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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, July 6, 2015

अमोधभूति रजतमुद्राओं में शकुंतला और हिरन

Deer and Shakuntala on Amodhbhuti Coins &  Ancient  History of Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur
                   अमोधभूति रजतमुद्राओं में शकुंतला और हिरन 

                  Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  - 136                      
                                                हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 136                      

                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती  


                 अमोघभूति की मुद्राएं प्राचीन मुद्राओं के मुकाबले व सामयिक मुद्राओं के मुकाबले में अधिक आकर्षक, रुचिपूर्ण , कलायुक्त  हैं। 
कनिंघम के अनुसार अमोघभूति की मुद्राओं में सामने वाले भाग के दाहिनी ओर एक हिरन और सींगों के बीच खली जगह में बौद्ध चिंन्ह है। पैरों के बीच चैत्य चिन्ह है।  पिछले हिस्से में एक हिरण , कमल पुष्प लिए एक नारी है।  
      ऐलन अनुसार मुद्रा के सामने वाले भाग में दाहिनी ओर हिरण है। उसकी ओर कमल लिए लक्ष्मी खड़ी है।  उसका कमल युक्त दाहिना हाथ उठा हुआ है।  हिरन के सींगों  बीच नाग संकेत है तथा हिरण की पीठ पर रिक्त स्थान पर चतुर्भुज बना है जिसे विद्वान  चतुरबर्ग मानते हैं 
                      हिन्दू मिथकों में हिरन की कोई अहमियत नही है। लक्ष्मी का हठी व कमल से है।  अतः लगता है कि यह नारी शकुंतला है।  कण्वाश्रम स्रुघ्न से केवल ११२ किलोमीटर है और उस समय शकुंतला की कथा भी लोकप्रिय हो रही थी। अतः  मुद्राओं से अनुमान लगता है कि कण्वाश्रम , हरिद्वार , बिजनौर भी कुणिंद /स्रुघ्न राज्य के अंतर्गत थे। 
   सहजाति से प्राप्त एक मृण्मूर्ति में जो चित्र प्राप्त हुआ है उसे विद्वान कण्वाश्रम में दुष्यंत का प्रवेश मानते हैं।  (डबराल ) जो द्योतक है शकुंतला की कथा लोगों में प्रसिद्ध हो चुकी थी। 
  अमोघभूति की मुद्राओं में हिरन के चित्र में विवधताएं है। 
                      अमोधभूति की कलाप्रियता 
मुद्राओं से साग लगता है कि अमोघभूति बारीकी प्रबंधन में ध्यान देता  कलाप्रिय था।  उसने अपनी मुद्राओं में वेदी , बोधिवृक्ष , चैत्य , स्तूप , नन्दिपाद , त्रिरत्न , नाग , स्वास्तिक अंकित किये हैं।  ये सभी चिन्ह सामायिक है किन्तु क्लानिष्ट मुद्राएं प्रचलित कराने से अमोघभूति की मुद्राएं समकालीन मुद्राओं में से अलग से पहचाने जा सकती हैं।
                          अमोघभूति का महत्व 

उसने यवन शासन के अंत के लिए कार्य किया। 
अमोघभूति ने अन्य क्षत्रपों को भी यवनों से लड़ने में सहायता प्रदान की। 
 . मुद्राओं में यवन छाप उसकी मजबूरी थी किन्तु अमोघभूति ने उन मुद्राओं का भारतीयकरण कर मुद्राओं  विशेषता प्रदान की। (डबराल ) 



Copyright@
 Bhishma Kukreti  Mumbai, India 6/7/2015 
   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --137

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -
137


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