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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, July 2, 2012

एक खुदेड़ गीत-कविता

कवि - डा. नरेंद्र गौनियाल  
 

सौणि सलोणि,मेरी सटूली.
कलसिणि आंखि झपन्यळी लटूली
आंख्युं मा तेरि,मै छौं बस्योंऊ.
तेरा रंग मा ,कनु छौं रस्योंऊ.

बड़ी-बड़ी आंखि,पतळी कमर.
लगी जयां त्वैते, मेरी उमर.

कन्दुड़ों मा तेरा,झुमका सुहान्दा.
धक्-धक् दिल मेरो, त्वैते बुलान्दा.

चमकीली दांत-पाटी गोल गलोड़ी.
कनि भलि लगद सोन्याळी ठोड़ी.

तेरा बाना मिन, क्य-क्य नि छोडि.
दगड़ वालों कु, दगड़ो बि छोडि.

तेरि याद औंद,मि बौल़ेई जांदू.
तेरि फोटू देखि,मि चैन पांदू.

जिकुड़ी मा मेरी गबल़ाट हूँणी.
तू भी छै तनि,इनु मिन सूणी

अपणी यी छवीं,कैमा लगेली.
अपणा यी हाल, कैमा बतैली

मौल़ो ही मन तेरो,कुंगल़ो ही गात.
कनु भलु होलू,तेरो-मेरो साथ.

मीठी-मीठी छवीं,भलि-भलि बात.
आंखि झपगिंद,कटि जान्द रात.

तेरि चलक्वार से,मै बि ह्वै गयूं लाल.
त्वेन  कनु ढ़ोळी, मैं म यू जाळ.

जिंदगी कु मोड़ यू,कनु भारी खोळ.
मैतै ह्वैगेयी, कनु  घंघतोळ.

तेरि याद आली त,आग भभराली.
गौळी मा मेरी, भडुळी लगाली.

तेरि खुट्यूं मा बि ,लगाली पराज.
कसिकै करिली तू, काम -काज

कनु तेरो दिल च,कनि तेरि काया.
जोगी का मन मा बि,बसिगे माया

मेरा मनै की, तू छैयी राणी.
हमरि य बात,कैन नि जाणी.
      डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार सुरक्षित....

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