कथा --डा. नरेंद्र गौनियाल
द्वीई झण चार बीसी से जादा ह्वैगे छा पण इना-फुना खूब चलदा-फिरदा छाया.नौना-ब्वारि अर नाती-नातिणो का दगड़ भलि कटिनी छै जिंदगी. एक दिन अचणचक राति मा मंगल सिंह कि जिकुड़ी सियाँ मा ही बुजि गे.राति बुढडी तै कुछ पता नि चलि.बुढयन राति पाणि तक नि मांगु.सुबेर जब ब्वारि च्या लेकिगै त ससुर जि पर बाच न सांस.बुढडी झंपा,नौनु उदेसिंह,नाती-नतीन सब्यों हलोळी पण कुछ बि ना.हड़क ना मड़क.उदेसिंहन चिम्चा से पाणि डाळी पर घुटेणा का बजाय भैर जिकुड़ीउन्द खतिगे.ये ब्वे ! क्य ह्वै त्यार बाबा तै ?इनु बोलि कै बूडन ह्यळी मरणि शुरू करि दीं.किलकारी मारि कै बोलि-ये बुड्या कनु गै तू,मीं छोडीकै....मिन कनकै रैण..मी बि लीजा अफु दगड़...ये ब्वे..ब्यालि राति त खिरबोजा सागा दगड़ी द्वी घुसळी खएं अर एक गिलास दूध बि पे.अर यू राति मा ही क्य ह्वै ? ब्वारी,नाती-नातिन बि रूण लगी गईं.किलकिलाट सूणि कै गौं का बैख- जनाना सबि ऐगीं.सब यी छवीं लगाणा रैं कि स्वां चलि गे बिचारो.म्वरंद दा क्वी परेशानी नि ह्वै.
घाम आणा का बाद शैय्या तैयार ह्वैगे.मर्द लोग तिथाण मा चलि गईं बुड्या तै फुक्णो अर बेटुला ऊंका घार मा बैठ्याँ रैनी. दिन मा पड़ोस बिटि च्या बणी कि ऐ. सब्योंन पे पण बुढडीन नि पे.नाती-नातिनो तै पड़ोसियोंन ही रोटी-सब्जी खिलाई दे.शोक मनाणो तै अपणो घार मा कुछ नि बणायीं.इन मा कैकु ज्यू ब्वल्द अर कुछ रस्म-रिवाज बि द्यखण पडदीं.
ब्यखुनी चार बजि करीब रौल बिटि लोग वापस ऐनी. ब्वारिन ओबरा मा च्या बणे.च्या पीकी सब लोग हर्बी अपणा घौर चलि गैनी.राति कुछ लोग फिर ऐनी बैठणो.पड़ोस कि एक बेटुलिन रसोड़ा मा जैकि रोटी-साग बनै दे.नाती-नातिनो तै खिलाई कि वींन बोलि कि तुम लोग बि खै लिया.सब लोग बाद मा अपणा घौर सीणों चलि गिन.बाद मा उमेदु बि खैकी सेगे.
ब्वारिन सासु तै बोलि कि रोटी बणी छन,खैल्या..बुढड़ीन बोलि कि ना. ना .मीं से त नि खयेणु,तू खैले.दिन भर का नि खयान भूख त लगीं छै पण...कुछ देर मा सासुन फिर ब्वारी तै बोलि कि तू खैले.मीखुणि च्या बणे दे.भूख-प्यास से बुढडी कु गिच्चू सुखणू छौ..ब्वारिन च्या बणेकी दे .अर फिर बोलि कि ..एक रोटी खैल्या च्या का ही दगड़. लदोड़ी मा हल्कार त भौत हुईं छै पण...फिर बि बूडन बोलि कि ना ना मीतै भूख नी..तू खैले . ब्वारिन बोलि कि तुम नि खांदा त मि बि नि खांदु..भुकी से जांदू.इन बोलि कि व अपणो कमरा मा ऐगे.कुछ देर बाद रसोड़ा मा गै अर चार रोटी सल् कैकि टुप्प सेगे.हैंका भितर बूड तै निंद नि ऐ.राति भर उनि रै हरकणी-फरकणी.
सुबेर ब्वारिन च्या बणाई.च्या का बाद कल्यो रोटी पकै.आलू कु साग बि दगड़ मा छौ.सासु तै देकी बोलि कि अब त खै ल्या तुम.सासुन बोलि कि क्य कन तब खाणु त च.,निथर तिन बि रैंण भुकी.बूडन चार रोटी उनि सळकै दीं बिन चपयाँ.कुटमदरिन बि कल्यो रोटी खै अर लगी गईं अपणा काम-धंधा पर.आखिर पेट कि भूख कैन सहे सक.जै दिन य भूख मिटि जाली,वै दिन दुन्य ख़तम ह्वै जाली.
द्वीई झण चार बीसी से जादा ह्वैगे छा पण इना-फुना खूब चलदा-फिरदा छाया.नौना-ब्वारि अर नाती-नातिणो का दगड़ भलि कटिनी छै जिंदगी. एक दिन अचणचक राति मा मंगल सिंह कि जिकुड़ी सियाँ मा ही बुजि गे.राति बुढडी तै कुछ पता नि चलि.बुढयन राति पाणि तक नि मांगु.सुबेर जब ब्वारि च्या लेकिगै त ससुर जि पर बाच न सांस.बुढडी झंपा,नौनु उदेसिंह,नाती-नतीन सब्यों हलोळी पण कुछ बि ना.हड़क ना मड़क.उदेसिंहन चिम्चा से पाणि डाळी पर घुटेणा का बजाय भैर जिकुड़ीउन्द खतिगे.ये ब्वे ! क्य ह्वै त्यार बाबा तै ?इनु बोलि कै बूडन ह्यळी मरणि शुरू करि दीं.किलकारी मारि कै बोलि-ये बुड्या कनु गै तू,मीं छोडीकै....मिन कनकै रैण..मी बि लीजा अफु दगड़...ये ब्वे..ब्यालि राति त खिरबोजा सागा दगड़ी द्वी घुसळी खएं अर एक गिलास दूध बि पे.अर यू राति मा ही क्य ह्वै ? ब्वारी,नाती-नातिन बि रूण लगी गईं.किलकिलाट सूणि कै गौं का बैख- जनाना सबि ऐगीं.सब यी छवीं लगाणा रैं कि स्वां चलि गे बिचारो.म्वरंद दा क्वी परेशानी नि ह्वै.
घाम आणा का बाद शैय्या तैयार ह्वैगे.मर्द लोग तिथाण मा चलि गईं बुड्या तै फुक्णो अर बेटुला ऊंका घार मा बैठ्याँ रैनी. दिन मा पड़ोस बिटि च्या बणी कि ऐ. सब्योंन पे पण बुढडीन नि पे.नाती-नातिनो तै पड़ोसियोंन ही रोटी-सब्जी खिलाई दे.शोक मनाणो तै अपणो घार मा कुछ नि बणायीं.इन मा कैकु ज्यू ब्वल्द अर कुछ रस्म-रिवाज बि द्यखण पडदीं.
ब्यखुनी चार बजि करीब रौल बिटि लोग वापस ऐनी. ब्वारिन ओबरा मा च्या बणे.च्या पीकी सब लोग हर्बी अपणा घौर चलि गैनी.राति कुछ लोग फिर ऐनी बैठणो.पड़ोस कि एक बेटुलिन रसोड़ा मा जैकि रोटी-साग बनै दे.नाती-नातिनो तै खिलाई कि वींन बोलि कि तुम लोग बि खै लिया.सब लोग बाद मा अपणा घौर सीणों चलि गिन.बाद मा उमेदु बि खैकी सेगे.
ब्वारिन सासु तै बोलि कि रोटी बणी छन,खैल्या..बुढड़ीन बोलि कि ना. ना .मीं से त नि खयेणु,तू खैले.दिन भर का नि खयान भूख त लगीं छै पण...कुछ देर मा सासुन फिर ब्वारी तै बोलि कि तू खैले.मीखुणि च्या बणे दे.भूख-प्यास से बुढडी कु गिच्चू सुखणू छौ..ब्वारिन च्या बणेकी दे .अर फिर बोलि कि ..एक रोटी खैल्या च्या का ही दगड़. लदोड़ी मा हल्कार त भौत हुईं छै पण...फिर बि बूडन बोलि कि ना ना मीतै भूख नी..तू खैले . ब्वारिन बोलि कि तुम नि खांदा त मि बि नि खांदु..भुकी से जांदू.इन बोलि कि व अपणो कमरा मा ऐगे.कुछ देर बाद रसोड़ा मा गै अर चार रोटी सल् कैकि टुप्प सेगे.हैंका भितर बूड तै निंद नि ऐ.राति भर उनि रै हरकणी-फरकणी.
सुबेर ब्वारिन च्या बणाई.च्या का बाद कल्यो रोटी पकै.आलू कु साग बि दगड़ मा छौ.सासु तै देकी बोलि कि अब त खै ल्या तुम.सासुन बोलि कि क्य कन तब खाणु त च.,निथर तिन बि रैंण भुकी.बूडन चार रोटी उनि सळकै दीं बिन चपयाँ.कुटमदरिन बि कल्यो रोटी खै अर लगी गईं अपणा काम-धंधा पर.आखिर पेट कि भूख कैन सहे सक.जै दिन य भूख मिटि जाली,वै दिन दुन्य ख़तम ह्वै जाली.
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