वीरेन्द्र पंवार की गंजेळी कविता (गजल)
[गढवाली
गजल, उत्तराखंडी भाषाई गजल, मध्य हिमालयी गजल, हिमालयी गजल, उत्तर भारतीय
क्षेत्रीय भाषाई गजल , भारतीय क्षेत्रीय भाषाई गजल , दक्षिण एशियाई
क्षेत्रीय भाषाई गजल , एशियाई क्षेत्रीय भाषाई गजल , लेखमाला ]
क्वी हाल नी दिखेणा चुचौं कुछ करा
पौड़ छन पिछेणा चुचौं कुछ करा
नांगो छौ त नंगी ही रेगी नांग
तिमला छन खत्येणा चुचौं कुछ करा
अज्युं तलक बी मैर कखी त बांग देंद
कखि नि ऐ बियेण्या चुचौं कुछ करा
छाडिकी फटगीक बीं बुखो इ पै
चौंळ छन बुस्येणा चुचौं कुछ करा
रड़दा पौड़ टुटदा डांडौ देख्यकी
ढुंगा छन खुदेणा चुचौं कुछ करा
द्व्वता सब्बि पोड्या छन बौंहड़
झणि कब होला दैणा चुचौं कुछ करा
Copyright@ Virendra Panwar, Paudi, 10/7/2012
गढवाली गजल, उत्तराखंडी भाषाई गजल, मध्य हिमालयी गजल, हिमालयी
गजल, उत्तर भारतीय क्षेत्रीय भाषाई गजल , भारतीय क्षेत्रीय भाषाई गजल ,
दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय भाषाई गजल , एशियाई क्षेत्रीय भाषाई गजल , लेखमाला
जारी
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