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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, July 15, 2012

वीरेन्द्र पंवार का कुछ गढ़वळि दोहा

यखुली रैगिन गाणि - स्याणि बूड बुड्या लाचार
गौं से इत्गा इ रिश्ता रै गे छंचर अर ऐतवार
***
मयाळदु ऐ छौ शहर जनै मंख्यात का संग
चार दिनों का मेल मा रंगगे शहर का रंग
**
सिकासौर्यून फौंस्यूंमा उलटा ह्व़ेगेनि काम
भाषा बूड़ी दादी सि कूणा मा ह्यराम
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गबदू दादा सोचणु च होणु छ तैयार
परधानी को मौक़ा मिलु ह्वेजा नया पार

Copyright@  Virendra Ppanwar , Pauri

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