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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, July 10, 2012

चुप बि कारा,मानि जावा.***(जनसँख्या वृद्धि अर लिंग भेद पर एक रैबार )

कवि- डा, नरेंद्र गौनियाल

एक द्वी ही भौत छन,नौनु हो या नौनि दा.
होलि मुश्किल सैंतणा की,निथर तब हे दिदा.
             बिंडी ह्वाला तब क्य खाला,पुट्गी राली खाली दा.
              सबि नंगा-भूखा उन्नी राला,तब क्य होलू हे दिदा.
ल्यखणु-पढणु, झुल्ला-गफ्फा,आलो कख बिटिकी रे.
 फिर एक बन्दा अर सौ धंधा,तब क्य होलू हे दिदा.
               भर्ती हूणू इस्कुलों मा,ह्वैगे मुश्किल यूं दिनों.
                ढेबरा-बखरा ही चराला,नौनि-नौना हे दिदा.
नौनि-नौनु एक ही छा,फरक तुम कुछ नी करा.
एक नौना का ही बाना,थुपड़ी नौन्युंकि ना लगा.
                छैंयी पडीं गलोड्यों मा वींकी,आंखि बैठीं क्वार छन.
                 फिर एक बि हैंकु ह्वै जालु,तब क्य होलू हे दिदा.
मेरि बात सूणि ल्यावा, टक लगैकी ध्यान से.
हाथ ज्वड़दू चुप बि कारा,मानि जावा हे दिदा..
               डॉ नरेन्द्र गौनियाल ...सर्वाधिकार सुरक्षित

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