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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, July 16, 2012

पैलि अपणु मुख ऐना मा त देख -गढ़वाली कविता

कवि -डॉ नरेन्द्र गौनियाल
[गढ़वाली गीत , गढ़वाली कविताएँ, गढ़वाली पद्य साहित्य]

हैंका मुख पर झुवाल देखि, तू ख़ित्त ना हैंस.
अरे लाटा ! पैलि अपणु मुख,ऐना मा त देख.
इन ना चुटावा सिक्कों तै, सुद्दी जख-तख.
तुमारा ये शौक से त ,ग़दर-गै मची जाली.

अब त कटेणी च जिंदगी,बस उदास सी.
हंसण-ख्यलणा का दिन, अब त चलिगीं

तू वख मि यख त बोल, मिलि सकला कख.
एक लपाग बि भैर आणु ,कैका बस मा नीं.

कुछ मन मा च त्यारो त ,बोलि दे तू चट.
ये लाटा ! फिर कबि ,मौका मिल ना मिल

आंदा-जान्दों तै पुछ्दां,ऊंतई बि देखि कखि.
नि बि दिखेंदा त गाणि त, हम कैरि सकदां.

मिटे सक दुन्या कु अन्ध्यरू,इनु त क्वी नि करदू.
बस सुद्दी सब अपणि-अपणि,दुकान चलाणा छन.

उंकी फितरत च कि ऊ, सिर्फ अपणा मन कि कर्दिन.
अपणा मन कि बात च कि मि, कुछ बोलि नि सकदु..

डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित   

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