डॉ. बलबीर सिंह रावत , देहरादून।
ट्यूलिप , जिसे हिंदी में कंद-पुष्प या नलिनी कहते हैं, मूल रूप से भूमध्य सागर के पूर्वी इलाकों में उगने वाला पुष्प है जिसकी गिनती संसार के १० सब से अच्छे फूलों में होती है। इसकी १५० प्रजातीय पाई जाती हैं लेकिन केवल सफेद और उसके प्यारे अक्ष, पीले, नारंगी, गुलाबी, लाल, कासनी बैंगनी रग सब से अधिक लोक प्रिय हैं। कई यूरोपीय देशों में ट्यूलिप उत्सव मनाये जाते हैं और ट्यूलिप यात्रा टर्की शरू हो कर हॉलैंड तक जाती है। बसंत ऋतू सबसे पहिले टर्की में आती है तो ट्यूलिप सब से पहिले वहीं खिलता है। तुर्की में इस फूल को लाले बोलते हैं तो उत्सव का नाम भी लाले उत्सव है। जैसे जैसे बसंत उत्तर की ओर बढ़ता है तो ट्यूलिप का लाले उत्सव भी उसी रफ़्तार से आगे बढ़ता हुआ हॉलैंड में पूरा होता है।
In April the annual International Istanbul Tulip Festival (Istanbul Lale Festivali) takes place. This shouldn’t be a surprise if you know that — unlike common belief — tulips originated more or less in Turkey. So, if you happen to be in Istanbul during this time of the year, you’re in luck. Millions of tulips have been planted in Istanbul’s parks, avenues, traffic roundabouts … basically anywhere where some open ground was available.
अब इस फूल को कई दिवस-उत्सवों, जैसे वैलेंटाइन डे , मदर्स डे इत्यादि से जोड़ने के कारण इसको उगाने की तकनीकियों ने इसे दिसंबर से लेकर मई अंत तक उपलब्ध करा दिया है। इन विदेशी उत्सवों और ट्यूलिप की विशिष्टाओं के कारण भारत में भी अब काश्मीर और हिमांचल प्रदेश में ट्यूलिप की खेती होने लगी है। काश्मीर में ट्यूलिप की खेती, श्री गुलाम अन्वी आजाद की पहल पर, २००८ में शुरू हुई और अब वहाँ एशिया का सबसे बड़ा ट्यूलिप बाग़ स्थापित हो चुका है. कई काश्मीरी किसान ट्यूलिप की खेती से लाभ कमा रहे है, उनके ट्यूलिप के फूल दिल्ली , मुंबई, बंगलुरू, और हैदराबाद में खूब बिकते हैं। एक अनुमान के अनुसार एक फूल को उगने , बेचने की लागत २० -२२ रूपये आती है और बिक्री से ३५ रूपया मिल जाता है तो प्रति फूल १० -१५ का शुद्ध लाभ मिल सकता है। इसी कारण फूल उगाने के लिए जो गंठियां ( बल्ब ) चाहिए होती हैं उनका व्यवसाय फिलहाल फूल उगने से अधिक लाभदायक है। नया नया ट्यूलिप बाग़ लगाने के लिए ये गंठियां खरीदनी होती है, जिनका प्रबंध , सरकारी पुष्प उद्यान विभाग को करना चाहिए। चूंकि ये गंठियां महँगी बिकती हैं ( यूरोप में १. ७५ डॉलर - ११५/- रु प्रति दर्जन , यानी १२ रुपये की एक ), तो नए नए उत्पाादकों को थोड़ी सी गंठियां खरीद कर अपनी ही गंठियां उगानी चाहियें।
ट्यूलिप ठंडी जलवायु का पौधा है इसलिए इसकी खेती उत्तरी उत्तराखंड में ही हो सकती है जहाँ बसंत ऋतू फ़रवरी अंत में शुरू हो जाती है जिसका आभाष प्यूंली के फूल दे देते हैं, जो दक्षिण से उत्तर को, ऊषणता के साथ साथ, खिलते जाते हैं। ट्यूलिप को खेती के लिए समतल/हल्के ढलान वाले खेत, हल्की अम्लीय मिट्टी ( पी एच ६ - ७ ), और अच्छी जल निकासी जरूरी है। खेतो में बढ़िया गोबर की खाद , प्रति १०० वर्ग मीटर ५०० किलो, अच्छी तरह जोत कर मिळा लेना होता है। फूलों के लिए परिपक्व गंठियों का साइज १०-१२ सेंटी मीटर परिधि का होना चाहियें। गंठियों को १५ सेंटीमीटर की दूरी पर ३० सेंटीमीटर दूर की कतारों में लगाना चाहिए। लगाने का उपयुक्त समय नवंबर दिसम्बर है। फूलों वाले बगीचे की गांठिया ४.-५ पत्तिया देती है और इन पर फूल मार्च अंत से आने शुरू हो जाते हैं। जो गंठियां कच्ची, कम उम्र की , होती हैं इन पर एक ही पत्ती आती है और उन पर कोई फूल नहीं आते। वे परिपक्व होने की अवस्था में होती हैं।
जब केवल गांठिया ही लेनी हों तो परिपक्व गंठियों में जब फूल वाली कोंपल आने लगती है तो उन्हें तोड़ दिया जाता है ताकि अतिरिक्त गांठिया पैदा होने लगें। गंठियों के ग्राहक उगाने वालो से सम्पर्क करते है जब की फूलों को बेचने के लिए उगाने वालों को बेचने वाले फ्लोरिस्ट ढूंढने पड़ते हैं।
नए पुष्प उत्पादकों को पांच किस्म के रंगों के कम से कम १०० , १०० गंठियां फूलों के लिए एयर ५० , ५० गंठियां , अतिरिक्त गंठी उत्पादन के लिए लगानी चाहिए, ताकि साल दर साल बाग़ का क्षेत्र बढ़ाने में आसानी हो।
दुनिया भर में ट्यूलिप के रंगीन बागों को प्रयट्टन से जोड़ा गया है तो उत्तरखंड में इसकी खेती को प्रोत्साहंन देने के लिए राज्य सरकारों, शहरों की म्युनिसिपालटियों, रेस्ट , गेस्ट हाउसों के प्राधिकरणों और मालिकों , झीलों , चरागाहों के स्वामी बन विभाग को, कृषि विश्व विद्यालय के शीत जलवायु कृषि परिसर को ( जिसका उत्तराखंड में होना अनिवार्य होना चाहिए ) देश विदेश से इसकी गंठियों को भारी मात्रा में ला कर इसकी खेती को प्रारम्भ करना चाहिए।
अधिक जानकारी और ट्यूलिप की खेती की तकनीकियों का प्रशिक्षण लेने का प्रबंध करने के लिए जिला राज्य बागवानी विभाग ( फ्लोरीकल्चर), कृषि विश्वविद्यालय से सम्पर्क कीजिये।
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