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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, July 20, 2015

प्रथम विश्व युद्ध के समय -1914 -15 की गढ़वाली कविता

गढ़वाळ की सेना युद्ध वास्ता प्रस्थान
सत्यशरण रतूड़ी ( गोदी , टिहरी , 1869 -1926 )
( प्रथम  विश्व युद्ध के समय -1914 -15 की गढ़वाली कविता )
गढ़देश का सपूतो तयार ह्वै गयं तुम
ऐग्य कमर कसीक मैदान मा खुला तुम
छोटा बड़ा सयाणा सब ही स्वदेश वासी
जै ! आज हम मांदवां सब बीर धन्य छैं तुम। 
मायी  का लाल ह्वैक पित्रुं नाम बढ़ावा।
जावा विजय मनावा बद्री केदार की तुम।
सम्राट जार्ज पंचम हित प्राण पण लगैक
ब्रिटिश स्वराज खातिर रणखेत मा लड़ा तुम।
जर्मन कु ध्वंस कैद्या बंदूक से उड़ै द्या
कुर खेत ही मचैद्या रण शूरसिंह छैं तुम।
 .......
कायर कपूत डरखू मुख मोड़दन अवारे
रणखेत हेतु प्यारो खुश बीर छयैं तुम।
गंगा गणेश जै ! जै ! दुर्गा महेश राणी
राजा नरेंद्र शाही गढ़देश जै मना तुम
इंटरनेट प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती 17 /7 /2015

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