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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, July 4, 2012

हिसाब*****गढ़वाली ननि कथा

कथा--- डा. नरेंद्र गौनियाल  

हमर गौं का बगल मा च मैलगाँव.यख छाया एक संतू काका अर उंकी घरवाळी सावित्री काकी.काकी त अब भग्यान ह्वैगे अर काकाजी भाबर अपणि नौनि का दगड़ चली गैनी.संतू काका पोस्टमैन छाया.सरकारी नौकरी  छै पण अपणा गौं से दूर.एक हफ्ता मा ही घौर आंदा छाया.
         सावित्री काकी गौं मा ही काम-काज मा घुसेणि रैंदी छै.शरीर भौत कमजोर पण लोभ तै कख औंद चैन.लगीं रैंदी छै रक्कोडिकी.कुछ काका बि चैन से नि रैणी दींदु छौ. छुट्टी का दिन ही लग्यूं रैंदु छौ घचर-घचर. यख मा इनु ना,वख मा उनु ना.काकी का तिन्गड़चा लगे दींदु छौ.जोग बि इनु खोटु कि एक नौनि का पिछ्न्या  हैंकि नौनि.बर्स्वन्या ह्वैगैनी पण एक बि सारू सि ना.काका-काकीन बि एक नौना का बाना नौन्यूं कि थुपड़ी लगे दे.पट्ट छै छोरियों का पिछ्नाएँ एक ह्वै बि पण ऊ नि राई.
        अब त काका -काकी द्वी जनकि बौल्ये गईं.बड़ी मुश्किल से कुछ महीनों मा ठीक-ठाक ह्वैनी. पण हे निर्भगी जोग ! काकी तै राजयक्ष्मा रोग (टीबी )ह्वैगे.काकाजिन इलाज करी पण कबी कखी,कबी कखी.ठीक से इलाज नि ह्वै.आखिर काशीपुर अस्पताल मा जैकि एक्स-रे,खून-बलगम जांच का बाद टीबी कु इलाज शुरू ह्वै.कुछ दिन इलाज का बाद काकी का मुख पर कुछ पाणि ऐगे.काकाजीन हर्बी फिर लापरवाही शुरू करी दे.एक साल तक लगातार इलाज नि ह्वै.अर काकी फिर बिमार पड़ी गे.तब काकाजी एक दिन दवे कि पर्ची लेकी ऐगेनी.
        काकन बोली -डॉ साब नमस्कार.
        मिन बोली -काकाजी नमस्कार .क्य हाल छन. कनि च अब काकी ?
         काकाजिन बोली-अरे ब्याटा क्य बुन.काकी त फर भौत बिमार पड़ी गे.
         मिन बोली-तुमन बाल इलाज नि कारू पुरु.टीबी कु इलाज साल भर करदा त काकी बिलकुल ठीक ह्वै जांदी.
         काकाजिन बोली-अरे डॉ साब क्य बुन तब.ह्वैगे गलती.पण अब त हालत भौत खराब च.
         मिन बोली-तुम तुरंत ऊंतई अस्पताल लिजावा अर भर्ती करी द्या.
          काकाजी-अब त क्वी उम्मीद नि छा.तुम ईं पर्ची से द्वी दिन कि दवे दे द्या.तब बचीं रैली त देखि ल्यूला.
मिन ऊंतई द्वी दिन कि दवे दे.काकाजीन  पूछी कि कत्गा ह्वै.? मिन बोली कि चालीस रुपया ह्वैगेनी.काकाजिन अपनों बटवा निकाली कै सौ रुपया कु नोट हैंका हाथ पर रखी,दस रुपया देकी बोली-बाकी हैंका दिन..मिन बोली काकाजी तुमारा हाथ मा त यू सौ रुपया छन.काकाजिन बोली-ब्याटा क्य बुन तब.आज मेरो ठुलू जंवाई अर समधी अयाँ छन वींकी खबर लीणो.तौन एक अद्ध्या त जरूर ही पीण.अर कुछ रुपया बचि जाला त  दगड़ मा नमकीन कि थैली बि त लीण.
 
Copyright @ Dr .Narendra Gauniyal

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