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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, July 5, 2012

बिष्ट बूबाजी******एक गढ़वाली कथा

कथाकार- डा. नरेंद्र गौनियाल
 

काफलागैरी पिर्मू का ब्यो का दिन हम लोग न्यूतेर मा जाणा छाया.उकाळी का बाटा का बाद सड़क मा पहुँची के थ्वडी देर सुस्ताण बैठि गयाँ.सड़क का किनर पर एक अंग्रेजी अखबार कु टुकड़ा छौ. बिष्ट बूबाजीन भुयां बिटि अखबार कु पन्ना उठे कि द्वी हाथों मा पकड़ी अर दड़ा-दड पढ़न लगी गईं.मि हक्चक ऊंतई देख्दू रै गयूं.जु मन्खी अपणु नौं हिंदी मा बि बड़ी मुश्किल से लिखी सकदा छाया ,ऊ फ़टाफ़ट अंग्रेजी .....? मेरी त खोपड़ी चकरे गे.मिन समझी कि बूबाजी पर क्वी द्यब्ता य भूत ऐगे.मि पुछ्नु कि बूबाजी क्य ह्वै तुमते ? अर बूबाजी मुल-मुल हैंसदा अख़बार पढ़द रयान.बाद मा बताई कि अंग्रेज साब का दगडी सीखी थोड़ी-भौत.उन बूबाजी निरट अनपढ़ छाया.
           बहुमुखी प्रतिभा का धनी बिष्ट बूबाजी जमणधार गौं अर नजीक सर्या मुल्क का गार्जियन छाया.गौं कु गरीब-अमीर सब ऊंकु तै एक समान छौ.हर मवासा का दुःख-सुख मा ऊ शामिल हूंदा.सदाबहार मुल-मुल हैंसी का दगड ऊ लोगोँ कु बि खूब मनोरंजन करदा छाया.हाजिर जबाबी मा ऊंकु क्वी जबाब नि छौ.क्वीई बनावटीपन बि ना.अकबर का दरबार मा बीरबल का जनि ऊ सरि गौं-मुल्क मा मनोरंजन अर बुद्धि-विवेक कु खज्यनु छाया.दुःख-सुख,खैरि-बिपदा,ब्यो-बरात,पूजा-पाती हर मौका पर ऊंकु अलग ढंग छौ.उंकी छवीं सूणि कि लोग अपनों बड़ो से बड़ो दुःख बि बिसरि जांद छा.
          कुछ लोग समाज मा कब्बि-कब्बि इन बि पैदा ह्वै जन्दीन जु अपणा आप मा एक मिशाल बणी जन्दीन.इनि एक महान विभूति छाया गुजडू पट्टी का जमणधार गौं मा स्व० श्री खुशाल सिंह बिष्ट जि .अजी साब क्य बोलि सक्दान ..पण  समझो गजब कि पर्सनालिटी.हमन त ऊंका फुल्यां जूंगा अर अध् फुल्यों बर्मंड ही देखि.अपणा बचपन से लेकि ऊंका आखिरी दिनों तक हमन ऊंतई एक जनु ही देखि.
            गौं का हरेक परिवार दगड़ ऊंको निकट सम्बन्ध छौ.हर ब्यो-पगिन मा भण्डार (स्टोर) कि ड्यूटी उंकी ही रैंदी छै.हैंका का सुख से सुखी अर दुःख से दुखी होण वल़ो इनु इन्सान मिन हैंकु क्वी नि देखि.कैकि चीज पर क्वी निंगा ना. खाण -पीण मा भौत मितव्ययिता रखदा छाया. द्वी घुसळी सुबेर कल्यो का टैम पर अर द्वी राति खाणा का बगत.हौरि खाणो  जिद्द कन पर बोल्दा छा कि बुढ़ापा मा मशीनरी कमजोर पड़ी जांद.तुम लोग जवान छा,लक्कड़-पत्थर सब हजम कैरि सकदा.
            तब हमर गौं मा स्यारा(धान कि रोपणी ) मिलि जुली के लगदा छाया.बूबाजी सेरा लगाण वलोँ का वास्त रोटी,साग,परसाद बणान्दा छा.मर्द लोग पाटा सांदा अर ब्यटुला धान लगन्दा छाया.बूबा जि कि ड्यूटी,च्या पिलाने अर खाणु खिलाने रैंदी छै.सेरों मा इनु आनंद आन्दु छौ कि क्य बुन तब.(अब त सेरी-घेरी सब बांजी पड़ी गैनी.)
        बूबाजी समय का बड़ा पाबन्द छाया.सबेर जल्दी उठ्णु अर राति जल्दी से जाणु.खाली कबी नि रैंदा छाया. बैठि बैठि कै बि कुछ न कुछ करणु उंकी आदत छै.चौक मा बैठ्याँ जब लोग छवीं -बत्त लगान्दा,तब बि ऊ दगड़ मा थाड़ मा जम्यूं घास-पात चुंडदा छाया.खेती का काम तै ऊ बोल्दा छा कि यू कृषि कु पेपर छा सबसे बड़ो अर सबसे कठिन.पण छा यू कम्पलसरी...नौकरी-चाकरी,व्यापार,काम-धंधा सब कृषि का समणि कुछ नि छन.रुपया-पैसा त कुछ बि करि कै कमाए सकेंद पण बिन खेती का सब कुछ बेकार च.अगर खेती नि होलि त अनाज पैदा नि होलू.तब सरि दुन्या क्य खाली.?मंखिं त सदनि अन्न ही खाण.रुप्या खैकी पुट्गी नि भोरे सकेंदी.
             भारी ग़मगीन वातावरण तै बि ऊ अपणि स्वाभाविक हास्य वृति से हल्कू-फुल्कू बणे दीन्दा छा.गौं मा जब क्वी बुड्या -बुढडी  सख्त बीमार हून्दो त बूबाजी बोल्दा छा कि ,''टिकट त कटिण वलो च पण अबी जब तक सीट खाली नि हून्दी,तब तक कुछ नि हूंदू.जब ओर्डर ऐ जालो,तब अफु ही सटगंद बिन बतयाँ.ऊ बोल्दा छा कि ब्यटाओ ..मुर्दा का दगड बि आज तक क्वी नि गै.अर सदनी भूकी बि क्वी नि रहे.यू माया जाल इनु छा कि मुर्दा फुकी के कुछ देर मा ही मन्खी फिर काम-धंधा पर लगी जांद.
             अपणा आखिरी टैम पर जब बूबा जि बीमार ह्वैनी त ऊं खबर भेजि कि मै तै देखि जा.मि द्वी अनार कि बीं अर कुछ दवे ल्हेकी  घार गयूं.मिन बोलि कि बूबाजी तुम भौत कमजोर ह्वै गयां.तुमते इलाज का वास्त दिल्ली भेजि द्यून्ला.वख तुमरो नौनु,ब्वारि,नाती तुमरि देखभाल कारला.इलाज बि ठीक ह्वै जालो...बूबाजीण मेरो हाथ पकड़ी अर बोले,''बेटा मिन  अब कखि नि जानू.अब आखरी टैम ऐगे.जिंदगी भर ईं कूड़ी  मा रयूं.तुम सब्बि गौं वालो दगड़ जिंदगी बताई.तुम सब लोग म्यारा अपणा छा.सारा गौं अर मुल्क मेरो अपनों छा.मि दिल्ली चलि जौंलू त तुमन एकन बि मिताई लखड़ो नि दे सकणु.मेरी कुटमदरी वलों का भाग पर मेरी सेवा कनि होलि त ऊ मीम आला.जिंदगी कु दुःख-सुख मिन तुमारा दगड यख देखि त सिर्फ म्वार्ने खातिर दिल्ली किलै जौं.अप णा उद्गार व्यक्त करि कै ऊंको हस भोरी कै ऐगे.उंकी आन्ख्यूं मा मिन पैली बार आंसू कि धार देखि.मेरो मन बि दुखी ह्वैगे..मेरा बि आंसू टपगण लगी गईं. बूबाजिन बोलि,''बेटा मैते देखि गे तू.अब दवे कि जरूरत नि छा.बस जैदिन चलि जौंलू,जरूर एक लखड़ो धरनों ऐ जै. ऊंको प्यार,विश्वास अर इच्छा शक्ति देखि कै मि सन्न रै गयूं.बूबा जि का दगड उंकी घरवाली बि छै.बाद मा ऊंको नौनु,ब्वारी,नाती बि ऐगेनी.
             एक दिन ऊ ईं दुन्य छोडि कै चलि गईं.सरि गौं का लोग शोक मा डूबी गईं.देवलगढ़ नदी का श्मशान घाट पर  ऊंको अंतिम संस्कार ह्वै.मि बि लखड़ो दीणो गयूं.बूबा जि कि चिता धू-धू करि जळी गे.उंकी याद हमरि जिकुड़ी मा बसीं रैगे.ऊंका बिचार,संस्कार,प्यार-प्रेम सदनि याद आन्द..
            डॉ नरेन्द्र गौनियाल.. सर्वाधिकार सुरक्षित ...       

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