भीष्म कुकरेती
[व्यंग्य, व्यंग्य परिभाषा , व्यंग्यकार के कर्तव्य , व्यंग्य व्याख्या ]
व्यंग्य असल मा कुछ नी च एक बात बुलणो बिगळयूँ ब्यूंत च. जन कि छ त बडी
गितांग पण क्या करण जनम बिटेन जुकाम रौंद त स्या गीत उन्नी भौण मा गन्दी.
मीन घड्याइ /स्वाच बल व्यंग्य क्या कौरी सकुद
चबोड्या
साहित्यकार अजम (नि हिलण वाळ ) राजनैतिक व्यवस्था तै हलकै सकुद- द्याख च
आपन देखी ह्वाल बल एन.सी.आर. क किताब का शंकर को चखन्यौर्या रिखडौ न
आंबेडकर वादी अर नेहरु बाद्युं कि निंद हराम कै.
चबोड्या साहित्य अजाण तै सजाण /सुजाण, अजाक तै समजदार अडबंग तै ढंगौ बणै दीन्दो.
जै पर व्यंग्य करे ग्याई वो अजाप (श्राप) दीणो तैयार रौंदू.
मसखरी मसखरी मा साहित्य अटकण तै सटकण मा बदली दीन्दो
असली चखन्यौर्या लिखाड़ वी च जो अटाक (रस्ते से हटकर) साहित्य द्याओ .
मजाकिया ब्यूंत मा लिख्युं साहित्य भ्रष्टाचारियूँ तै इन अटेरदों जन हम धुयाँ झुल्ला अटेरदां
अनाचार्युं की खोज व्यंग्यकार इनी करद जन बुल्यां कै चिंचुड़ या अट्टा कि खोज ह्वाओ
व्यंगकार अजब्याळि पर नजर डाळणु रौंद अर दगड मा अग्वाड़ी बि देखणु रौंद याने अडिन्ठा तै दिखवळ बणान्दू
व्यंग्यकार अदखिचरी बातुं मजाक उड़ान्द .
अदलती जनता क बात लोगूँ तक व्यंग्यकार पौन्चान्दो अर अदानो तै रस्ता दिखांदु
अनमनि भौण का व्यंग्य जादा असरकारी होन्दन.
जो देस, समाज का अन्याड़ (नुकसान) करदन वुंकी बेज्जती बि व्यंग्युं मा हूंद.
सीदा लोगूँ दगड असली व्यंग्यकार की अपड़ीयूंत होंद.
अपत्यारु/ अणभर्वस्या अर अपरज्जी/अराजक नेता या अप्सरों पर चिरोड़ा मार्दन.
देस का, समाज का आंकियूँ (दुश्मन) या देस-समाज का आंखुर्यौं (वैर की भावना) का पर्दाफास बि व्यंग्यकार करदो
अळगस्युं पर चबोड़ से खूब मार पद्दी
व्यंगकार समाज मा औ-बटाउ (बेघरबार ) वळु हकौ छ्वीं करदो
चबोड्या साहित्य अबिंड़ो/ अणबुल्या, असूर लोगु तै अड़ान्द च
बकै अगवा ड़ी अंकुं मा ....
copyright@ Bhishma Kukreti 12/72012
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