जाती है और उन पिनो के उगने की प्रतीक्षा की जाती है जिनके सिरे पर मशरुम खिलते हैं। इस में १८ से २१ दिन लगते हैं।
छठे चरण में बटनों की बिनाई होती है। परिपक्वता आने पर मुशरूममें स्पोर बनने लगते हैं, इसलिए इन्हे कच्चे ही तोड़ देना चाहिए , करीब डे ढ़ इंच के व्यास के आकार के हो जाने पर। साधारणतः एक ट्रे से १० दिनों तक मुशररूम मिलते रहते हैं अनुभव हो जाने के उपरान्त इन्हे ४० दिनों तक मिलते रहने का पबंध किया जा सकता है। मशरुम की तुड़ाई के लिए बटन के सिरे को दस्ताने पहिंने हाथ के अंगूठे और पहिली उंगली से हलके पकड़ कर घुमा देने के साथ साथ उठा देना चाहिए। इसके नीचे जड़ भी आएगी जिसे किसी तेज चाक़ू से काट कर अलग कर देना चाहिए. ध्यानं रहे की जड़ और कम्पोस्ट की मिट्टी ट्रे के मशरूमों में न पड़े और नहीं फर्श पर। इसके लिए एक बाल्टी साथ में रखनी चाहिए और मशरुम को अलग ट्रे में। जब दिन के सारे मशरुम ले लिए जायँ तो इनको पोटाशियममेटाबायसल्फाइट के ५ ग्राम को १० लीटर पानी के घोल में डूबा कर धोने से एक तो इनमे सफेदी आ जायेगी दुसरे जो भी कम्पोस्ट या अन्य बाहरी कण रह गए हों वे धूल जाएँहेगे। फिर इनको साफ़ स्वच्छ पानी से धो कर अगर ८ घंटे के लिए ४-५ डिग्री से पर ठंडा कर दिआ जाय तो बाजार में ये अधिक समय तक टिके रह सकते हैं। ( अंनधोये मशरुम भले ही चिट्ट सफेद न हों वे अधिक समय तक ताजे रहते हैं )
सातवें चरण में बाजार के लिए तयारी। प्रायः ग्राहक २०० ता ४०० ग्राम ही एक समय में खरीदते हैं तो २०० ग्राम के पैकेट , साफ़ विशेष प्रकार की प्लास्टिक की थैली में पाक किये जाते हैं और इन पैकेटों को एक मजबूत ट्रे में बाजार भेजा जाता है. थोक के भाव अलग अलग शहरों में अलग अलग भाव मिलते हैं जो ४० से ८० रुपये प्रति किलो होते हैं. मंडी की नीलामिमे और भी काम भाव मिलेंगे। इसलिए अगर हो सके तो अपने ही खुदरा व्यापारी तय कर लेने चाहियें। अगर आप मकिसी घने बस्ती के नजदीक हैं तो अपने घर से ही रिटेल भाव में बेच सकतेहैं ,लोग आ कर स्वयं ही ले जाएंगे..
अंत में एक सलाह. अगर आपने यह धंदा शुरू करना है तो किसी अच्छे प्रशिक्षण केन्द्र से प्रशिक्षण ले कर पूरा आत्मविश्वास हासिल कर लेना चाहिए। इसके लिए जिला हॉर्टिकल्चर अधिकारी. प्रादेशिक मशरुम उत्पादक संस्था से या फिर
राष्ट्रीय मशरुम केंद्र , चम्पाघाट, सोलन , हिमांचलप्रदेश १७३ २१३ से डाकद्वारा या ( ०१७९२) ३०४५१और ३०७६७ पर सम्पर्क कर के सलाह ले सकते हैं।
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