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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, July 2, 2015

स्रुघ्न नरेश अमोधभूति की महराज उपाधि

Maharaja Title of Srughna King Amodhbhuti 

                                         स्रुघ्न नरेश अमोधभूति की  महराज उपाधि  

                          Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  - 134                                                                       हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -    134                  

                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती  


        
            अमोध्भूति के पारंभिक राज्य काल में यमुना से पश्चिम की ओर एवं नरेश मेनान्द्र वंशजों का शाशन था। इन प्रदेशों में यवन नरेश अपनी मुद्राओं में खरोष्ठी का प्रयोग करते थे।  जब अमोध्भूति ने यह प्रदेश मेनान्द्र के उत्तराधिकारियों से छीना तो अमोघभूति ने भी अपने सिक्कों में खरोष्ठी का प्रयोग शुरू किया।  रणनीति के हिसाब से यह उचित था। 
 मौर्य कला से ही भरत में चांदी की कमी होने लगी थी और छड़ी के लिए ईरान प्रदेश पर निर्भरता बढ़ती गयी थी। ईरान के साथ संबंध बिगड़ने से चांदी के आयात  पर फर्क पद गया। कुछ नरेश ताम्र मुद्राओं पर चरजत पानी चढ़ाने लगे व बाकी ताम्र मुद्राओं का प्रयोग करने लगे। 
                स्रुघ्न नरेश अमोघभूति ने ताम्बे व चांदी के सिक्के चलाये व रजतमुद्राएं यवननरेश हेमीद्रक्य की नकल की।  अमोघभूति ने ब्राह्मी व खरोष्ठी लिपियों का प्रयोग मुद्राओं में किया याने उसका प्रभाव पश्चिम में बढ़ गया था। 
                  उसने यवननरेशों की तरह महाराज की उपाधि धारण कर ली थी और मुद्राओं में खूब प्रचारित भी किया। 
  अमोघभूति की मुद्राओं में ब्राह्मी के सभी लेख परिधि के समानांतर हैं किन्तु खरोष्ठी लेखों में रंज कुणिंदस अमोघभूतिस तो परिधि के समानांतर खुदा है किन्तु महाराजस बीच में मुद्रित है।  ऐसा महाराज शब्द के महत्व को उजागर करने हेतु किया गया था।
                                              मुद्राओं से व्यापारिक लाभ 
 रजत व ताम्र  मुद्राओं व यवन शैली में मुद्रा ढलवाने से अमोघभूति राज्य को व्यापारिक लाभ मिले क्योंकि ये मुद्राएं यवनमुद्राओं से टक्कर लेने में सक्षम थीं।  अमोघभूति की मुद्राएं बेखटक सांकल , मथुरा , अहिछत्रा , स्थानेश्वर तामस, तंगण , रंकु आदि की मंडियों में प्रचलित हो गयीं थीं।  

Copyright@
 Bhishma Kukreti  Mumbai, India 2/7/2015 
   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --135

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -
135


      Ancient History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ;  Ancient  History of Telpura Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient  History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ;  Ancient   History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand  ;  Ancient  History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ;  Ancient  History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient  History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ;    AncientHistory of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar;      History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;    AncientHistory of Bijnor;    Ancient  History of Nazibabad Bijnor ;    Ancient History of Saharanpur;   Ancient  History of Nakur , Saharanpur;    Ancient   History of Deoband, Saharanpur;     Ancient  History of Badhsharbaugh , Saharanpur;   Ancient Saharanpur History,     Ancient Bijnor History;
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