कथाकार- डा. नरेंद्र गौनियाल
ब्वे-बाप बचपन मा ही स्वर्गवासी ह्वैगे छ्या.अब त उंकी अन्द्वार बि बिसरि गे.हम छवटा-छवटा सि इस्कूल जान्द दा सदनि बंदरी तै सड़क का किनर गोर-बखरा चरांद द्यखदा छ्या.ऊ तब बि आण-जाण वलों अर इसक्वल्या छोरों मा बीड़ी मंगदु छौ.पुराणा,थेकल्यां लारा,मैल से चिपक्याँ लटुला अर बारा सींकों कु एक टुट्यू छतल़ू बस यी छै वैकी पछ्याण.
काका-काकीन अपणा नौनौं तै त इस्कूल भेजी पण बंदरी तै ग्वैर बनै दे..द्वी यकुळी रुखु-सुखु एक गफ्फा का बदल ऊ दिन भर काम-काज मा जुट्यों रैंदु.राति ऊ छनुड़ा मा ही से जांदू अर सुबेर गोर-भैंसों कु मोल सोरी कै थुपड़ी लगान्दु..घौर मा ऐकि लखड़ू-पतड़ू,खैड-कत्यार सोरणु,नवाल़ा बिटि तीन-चार कसेरा पाणि ल्याणु,इनि कतगे छवटा-म्वटा काम करदू छौ. ग्वर म्यलाक से पैली भैंसों तै पाणि देकी मारा मारि मा द्वी-चार गफ्फा भात सळकैकि कांधी मा कुल्याड़ी अर कमर मा ज्यूड़ी लसगे कि गोर-बखरों तै मेली कै डांड ल्ह़ी जांदू.बस वैकी रोज कि य ही दिनचर्या छै.
इस्कूल भले ऊ कबी नि जै सको,पण इस्कूल जान्द बगत सदनि इस्क्वल्या छोरों तै द्य्ख्दु छौ.इस्कूल जाणे-आणे टैम पर ऊ गोर-बखरों तै सड़क का नजीक ले आन्दु छौ.इसक्वल्यूं अर आंदा-जांदा लोगोँ से ऊ रोज बीड़ी मंग्दु छौ.द्वी बीड़ी मांगी कै ऊ एक तै कंदूड मा लगे दींदु अर हैंका तै जलाणो माचिश बी मंग्दु छायो.बीड़ी सुल्गैकी ऊ मुंड हलैकी मुल-मुल हैन्सदु.बीड़ी का दगड़ द्वी-तीन तिल्ली बी मंग्दु छौ.बाद मा कैइ चिफल़ा ढुंगा पर कोरि कै बीड़ी जलांदु छौ.
पौड़ी बिटि डीएम् साब धुमाकोट-नैनीडांडा का दौरा पर अयाँ छया.ऊ धुमाकोट तहसील बिटि जीप-गाड़ी से अदालीखाल पी डब्ल्यू डी बंगला मा जाणा छया.संगल्या खाळी का समणी बंदरी तै जीप औंद दिखे.वैते बड़ी देर बिटि बीड़ी कि तलप लगीं छै.पैली द्वी-तीन पैदल जाण वलोंन वैतई बीड़ी नि दे.एक ठ्यल्ला बि गै,वैन बीड़ी त नि दे पण काल़ू धुंवा वैका समणि छोडि कै घ्वां चलिगे.
बंदरी तै जनि जीप औंद दिखे,वैकी तलप और बढ़ी गे.वैन सड़क मा खड़ू ह्वैकी दूर बिटि ही हाथ हिलाणु शुरू करी दे..वैन सोचि कि कखि यू बि खसगी नि जा.डरैबरन दूर बिटि ही खूब हौरन बजाई ,पण बंदरी टस से मस नि ह्वै..ऊ गाड़ी रुकाणो हाथ हिलाणु रहे.डीएम् साबन सोचि कि क्वी जादा परेशान होलू..ऊंन डरेबर तै रुकणो इशारा करी.गाड़ी रोकी कै साबन पूछी--क्या बात है ?कोई परेशानी है.?.बंदरी न मुल-मुल हंसी कै बोली--कुछ न यार ..एक बीड़ी पिलाई दे.
डीएम् साब वैकी पूरी बात त नि समझा पण जाणि गईं कि यू बीड़ी मांगणु.ऊंन अपणो अर्दली तै इशारा करी.डरेबर ब्वल्द ,''चलते हैं सर,कुछ नहीं है.ऐसे ही पागल आदमी है.''.बंदरी न फिर बोलि-दे-दे यार दे दे.,क्य बिगड़णु तब....डी एम् साब का ब्वलण पर अर्दलीन सिगरेट कि डब्बी निकाळी अर द्वी बत्ती दे देनी..बंदरीन एक सिगरेट अपणा कन्दूड़ मा लगे अर हैंकि गिच्चा मा लगे कि बोलि--सल़े डब्बा बि त होलू.? अर्दलीन लैटर निकाळी कै सिगरेट जलै दे..डरेबरन गाड़ी start करी दे..बंदरी सिगरेट कि कश मरदू ,मुल-मुल हैन्सदु तब तक हाथ हिलांदु रहे,जब तक गाड़ी ढैया का पली तरफ नि चलिगे.
डॉ नरेन्द्र गौनियाल ....सर्वाधिकार सुरक्षित .
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