मुखै ऐथर सौ चरेतर करदीं लोग
पीठ पीछ सर्र , भूलि जैन्दि लोग I
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गाळि दियांला , नुँना कि म्वरदा
फिर भी रोज नई, गाळि दिंदि लोग I
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ऊंस चट्याँन , तीस नि जांदी
तीस बढ़ाणौ , ऊंस पिंदी लोग
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म्वरणु भजुणु अब आम बात छ
बस गीत मुंड हलैअ , मिसांड रंदी लोग I
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उज्याड़ बाड़ खांद , चुप द्यखदा रंदी लोग
निगुसें का ढांगा थैं , कच्यांद रंदी लोग
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सर्वाधिकार नेत्र सिंह असवाल, नई दिल्ली
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