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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, July 10, 2012

वीरेन्द्र पंवार की गंजेळी कविता (गजल)

वीरेन्द्र पंवार की गंजेळी कविता (गजल)
 
[गढवाली गजल, उत्तराखंडी भाषाई गजल, मध्य हिमालयी गजल, हिमालयी गजल, उत्तर भारतीय क्षेत्रीय भाषाई गजल , भारतीय क्षेत्रीय भाषाई गजल , दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय भाषाई गजल , एशियाई क्षेत्रीय भाषाई गजल , लेखमाला ]
 
क्वी हाल नी दिखेणा चुचौं कुछ करा
पौड़ छन  पिछेणा चुचौं कुछ करा
 
नांगो छौ त नंगी ही रेगी नांग
तिमला छन खत्येणा चुचौं कुछ करा
 
अज्युं तलक बी मैर कखी त बांग देंद
कखि नि ऐ बियेण्या चुचौं कुछ करा
 
छाडिकी फटगीक  बीं बुखो इ पै
चौंळ छन बुस्येणा चुचौं कुछ करा
 
रड़दा  पौड़ टुटदा डांडौ   देख्यकी
ढुंगा छन खुदेणा चुचौं कुछ करा
 
द्व्वता सब्बि पोड्या छन बौंहड़
झणि कब होला दैणा चुचौं कुछ करा
 
Copyright@ Virendra Panwar, Paudi, 10/7/2012
गढवाली गजल, उत्तराखंडी भाषाई गजल, मध्य हिमालयी गजल, हिमालयी गजल, उत्तर भारतीय क्षेत्रीय भाषाई गजल , भारतीय क्षेत्रीय भाषाई गजल , दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय भाषाई गजल , एशियाई क्षेत्रीय भाषाई गजल , लेखमाला जारी 

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