गढवाली -हास्य व्यंग्य साहित्य
चबोड्या- भीष्म कुकरेती
तैकि रांड ह्व़े जैन
[गढवाली हास्य साहित्य , गढ़वाली व्यंग्य साहित्य लेखमाला]
- ये भूलि ह्यां जु कुल्याणो बड़ो हौज बणणु छौ स्यू बणण बन्द ह्व़े ग्याई, ...
--किलै ए दीदि ?
- भ्रष्टाचार को अन्याव लगी गे. आनाळ ( बिलम्ब) को रोग लगी गे
- तै भ्रष्टाचार की औताळि खाण लैक क्वी नी रैन
-तै भ्रष्टाचार पर बुरळ (चींटी ) पोड़ी जैन
-तैको जड़ नाश ह्व़े जैन .
--ये जी ! जु गौंकु बाटो छौ वु बौगि गे
- कन ये ब्वारी! इन त कबि नि ह्व़े थौ.
- भ्रष्टाचार को घूणन अर धिवड़न बाटो कुरेदि दे
- सचो ब्रह्म होलू त बांज पोड़ी जैन तै भ्रष्टाचार क साखि
- ए पैणु ह्वाई त ह्वाई , हैंको पैण लैक नि राओ स्यू भ्रष्टाचार
-तै भ्रष्टाचार कि रांड ह्व़े जैन
--भिलन्कार पड़ी जैन तै भ्रष्टाचार को चौक-कूड़ मा
- ए बौ आज बि पाणि पेक सीण पोड़ल. आज बि राशन दुकान मा सड्यू इ सै ग्यूं नि आई .
-ह्यां स्यू दुकानदार द्वी मैना बिटेन किलै बौगाणु च बल राशन आज आलो, आज आलो..
- बौ ए ! भ्रष्टाचार को बिजोग पोड़ी गे .भ्रष्टाचार से पब्लिक डिस्ट्रिब्युसन सिस्टमौ अन्खर पंखर (अंग ) भंग ह्व़े गेन .
- तै भ्रष्टाचार का खुट मुख सौड़ी जैन
- तै भ्रष्टाचार ऐ लद्वडि डाळ लगी जैन
-- कोढ़ी ह्व़े जैन स्यू भ्रष्टाचार
-लुच्या ऐ जैन तै भ्रष्टाचार पर
-भगन्दर ह्व़े जैन तै भ्रष्टाचार पर
--मुक दिखाण लैक नि राओ स्यू भ्रष्टाचार
- ए अनुसूचित जाति अर बी.पी ओ तहत कूड़ो कुण मिलण छौ बीस हजार तू लेकी ऐ गौण गाणि क पांच हजार
-
हाँ ए ब्व़े ! देहरादून बिटेन चली त छया पूरो बीस हजार पण जिला, तहसील ,
ब्लौक , ग्राम प्रधान का चौकुंद आन्द आन्द चळि गेन बीस हजार अर हमर
बांठो आई बस पांच हजार
- तै भ्रष्टाचार ऐ कूड़ी खंद्वार ह्व़े जैन
-तै भ्रष्टाचार कि मवासी कु रगड़ ह्व़े जैन
- ए बरसक सौण मा बैगी जैन तै भ्रस्टाचारै कूड़ी-पुंगड़ी
- ऐंसू बग्वाळ खयाल त खयाल पण तै भ्रष्टाचार का स्व़ार
भार - अनाचार , अत्याचार नि खैन पैन बार त्योवारूं स्वाळ , भूड़ी , पकोड़ी
अर लगड़ी
- ये निर्भागी तू ऐंसू पास नि ह्व़े ? तू त बुलणो छौ बल फस किलास ऐली !
- गणितौ मास्टर बुल्दो छौ - म्यार इख प्राइवेट टयूसन म आ.
-साईंसौ मास्टर बुल्दो छौ घीयक घंटी ला
-प्रिंसिपल बुल्दो छौ बल म्यरा स्याळौ कोचिंग क्लास मा जा
-- निफटाळि लगी जैन तै भ्रष्टाचार को बुबा लालच -लोभ को
-- द्वढकि लगी जैन तै भ्रष्टाचार की ब्वे- इच्छा की, चाहत की
-- ये खड़ी फसल मा आग कैन लगाई
-- बड़ो भाई न खड़ी फसल पर आग लगाई
--खज्यात ऐ जैन भ्रष्टाचार को सगो भाई जळतमारी को , इर्ष्या को नाश ह्व़े जैन.
- निबौड़ू ह्वाओ यू भ्रष्टाचार,
--ताखिम तड़म लगी जैन - अफखवा विरती जु पैदा करदो भ्रष्टाचार
-ये किलै नि चौल दाखिल खारिज ?
--पटवारी बुलणो च लाओ नै किस्मौ दूण दैज
-- किलै नि कवी खड्यानु वीं भावना तै जु मांगदि बनि बनि भौणि दूण दैज
- ये म्यरो लाटा ! अस्पताल बिटेन नि लै तू दवाई ?
-- सरकारी डाक्टर बुलणो - म्यरो प्राइवेट क्लिनिक बिटेन ली जाओ खूब दवाई
--कुछ त स्वाचो इन किलै ह्वाई
- कुछ त कारो बल फिर भ्रष्टाचार की नि ह्वाओ घर -बौड़ाइ
-- बैठ बैठिक कुछ नि होण जब तलक करील्या ना भ्रष्टाचार की ठुकाई, पिटाई
-- सोच सोचिक कतै कुछ नि होण जब तलक करील्या ना भ्रष्टाचार की थिंचाई
--निंद भजाओ , बिज़ी जाओ अर करो तै भ्रष्टाचार की खड्डाउन्द दबाई
- तै भ्रष्टाचार की डांडी सजाओ
--तै भ्रष्टाचार की चिता जळाओ
--तै भ्रष्टाचार तै इन मड़घट मा जळाओ , इथगा जळाओ
-- बल भ्रष्टाचार दुबर जनम लीण लैक रै इ नि जाओ
Copyright@ Bhishma Kukreti , 16/7/2012
-गढवाली हास्य साहित्य , गढ़वाली व्यंग्य साहित्य लेखमाला जारी ...
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