कवि -डॉ नरेन्द्र गौनियाल
[गढ़वाली गीत , गढ़वाली कविताएँ, गढ़वाली पद्य साहित्य]
हैंका मुख पर झुवाल देखि, तू ख़ित्त ना हैंस.
अरे लाटा ! पैलि अपणु मुख,ऐना मा त देख.
तुमारा ये शौक से त ,ग़दर-गै मची जाली.
अब त कटेणी च जिंदगी,बस उदास सी.
हंसण-ख्यलणा का दिन, अब त चलिगीं
तू वख मि यख त बोल, मिलि सकला कख.
एक लपाग बि भैर आणु ,कैका बस मा नीं.
कुछ मन मा च त्यारो त ,बोलि दे तू चट.
ये लाटा ! फिर कबि ,मौका मिल ना मिल
आंदा-जान्दों तै पुछ्दां,ऊंतई बि देखि कखि.
नि बि दिखेंदा त गाणि त, हम कैरि सकदां.
मिटे सक दुन्या कु अन्ध्यरू,इनु त क्वी नि करदू.
बस सुद्दी सब अपणि-अपणि,दुकान चलाणा छन.
उंकी फितरत च कि ऊ, सिर्फ अपणा मन कि कर्दिन.
अपणा मन कि बात च कि मि, कुछ बोलि नि सकदु..
डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित
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