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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, July 26, 2015

मानंद -बिस्वासी (श्रृंगार, प्रेम लोक गीत )

(Garhwali , Kumaoni Love Folk Song )
 ( संदर्भ -नरेंद्र सिंह भंडारी व डा नन्द किशोर हटवाल )
इंटरनेट प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती 

 मानंद , लो तामा की पीटण 
मानंद , दूरे बे पछ्याणदी,
मानंद , तेरी झूमण हीटण। 
बिस्वासी ,, देबी को तगत 
बिस्वासी , वै तू मेरी जोग्याण,
बिस्वासी , मै च तेरु भगत। 
मानंद, लो कोदु बोयूं रेक 
 मानंद, लो बामणो का खोळा 
मानंद, भलू च बिगरौ बैख 
हे चखुली बाबूला की कुची 
हे चखुली माला खौळा दिख्यांदी 
विस्वासी, सबी बानो मा उचि
मानंद, काटी जालो प्याज। 
 मानंद, ब्याखुनी ह्वे गे
मानंद,यखी रै आज।  
विस्वासी, चौंळु भरी सेर
विस्वासी, रात रैणी बाना
विस्वासी, आयूँ मै ब्याखुनि देर। 
विस्वासी,हे तिमली को पात
विस्वासी,  मै अज्यों नि खाई 
बिस्वासी , तेरो पकायुं भात।  
मानंद,  हिरण को गात 
 मानंद, कनै खालो टीपाउ
मानंद, तेरी बामणे जात
विस्वासी, हे साँदण की सौंळी   
विस्वासी, तेरी माया खातिर
विस्वासी, तोड़ी मैंन जनेऊ की कोंळी 
मानंद, लपलप कोई 
 मानंद,लोग राम जपदा
मानंद, मैं जपदु तोई
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