Maharaja Title of Srughna King Amodhbhuti
स्रुघ्न नरेश अमोधभूति की महराज उपाधि
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part - 134 हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 134
इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
अमोध्भूति के पारंभिक राज्य काल में यमुना से पश्चिम की ओर एवं नरेश मेनान्द्र वंशजों का शाशन था। इन प्रदेशों में यवन नरेश अपनी मुद्राओं में खरोष्ठी का प्रयोग करते थे। जब अमोध्भूति ने यह प्रदेश मेनान्द्र के उत्तराधिकारियों से छीना तो अमोघभूति ने भी अपने सिक्कों में खरोष्ठी का प्रयोग शुरू किया। रणनीति के हिसाब से यह उचित था।
मुद्राओं से व्यापारिक लाभ
Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India 2/7/2015
History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur to be continued Part --135
हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास to be continued -भाग -135
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Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part - 134 हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 134
मौर्य कला से ही भरत में चांदी की कमी होने लगी थी और छड़ी के लिए ईरान प्रदेश पर निर्भरता बढ़ती गयी थी। ईरान के साथ संबंध बिगड़ने से चांदी के आयात पर फर्क पद गया। कुछ नरेश ताम्र मुद्राओं पर चरजत पानी चढ़ाने लगे व बाकी ताम्र मुद्राओं का प्रयोग करने लगे।
स्रुघ्न नरेश अमोघभूति ने ताम्बे व चांदी के सिक्के चलाये व रजतमुद्राएं यवननरेश हेमीद्रक्य की नकल की। अमोघभूति ने ब्राह्मी व खरोष्ठी लिपियों का प्रयोग मुद्राओं में किया याने उसका प्रभाव पश्चिम में बढ़ गया था।
उसने यवननरेशों की तरह महाराज की उपाधि धारण कर ली थी और मुद्राओं में खूब प्रचारित भी किया।
अमोघभूति की मुद्राओं में ब्राह्मी के सभी लेख परिधि के समानांतर हैं किन्तु खरोष्ठी लेखों में रंज कुणिंदस अमोघभूतिस तो परिधि के समानांतर खुदा है किन्तु महाराजस बीच में मुद्रित है। ऐसा महाराज शब्द के महत्व को उजागर करने हेतु किया गया था।
रजत व ताम्र मुद्राओं व यवन शैली में मुद्रा ढलवाने से अमोघभूति राज्य को व्यापारिक लाभ मिले क्योंकि ये मुद्राएं यवनमुद्राओं से टक्कर लेने में सक्षम थीं। अमोघभूति की मुद्राएं बेखटक सांकल , मथुरा , अहिछत्रा , स्थानेश्वर तामस, तंगण , रंकु आदि की मंडियों में प्रचलित हो गयीं थीं।
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