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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, July 20, 2015

गढ़वाळ का सच्चा कवियों से प्रार्थना (1920 से पहले की कविता )

रचयिता -- चंद्रमोहन रतूड़ी  (गोदी , टिहरी 1880 -1920 )


क्या हम कवि पुत्र सरस्वती का
ब्रह्मा की अंधी अर काळि सृष्टि
का आँख मुखीर स्वयं विधाता -
क्या हमन कैकि करणी अपेक्षा ?
क्या छन स्त्रियों का मुख नेत्र पद्म,
बिना हमारी प्रतिभा की किरणयों ?
क्या बीरू का कर्म विचित्र अद्भुत,
बिना हमारी फिरदार बाणी ?
हे नी छ क्या या प्रकृति ही सारी,
निर्जीव बेढंग अर शून्य जंगळ
देवत्व , सौंदर्य , सहानुभूति -
संचारणी शक्ति बिना हमारी ?
तजिक तब सब ग्लानि , लीक बाणी की बीणा
प्रमुदित मन से आपुच्च स्वरसे ही अपणा
परबत बण गंगा बद्री केदार राजा
सब भड़ गढ़ का यै देश की कीर्ति गायैं। .
(चंद्रमोहन रतूड़ी जीक कविता क्लिष्ट ही छन  )

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