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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, July 19, 2012

मेरि मांजी--डॉ नरेन्द्र गौनियाल कि गढ़वाली कविता


  कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल
[गढवाली गीत, गढ़वाली कविता, उत्तराखंडी गीत, उत्तराखंडी कविता, हिमालयी गीत , हिमालयी कविता ]

तेरा हाल देखि मांजी, मेरि गैळी उबाई.
टप-टप मेरि आंख्यों,पाणि ऐ ग्याई.
कनि छै ब्वे तू यखुली,यखुली-यखुली.
ससुराल चलि गैनी,सबि दीदी-भुली
चलि गैना परदेश,मेरा भाई-भौज.
तू छै ब्वे अफु रूणी,बैठ्याँ हम मौज.
पुंगड़ी-पटळी सबि,फुंड राख बांजी.
यकुलो जीवन कसिकै ,रैलि तू मांजी.
लाचार छौं मेरि मांजी,मि जि क्य करदु.
यख-वख कख-कख,मन मि धरदु.
मन त करद मांजी, मि बैठूं तेरो पास.
मेरि बाटी ह्वैगे न्यारी,कनि पड़ी फांस.
फागुणा का मैना मांजी,पुंगड़ी मा रैली.
डाल़ा फ्वड़दा तेरा हाथों,पड़ी जालि छैळी.
मौल्यारा का बगत बि,निंद त्वे नि आली.
हाथ-खुटी दुखाली तेरि, पिंडळी पिड़ाली.
हाथ-खुटी तिड़ी होलि,कसी कै हिटाली.
तेरि नांगी खुट्यूं मांजी,गारी बिनाली.
गौं-गल्यो कि दीदी-भूल्यो,मेरि ब्वे बि देख्यां.
लखडु-पाणि कि बि कुछ, तुम मदद करि दियां.
गाँव का दीबा-भूम्यां,तुम दैणा हुयाँ.
मेरो घर-गौं मा सबि,राजी-ख़ुशी रैंया

     डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार सुरक्षित (narendragauniyal@gmail.com )
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