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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, July 14, 2015

जनता तब बि अंधि नि छे , तब बि बैरि नि छे आज बि लाटी कालि नी च

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                    जनता तब बि  अंधि नि छे , तब बि बैरि नि छे आज बि  लाटी कालि नी च 

                                     चबोड़ , चखन्यौ , चचराट   :::   भीष्म कुकरेती 

            अजकाल दिल्ली की सरकार याने अरविन्द केजरीवाल की सरकार टेलीविजन चैनलों मा दे दना दन विज्ञापन दीणी च बल - हमर सरकारन इन कार , तन कार अर क्या नि कार।  मि तै अरविन्द केजरीवालका सलाहकारों पर दया तो आणि इ च दगड मा अरविन्द केजरीवाल का पागलपन पर हंसी बि आणि च।  जी हाँ अरविन्द केजरीवाल अपण सरकारों काम का विज्ञापन करिक पागल जन हरकत करणा छन। 
             सरकार तै अपण कार्यों का विज्ञापन नि दीण चयेंदन अपितु योजनाओं तै जन जन तलक पौंछाणो विज्ञापन दीण चयेंदन।  केजरीवाल शायद बिसरी गेन कि शीला दीक्षित की  कॉंग्रेसी सरकार अपण सरकारौ काम बताणो बान करोड़ों खर्च करिन अर ह्वाइ क्या च किदिल्ली विधानसभा मा बीजेपी तै बतीस अर आप तै बाइस -चौबीस सीट  मिलेन।  कॉंग्रेस का विज्ञापन पर रंगुड़ फिर गे। इथगा विज्ञापनों बाद बि कॉंग्रेस का पुंगड़ों मा ग्यूंका जगा जख्या भंगुल जामि गे। 
               फिर दुबर चुनाव आयि तो भाजपा पागल ह्वे गे अर इन इन अनघड़ विज्ञापन बाजी मा फंस कि मि तै विज्ञापन रचनाकार पर हंसी नि आयि अपितु नरेंद्र मोदी अर अमित शाह का पागलपन पर रूण आयि कि यूँ पर इथगा जल्दी बौळ किलै फैली ?
केजरीवाल की आम आदमी पार्टिन विज्ञापन कुछ खास नि देन पर सहतर मादे सड़सठ सीट माँ जीती गे।  जी हाँ अरबों रुपया खर्च करिक बि भाजपा तीन सीट अर बिना बजट का बि केजरीवाल अड़सठ सीट ली गे।  
                  यानी पॉलिटिक्स मा विज्ञापनबाजी कुछ नि करदि।  बल्कि जनता की धारणा ही सब कुछ करदी अर जनता की भावना विज्ञापनों से नि बणदि या बदलदी। 
              जौन इंदिरा गांधी की इमरजेंसी देखि हो ऊँ तै याद ह्वालु कि इंदिरा गांधींना इमरजेंसी तै सही सिद्ध ठहराणो वास्ता विज्ञापनुं का गुबार , धुंवा कर दे छौ पर ह्वाइ क्या च ? इंदिरा गांधी को सिंघासन का कबाड़ा , बुगचा बण गे, धरासायी ह्वे गे ।  जनता तब बि अंधि नि छे।
    फिर सन 80 का अगला चुनाव आरएसएस समर्थन से बाबू जगजीवन राम तै बतौर प्रधानमंत्री का खूब विज्ञापन जनता पार्टी या जनता दल ना करिन पर जीत ह्वे इंदिरा गांधी की।  तब बि जनता सब जानती थी। अर विज्ञापन की तगत किदलु से बि फंड सिद्ध ह्वे।  जनता माँ की धारणा विज्ञापनों से नि बणदि बल्कि जनसंपर्कीय सिद्धांतुं से बणदि। 
        फिर जरा राजीव गांधी सरकार का सांप -बिच्छू का विज्ञापन याद कारो त सै ! कुछ नि ह्वे अपितु विज्ञापनुं की भद पिट अर राजीव गांधी की पार्टी लोकसभा चुनावुं मा चित्त ह्वे गे। जनता गूंगी ह्वे सकदी किन्तु नासमझ , बेवकूफ अर लाटी नि हूँदि। 
  जरा नरसिम्हा राव की सरकार का विज्ञापनुं तै याद कारो।  खर्चो का पर्चो बि वापस नि आई।  तब से कॉंग्रेस ही समाप्ति का रस्ता पर दिखे। 
          वाजपई सरकार का शाइनिंग इंडिया विज्ञापनुं बात क्या करण ? बाजपई का विज्ञापन जन धारणा समणि धूल चटदा रै गेन। 
             मिंया मुलायम सिंह का अमिताभ बच्चन का " उत्तर प्रदेश मा लौ ऐंड ऑर्डर सुधर गे "वळु विज्ञापन से मुलायम सिंग चुनाव तो नि जीत किन्तु अमिताभ बच्चन की इज्जत का भाजी पालक  अवश्य ह्वे।  जनता मूक ह्वे सकदि किन्तु जनता असंवेदनशील नि ह्वे सकदी अर जनता झूट सच तै पछ्याणदि च।   
फिर सन 14  का चुनावमा मनमोहन सिंग सरकारों विज्ञापन कॉंग्रेस तै केवल   चौवालीस सीट ही दिलै साक। जनता गूंगी अवश्य च पर आँख अर कन्दूड़ खोलिक रौंदी। 
अब नरेंद्र मोदी अर केजरीवाल जन खुर्रांट नेता विज्ञापन से अपर सरकार की चमक दिखाण चाणा छन तो वु बिसरी गेन विज्ञापन बि तबि काम करदो जब धरातल पर कुछ दिखेणु हो किलैकि जनता तब बि  अंधि नि छे , तब बि बैरि नि छे आज बि बेवकूफ नी च। जनता नीर अर दूध की सच्ची पारखी च।  विज्ञापन से जनता का आंख्युं मा धूल नि झोके सक्यांद।   





11 /7  /15 ,Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India 
*लेख की   घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में  कथाएँ चरित्र , स्थान केवल व्यंग्य रचने  हेतु उपयोग किये गए हैं।
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