(गढ़वाली कविता )
कवि - डा.नरेंद्र गौनियाल
सुणो भाई-बंधो तुम मेरी बता.
लिक्विड-टिंचरी से तोड़ो नाता.
दुनिया की गाळी खाणा रंदीन
ठर्रा कु पाणि अब छोडि दीण.
कच्ची शराब कभी नि पीण.
शराब एक मीठू जहर.
बर्बाद ह्वैगीं गांव-शहर.
नि पीणी भैजी कभी शराब
दशा नि होलि तब खराब.
बर्बाद सब घर शराब काद.
जुत्ता बि कबी शराबी खांद.
आंखि लाल लदोड़ी थुमार.
अकल मा माटु कनु यू प्वाड.
बच्चों की हालत बिगड़ी जांदा.
खाणा कु बिचारा कुछ नि पांदा
खुद त रोज पीणा रंदिन.
नांगा-भूखा नौन्याळ रंदीन.
रात-दिन जु बि पीणा रंदीन.
अपणि घरवळी थिचणा रंदीन
मदमस्त ह्वैकी बुद्धि कु नाश.
भलु मन्खी क्वी नि आन्दु पास.
थूका-थुकी सब कर्द समाज.
छोडो शराब बचाओ लाज.
नशा करणु नि हूंदू भलु.
मद्यनिषेध कसिकै ह्वालु.
डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित.....
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