कवि- डा. नरेंद्र गौनियाल
वींका गलोड़ी मा तिल,जब देखि मिल.झिल-मिल,तिल-तिल,ह्वैगे मेरो दिल.
पैली छै बिगरैली लटुली,लंबी-सुनहरी.
मेहँदी लगण से अब,बदलीगे रंग-ढंग ही.
आंखि कळसिणि,बड़ी-बड़ी,जंगी बटन जनि.
अपणि त हर्चिन्द होश,वा द्यखदी च जनि.
ककड़ी का सि पिपरा,सुरसुरा कंदूड़ वींका.
ज्वानि को रंग बि,झल तौं मा दिखेंदा.
नकब्वड़ी पतळी, खड़ी,तोता का चूंच जनि.
ब्वलिंद कै तै कच्याणो, तैयार होलि जनि.
मुंगरी कि सि बीं,चमकीली दांत-पाटी.
रैंद डौर कि कबि, न दे कट काटी.
होंठड़ी वींकी लाल,नारंगी सि फ़ोळी.
रसीली,नशीली,डसीली,जिकुड़ी मा गोळी
अंगूल़ा वींका, सींक सि बरीक.
रंग चढकि लगदीं,तीर सरीक.
खुट्यू मा वींका, लगदीं पराज.
गौळी मा भडुळी,लगणि च आज.
खुद मा कैका ,वा होलि आज.
क्वी नि जणदू,वींकु यु राज.
डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित...
No comments:
Post a Comment
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments