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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, July 29, 2015

क्या आपन बि देखि इन - कुसगोरि कज्याण ?

 कुसगोरि कज्याण ( रचना काल 1937 से पैल )
        रचना - भजन सिंह 'सिंह ' (कोटसाड़ा , सितौनस्यूं , पौड़ी गढ़वाल , 1905 -1996 )
                      इंटरनेट प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती 

अति मैलि कुरूप कुस्वाणि बणी 
बरड़ाणि च , रुटि पकाणि च वा 
       फिर हाथन फूंजि सिंगाणु कभी -
       हगणु उबरा फंड जाणि च वा 
कभि खांद पकांद जुंवा मरद 
दुइ हाथन मुंड कन्याणि च वा 
        फिर मैलि सि थाळिम भात धरी 
         पदणी च ,सिंगाणु चबाणि च वा।
खुचल्या पर नौनु उखी हगणू 
उखि भात कि थाळि सजाणि च वा 
       छन रुटि म जैकि जुंवा बिलक्यां 
       द्वी हाथुन गात कन्याणि च वा 
छन भात म बाळ त रुटि म बाळ 
त दाळि मा लाळ चुवाणि च वा 
         मुंडळी छिमनै कि पकाणि च वा 
        कुछ खाणि च , हौरि लकाणि च वा। 
कभि भात गिल्लो कबि लूण बिंडे 
कबि कोरू व काचु बणान्दि च वा 
       पिछ्नै कखि कैक मिले न मिलो 
       पर पैलि घड़ी भर खांदि  च वा 
कखि थाळि , कखि च लुट्या लमड्युं 
लटकी दुफरा तक रांदि  च वा
………
जै मैसन पाथ रुप्या भरिने 
वै मैस खबेस बतांदि च वा 
....... 
              कुछ बोलु त डागिण सि लड़द 
             झट मैत कु बाठु खुज्यांदि च वा 
घर रौरव -नर्क बणैकि इनू 
नित स्वामी कि ज्यान जळान्दि च वा। 

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