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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, July 2, 2015

बल्दुं घंडल, बौड़ु घांडी अर बोडिक मोबाइल टोन

Garhwal Religious Tour Memoir,
                             बल्दुं घंडल, बौड़ु घांडी अर बोडिक मोबाइल टोन 

                               मुंबई बटें जसपुर तक नागराजा पूजा जात्रा -12 
                             अविस्मरणीय धार्मिक -सांस्कृतिक यात्रा वृतांत -12                     
                                  
      
                                          जत्र्वै - भीष्म कुकरेती 
                         जब हम गौं पौंछां त घाम  अछ्लेणु छौ या अछल इ गे छौ पर बीच बड़ो भारी तपड़ा मा गौं हूण से जड्डूं मा बि घाम अछलेणो उपरान्त बि भौत देर तलक चिट्टु उज्यळ रौंदु। मि तै ये बगत देखिक अपण बचपनो याद ऐ गेन अर मि मठम एक रस्ताक बेडू डाळक पास मूंड मा बैठि ग्यों जै मूंड मा हम गोर चरैक ऐका जरूर बैठद छ।  मूंड क्वी बडु जि नी त बैठणम सुभीता रौंदि।  अब चूँकि गोर गाँव की चवद्दी मा पौंछ जांद छ अर ईख बिटेन रस्ता सीधो गौं कि स्नन्युं मा इ जांद तो ग्वेर गोरुं फिकर करण बंद कर दींद छ।  पर फिर बि अफरा तफरी का माहौल  हूंद छौ। कैक क्वी गोर नि ऐ हो या कति गोर  भ्युंटळ चट्वा हूंद छ तो वो पाणी पास भ्युंटळ (पेशाब करीं जगा ) मा पिशाब चटण व्यस्त रै जावन तो वै गोर तै लाणो अफरा तफरी लगीं ही रौंद छे।  यु समय अचानक व्यस्त समय सि ह्वे जांद छौ।  कबि कबि कै मौक बछर सन्निम भैर फुचि रावण अर गौड़ी पौंचि  जावो अर बछर दूध पे जावो तो ग्वेराकि खैर नी कि तू बेडु डाळक मूंड मा किलै बैठि रै ? हम सब ग्वेर इकम गप्प सप्प मारण एक आवश्यक क्रिया समजदा छया।  फिर हैंक रस्ता बि छयो जु जंगळ अर  अन्य सार्युं गांवका किनारा से संन्युं तरफ जांद छौ अर उखम चंद्रमोहन भैजिक कूड़ो पैथर बणी दीवाल मा बि लोग बैठ्याँ रौंद छा अर गोरमंगन आंद गोरुं तै दिखणा रौंद छ। ये बगत चूँकि सब्युंक  गोर घौर आंदा छया तो अफरा तफरी अफिक ह्वे जांदी छे।  एक बात जो मि याद करदो कि बल्दुं घंडल अर बौड़ूँ घांडीक आवाज से हम सब पछ्याण जाँदा छया कि कैक गोर ड्यार पौंछि गेन अर कैक गोर पैथर कखम तक पौंछि गेन। 

                    बल्दुं घंडल, बौड़ु घांडी एक सभ्यता छे , संस्कृति छे अर आवश्यकता बि छे।  कुयड़ लग्युं हो तो बल्दुं घंडल, बौड़ु घांडी से पता चल जांद छौ कि गोर कखम छन या रात बल्द -बौड़ हर्ची गए तो आवाज से पता चौल जांद छौ किबल्द या बौड़ कखम होलु। मीन गाँव १९७४ मा छोड़ी छौ अर आज २०१५ च तो सबसे बड़ो बदलाव इ ह्वे कि अब घाम अछलेणु छौ पर कखि बि ना तो क्वी गोर दिखे अर ना ही बल्दुं घंडल, बौड़ु घांडी सुणे।  असल मा अब खाली गांमा गोर  नामात्र का  ह्वेइ गेन अर गोर चराणो वा संस्कृति बि नि रै गे ज्वा  पैल छे। 
आठ दस मौक़ा गोर बि एकै गौड़ी।  इनमा ग्वेरुं छ्वीं क्या लगाण ! इनि सरा गाँव मा शिल्पकार ख्वाळम गिरीश दा का इ एक जोड़ी बल्द छन तो अब बल्दुं घंडल, बौड़ु घांडी आवाज कखन सुणन छे ?
                हाँ अब बल्दुं घंडल, बौड़ु घांडी का संगीत  की जगा मोबाइल टोनन लियाल।  बल्द अर बौड़ु की घाँड्यू  बनि बनिक आवाज कि जगा अब तरह तरह की मोबाइल टोन  से लोग अब समज जांदन कि आस पास क्वा च।  अब तो नब्बे साल की बौडिक मोबाइल टोन पर आवाज आंदि कि पंछी हुँदो उड़ के आंदो त्यार  पास।  अर यदि बोडी से पूछे जावो कि क्या बडा  जी का पास (सोरग ) जाणै इच्छा च ?  तो बोडी नराज ह्वेका बुल्दी - अपण बडा का पास त्वी जा ,  म्यार तो हथ खुट खूब चलणा छन।  यु तो माणन पोड़ल कि मोबाईल टोनन म्यूजिक तै नया नया आयाम देन अब एक पहाड़ी गाउँमा जॉज टोन सुणयांदो तो हम तै मोबाइल अविष्कारक तै थैंक्यू तो बुलण इ पोड़ल कि ना ? 
             हाँ चूँकि सब तै ये बगत ड्यार पौंछण पड़द तो लोगुं आण बढ़ जांद तो ये बगत मोबाइल टोनुं संख्या मा अचानक वृद्धि बि ह्वे जांदी।  यद्यपि हमर गांमा अबारी  बिजली नि हूण से मोबाइल चर्जिंग एक समस्या ह्वे गे छै फिर बि घाम अछलेणो बगत पर बल्दुं घंडल, बौड़ु घांडी संगीत की जगा रस्तों मा मोबाइल टोन से संगीत का मजा लुट्याणो बगत बि छौ। बस संगीत  का माध्यम बदलेन अर संगीत तो ज़िंदा च।  
                                

 अविस्मरणीय धार्मिक -सांस्कृतिक
   नागराजा पूजा जात्रा वृतांत का बाकी  भाग   13  में पढ़िए

Copyright @ Bhishma Kukreti 2 /7/15
bckukreti@gmail.com
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