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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, July 8, 2012

हे दिदा - डा नरेंद्र गौनियाल की कविता

कवि - डा नरेंद्र गौनियाल
पाणि बोगी माटू बोगी ,बोगिगे मन्खी दिदा.
डालि -बूटी बि नि राली ,तब क्य होलू हे दिदा.
        गौं-गल्या सुनपट  ह्वैगीं,छनुड़ी रीति हे दिदा.
         डांडी-कांठी खरड़ी होलि,तब क्य होलू हे दिदा.
छोड़-तीरों पानौ घास ,पुन्गड़ी रुखड़ी हे दिदा.
सारी हर्बी बांजी होलि,तब क्य होलू हे दिदा.
          बल्द-भैंसी,गौड़ी ढांगी,हड्गी दिखेणी हे दिदा.
          ऐकि ली जालो कसाई,ठेला भरिकै हे दिदा.
बोडी-बोडा पहुँची गैनी, अस्सी-नब्बे हे दिदा.
एक दिन कडगच्च ह्वै जाला,तब क्य होलू हे दिदा.
          बिजुली पाणी,सब्बि धाणी,तौं खुणी च हे दिदा.
          ग्यूंकि दाणी पाणि हमखुण, ह्वैगे मुश्किल हे दिदा.
 डांडी-कांठी गाड-गदनी,कनि छन किराणी हे दिदा.
डाली-बूटी ढुंगी-गारी, सब छन बगणी हे दिदा..
          गौं की दीबा अर भुम्या,रक् रके की छन देखणा.
           यखकु मन्खी कखगे सट्गी,हम यख क्या जि कराँ
देबतों की भूमि सैरी,आज रागसों ल़ा घेरी दे.
कंस-रावण जन्मी गैनी,अब क्य होलू हे दिदा.
          जौं मा सौप्यूं राज-पाट,ह्वैगेनी निख्वर्या दिदा.
          खांदा-पींदा कन भुखारा,पड़ीगीं यून्तई हे दिदा.
लदोड़ी दणसट कैरिकै बि,ल्यावा-ल्यावा छन बुना.
माटु बि भसगैली यूंन ,अब क्य होलू हे दिदा.
          यूंन दुर्गत कैरि हमारी,बांठी करणा छन दिदा.
           हर्चि जाली भै-भयात,तब क्य होलू हे दिदा.
वोट मंगदा,चोट करदा,टुकड़ा-टुकड़ा छन कर्याँ.
क्वी भग्यान ऐकि हमते,जोड़ी जांदू हे दिदा.
          डॉ नरेन्द्र गौनियाल....सर्वाधिकार सुरक्षित...

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