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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, July 1, 2015

सौण आलो , गदिरा भरेला ( डा शिवा नन्द नौटियाल )

डा शिवा नन्द नौटियाल 

जब मैना सौण को आलो 
बरखा होली गदिरा भरेला , स्वीँसाट होलो गाड को। 
काळा काळा बादळ आला , रंग मल्हार गाला 
अंधेरो होलो चाल चलकेली उज्याळो होलो धार को। 
थम थम मोर नाचला , मिंडखा टर्र टर्र बोलाला 
पैरा पोड़ला रस्ता टुटला चोट होली रात को। 
छाम छम के कोदो गोडेलो , कुयोड़ो होलो रात सि लगली 
जबतक कुटी दाथी हाथ मा , नाम नि होलो बाटा को। 
घाम की खुद सी लागली , छी छी होली पाणी की 
घाम आलो कमाण पोड़ली , रंग अनोखे सौण को। 
हरो तरो सभी जगा होलो , छोया फुटला जगु जगु मा 
पशु पंछी पाणी पाला , कुयेड़ो फटालो जिकुड़ी को। 
जब मैना सौण को आलो 
बरखा होली गदिरा भरेला , स्वीँसाट होलो गाड को।

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