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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, July 23, 2012

ऊखै फिकर... २ एक गढवाली कविता


कवि -डी डी सुंदरियाल "शैलज
फिकर त कवि-गीतारू भि छ
सब बुनान गढ़वालि लिखा
गढ़वालि सीखा, गढ़वालि बोला
(निथर हमरु लिख्युं कैन बिंगण)
पर वूंका नोन्याल गढ़वालि नि जणदा
अपणई दादि-दादा नि पछेणदा।
गढ़वालि सभा सोसेटि जगा-जगा
बस्ग्यली च्यूँ सि जमी छन
गढ़वाली गीत, कविता, ड्रामा त क्या
लोग फिल्म तक बणाना छन
पर दगड़ी-2 बांबे-दिल्ली कूड़ा
भि चिणआणi छन
गढ़वाल रीतु करि सर्या दून्याम फैलाण
य क्वी कम बात त नी च
इन त नी च कि
वूं तै ऊखै फिक्रर नी च।

डी डी सुंदरियाल "शैलज" , 49 शिवालिक विहार, जीरकपुर (पीबी)
9501150981
कवि को प्रवासियों की अपने गांवों की उदासीनता देखी नही जाती और संस्कृति भंजक वाली प्रवृति से परेसान भी  हो रहे हैं 

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