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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, July 16, 2012

Garhwali Theatre in Chandigarh

Presented by Sri D. D Sundariyal
गढ़ कला संगम चंडीगढ़ की पहली प्रस्तुति  "जौंल बुरांश " एक इनी प्रेम कथा
छाई जो ब्राह्मण लड़की और ठाकुर लड़का का भावनात्मक रिश्तों अर   सामाजिक
कानून वपारिवारिक बंधनो का ताना बाना माँ दुखांत नाटक का रूप सन 1980
गढ़वाली समाज घोर विरोध वाद विवाद बाबजूद  मंचित होई। नायक विजय तथा
नायिका रूपा (सते राम जुयाल कलावती जुयाल) सामाजिक पारिवारिक
प्रताड़ना से त्रस्त हवइकी फांस खणों विवश हुँदैन पर वीं जगा फर द्वी
बुरांश की डाली जामनि  जो सदनी फुली ही रैनी और गाँव समाज थाई
प्रेमियों कु बलिदान याद दिलाणु राई।डी0 डी0 सुंदरियाल "शैलज" की कथा,
पटकथा निर्देशन प्रस्तुति गीत, संगीत मनोरंजन की दृष्टि से दर्शक
कु  पसंद आई पर अंतरजातीय प्रेम कथा वै समयानुसार लोगु ते ज्यादा ठीक नि
लगी।
1979-80 का दोरान संगम द्वारा तीन प्रस्तुति "जौल-बुरांश" का अलावा देनी।
"घूंघटों" (ले 0 एन0 डी0 लखेड़ा), ओंसी-कु चाँद" " खंद्वार" (ले0 डी डी
सुंदरियाल), तीनी नाटकू निर्देशन चंडी भट्ट भारती करि।  "घूंघटों" शराब
दुष्परिणाम से बर्बाद परिवार की कथा ओंसी-कु चाँद अनाथ बालिका पर
अत्याचार (चाची द्वारा) पर आधारित घटनाओ कु विवरण कार्ड। ठाकुर सिंह
नेगी, स्व सुशीला नेगी , कलावती जुयाल, सुशीला सुंदरियाल, ड़ी
ड़ीसुंदरियाल, चंडी भट्ट भर्ती, सते राम जुयाल, एन ड़ी लखेरा  आदि कलाकरों
ने इन नाटकों में भूमिकाएँ निभाई। पलायन  समस्या पर आधारित खंद्वार नाटक
बहुत प्रसिद्ध हुआ एक गरीब किसान जो सड़क गैंग  में काम करने को मजबूर था
और जिसने बेटे को कृषि वैज्ञानिक बनाकर नए भविष के सपने देखे थे ॥टूट कर
बिखर गया जब बेटा परदेश नौकरी गया, अपनी बीबी को भी ले गया। उसकी माँ गम
में मर गयी और बूढ़ा हताश होकर अपने बेटे को श्राप दे गया। "अरे भाई...
अगर कूड़ि पुंगड़ी बांज नि रखणआइ    क्वी अपना नौनयालु ते एसकोल नि
भेजयान....." संवाद भीतर तक चिरा लगाई दिन्द। गरीब मंगतु मजदूर रूप माँ
स्व0 देवी परसद अंथ्वाल जी कु प्रकृतिक सजीव अभिनया कई बर्षू तक लोग
याद करना रैनी। भट्ट कु हास्य अभिनय (कल्या) नाटक की जान छाई। यूं सभी
नाटकू माँ नरेंद्र सिंह नेगी जी अन्य प्रसिद्ध लोक गीत कु सफल  प्रयोग
भी करे ग्याई। (जारी.....)
गढ़ कला संगम की नाट्य यात्रा-3

सन 1981 में "दानु देवता बुढु केदार" (ले0 डी डी सुंदरियाल "शैलज"
निर्दे0 चंडी भट्ट भारती) नई और पुरानी पीढ़ी के आचार विचारों की टकराहट
दिखाता है। गाँव के जाने माने प्रभावशाली आदरणीय पंडित  गजा धर जोशी (
ओं0पी0 धस्माना) जब बूढ़े असहाय होकर अफसर बेटे (विमल नेथानी) देसी बहू
(कांति नेथनी) के पास परदेश आते हैं तो ग्राम्य और शहरी जीवन के रहन सहन,
मर्यादा परम्पराओं की उलझनों में सभी पात्र  उलझते चले जाते हैं जिससे
कभी हास्यमय तो कभी कारुणिक स्तिथियाँ पैदा होती हैं। दोनों पीढ़ियों में
कड़ी का काम करते घरेलू नौकर (चंडी भट्ट) और पप्पू (गजाधर का पोता)
;अरिवार में समंजस्य बनाने का प्रयत्न करते रहते हैं। अंत में हताश,
निराश बूढ़ा समझोता कर वापस अपने गाँव चला जाता है। सम्पूर्ण नाटकीय
हलचलों वाला यह नाटक दर्शकोन्ने पसंद किया।

1981 से 1983 तक संगम ने तैड़ि-तीलोगी लोक कथा पर आधारित  ऐतिहासिक प्रेम
कहानी "धोलि-का-आंसु" का 5-6 बार चंडीगढ़, पानीपत, लूधियाना आदि शहरोंमें
मंचन किया। ब्रिटिश गढ़वाल राजशाही टिहरी गढ़वाल के दो बड़े घरानों की
रंजिश पर आधारित दुखांत प्रेम कहानी को दर्शकों का पूरा प्यार मिला।
इस नाटक के गीत संगीत की लोकप्रियता से लोगों ने इसे फिल्मबनाने के लिए
भी प्रेरित किया पर फ़ाइनेंस के अभाव में प्रोजेक्ट फ़ाइल हो गया। जसवंत
रावत और उर्मिला रावत के रूम में एक नई जोड़ी रंगमंच पर इस नाटक आई।
"धोलि-का- आंसु" नाटक चंडीगढ़ अन्य शहरॉ में कई बार मंचित हुआ था
मुरली धर -कुसुम नवनी (जो बाद में सोकार सिंह रावत द्वारा निर्मित फिल्म
"रामी बौराणी" में चर्चित रहे) पहली बार नायक नायिका के रूप में इस नाटक
में लाये गए थे। पहली बार गढ़वाली नाटकों में हारमोनियम तबला के अलावा
अन्य संगीत वाद्य यंत्रों, सिंथसाइजर, सितार , वाइलीन, मेंडोलिन आदि  का
प्रगोग किया गया। संगीत शास्त्री एन0 एस0 राठोर के निर्देशन में , मोहन
ठाकुर( तबला) , प्रकाश नेपाली, जीणू राम (बांसुरी), आदि कलाकारों को
संगम ने मंच प्रदान किया और सभी लोग 1996 तक संगम के सभी कार्यक्रमों के
हिस्सा बने रहे।

अस्सी के दशक में संगम ने जो अन्य नाटक मंचित किए उनमे "जगवाल", " आस
निरास" ,( ले0 एन0 डी0 लखेड़ा ) " रत्ब्योणा, "  " सर्ग दीदा पाणि-
पाणि.." . तीलु रौतेली" (ले डी0 डी0 सुंदरियाल शैलज) नए थे। पुराने
नाटकों को अन्य शहरों में मंचित किया गया

" जगवाल" अंधविश्वास में फंसे परिवार को चालाक तंत्रिकों द्वारा लूटे
जाने की कहानी है जिसमें डी डी सुंदरियाल द्वारा अंधे बाबा तांत्रिक की
भूमिका काफी सराही गई। आस निरास में टूटते सन्यूक्त परिवारों असहाय
बूढ़े लोगों की उपेक्षा को दर्शाता है। सुनीता जुयाल एवं परमानंद जुयाल के
रूप  में नए कलाकार इस नाटक में मंच पर आए। "रत्ब्योणा" विधवा विवाह की
वकालत करता है जिसमे पी धसमाना द्वारा लँगड़े फोजी का अभिनया आज भी
लोगों के जेहन में याद है।  इसी नाटक में संतोष रावत ने विधवा की मुख्य
भूमिका निभाई थी। "सरग दीदा पाणि-पाणि" पंचायत और ग्राम विकास समिति  से
लेकर  ऊपर तक फैले  भ्रष्टाचार, पढे लिखे  युवकों की बेरोजगारी, शराब
माफिया की गुंडागर्दी, राजनीतिक पतन को दिखाता है। इन सभी नाटकों को चंडी
भट्ट भारती द्वारा निर्देशित किया गया और अपने  हास्य अभिनय की छाप भी इन
नाटकों में दर्शकों के दिल में छोड़ने में कामयाब रहे    (जारी...)
To be continued…..
Garhwali, Uttarakhandi, Theatre, Stage Plays, Dramas

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