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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, July 2, 2015

पातञ्जलि योग संहिता 37 --46

गढ़वाली अनुवाद - भीष्म कुकरेती 
[ आजकल योग की बहुत चर्चा है जो आवश्यक भी थी।  किन्तु आम लोग योग को केवल आसन तक सीमित समझते हैं।  जबकि योग एक जीवन शैली है।  पातञ्जली ने योग संहिता में योग का सारा निचोड़ दिया है याने सूत्र दिए हैं।  इन सूत्रों का नौवाड करते मुझे अति प्रसन्नता है। ]
                विशोका वा ज्योतिष्मती -३७ 
शोकरहित प्रकाशित प्रवृति मन की स्थिति तै बंधण वळि हूँदि

                 स्वप्ननिंद्राज्ञानआलम्बनं वा -३८  
सुपिन,  निद्रा (अवचेतन मन ) को आलम्बन करण वळ चित्त मन की स्थिति तै बँधण वळु हूंद।

              यथाभिमतध्यानाद्वा -३९  
या जु अभिमत /प्रिय हो वैक ध्यान से मन बंध जांद
          परमाणुपरममहत्वाअन्तोस्य वशीकरः -४०
जब उपरोक्त उपायों से चित्त एकाग्र हूणो योग्य ह्वे जांद तो वु पूर्ण वश मा ऐ जांद (वशीकर स्थिति )
        क्षीणवृत्तेरभिजातस्येव मणेर्ग्रहीतृग्रहणग्राह्येषु तत्स्थतदञ्जनता समापत्ति -४१ 
     राजस -तामस वृतिरहित स्वच्छ चित्त की अति निर्मल मणि का समान अस्मिता इन्द्रियां  स्थूल अर सूक्ष्म विषयों मा स्थिर ह्वेका ऊंका स्वरूप प्राप्त ह्वे जांद अर एकरूप ह्वे जांद
       तत्र शब्दार्थज्ञानविकल्पैः संकीर्णा सवितर्का समापत्तिः -४२
        वे समापत्ति मा से शब्द , अर्थ और ज्ञान का विकल्पों से भान हूंद वो सवितर्क (विचारशील ) समपत्ति (एकारूप )  हूंदी
            स्मृतिपरिशुद्धो स्वरूपशून्येवार्थमात्रनिर्भासा निर्वितर्क़ा -४३ 
 स्मृति को शुद्ध हूण पर अर्थमात्र सि भास हूण वळि अपण रूप से रहित निर्वितर्क समापत्ति च
         एतयैव सविचारा निर्विचारा च सूक्ष्मविषया व्याख्याता -४४ 

  ये  सवितर्क अर निर्वितर्क समापत्ति का निरूपण /व्यवस्थित ही से सविचार व निर्विचार समापत्तियां समजे जाण चयेंद 
                   सुक्ष्विष्यत्वं चालिंगपर्यवसानम् -४५ 
              सूक्ष्म विषयता (दृष्टिघटना )  प्रकृतिपर्यंत च
                        ता एव सबीजः समाधिः -४६ 
 उपरोक्त चार समापत्तियां इ सबीज समाधि बुले जांदन 



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