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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, July 8, 2012

हरीश जुयालै व्यंग्य/चबोड्या साहित्य अर व्यंग्यकारों /चबोड्यौं मा भूमिका अर जगा

भीष्म कुकरेती
जब मीन हरीश जुयालै चबोड्या/व्यंग्य कविता पोथी 'उकताट' की समीक्षा इन्टरनेट मा प्रकाशित कार त मि बी खौंळे ग्यों बल गूगल सर्च मा ये लेख तैं पैलो पन्ना अर पैलो जगा मील. अर अब तक नि बि होला त दस बारा हजार से बिंडी बंचनेरूं न या समीक्षा बांच.अन्तराष्ट्रीय बंचनेरूं ई- -रैबार आणा रौंदन बल हरीश जुयाल की कवितौं अनुबाद अंग्रेजी मा हूण चएंद जां से अंतरास्ट्रीय बंचनेर हरीश की कवितौं रौंस ल्यावन. मीन इन्टरनेट मा पांच सौ से बिंडी किताबुं समीक्षा छपै होली पण प्रतिक्रिया अर बंचनेरूं रौंस को हिसाब से 'उकताट' कविता खौळ कि समीक्षा उच्ची जगा मा च. समीक्षक समीक्षा तबि सवादी अर सही लेखी सकुद जब समीक्षीत साहित्य मा दम ह्वाऊ. कुसवोर्या, हीण, साधारण साहित्य की समीक्षा भली ह्वेई नि सकद. हरीश कि कवितौं मा दम छौ त मेरी समीक्षा मा बि दम आई. उच्चो साहित्य की समीक्षा करण मा बि रौंस आन्द. याच हरीश जुयाल की साहित्यिक तागत को एक नमूना.
 
                                       गढवाळी गद्य व्यंग्यकारूं सूत भेद अर हरीश जुयाल
 
           यो एक संजोग नी च बल गढवाली गद्य की पवाण मा चाबोड्या ब्यूंत / व्यंगात्मक शैली को बड़ो हात च. गढवळि क पैलो स्वांग (भवानी दत्त थपलियालै -भक्त प्रहलाद, १९१३ ई. ) अर कथा (सदानंद कुकरेती क गढ़वाली ठाट, १९१३ई. ) द्वी चाबोड्या श्रेणी को साहित्य च.
            निखालिस चबोड्या निबंध साहित्य की असली पवाण या पछ्याणक 'धाद ' हिलांस,' पराज' पत्रिकाओं अर पैथर 'गढ़ ऐना 'दैनिक से ही माने जालो. याने की गढवाली गद्यात्मक व्यंग्य साहित्य को उदय १९८७ को परांत इ माने जालो. यां से पैल गढवाली गद्यात्मक व्यंग्य साहित्य मा छिट-पुट इ काम ह्व़े . १९८७ से सन १९९९ तक भीष्म कुकरेती (गढ़ ऐना अर धाद), नवीन चन्द्र नौटियाल, नाथी चन्द्र, जगदीश बडोला, भगवती प्रसाद नौटियाल, पूरण पंत को नाम आन्द. ये समौ मा भीष्म कुकरेती क सात आठ सौ जादा व्यंग्य छपेन.नाथी चन्द्र क बारा मा नामी-गिरामी समीक्षक डा. अनिल डबराल बुल्दन बल नाथी चन्द्र की रचना साधारण अखबारी रचना छन; जगदीश बडोला क व्यंग्य एकाद गम्भीर व्यंग्य को नमूना च त एक रचना स्तरीय बि नी च. भीष्म कुकरेती क व्यंग्य रचना " च, छ, थौ " (धाद , जुलाई १९९०) क विरोध मा भ.प्र. नौटियाल न एक व्यंग्य ' पुरू दिदा ' (धाद , ओक्टोबर १९९०) छप पण विरोध की जगा नौटियाल याल को लेख भीष्म की इ तरफदारी इ लग (डा.अनिल डबराल, 2007).
सन २००० ई.से चिट्ठी पत्री पत्रिका, रंत रैबार सतवार्या (साप्ताहिक), खबर सार अखबार अर इन्टरनेट माध्यम आण से चबोड्या अडगै ( क्षेत्र) मा पूरन पन्त, पाराशर गौड, नरेन्द्र कठैत, त्रिभुवन उनियाल्, चकडैत (उत्तराखंड लाइव वळा), चकडैत(रन्त रैबार वळा-प्रकाश धष्माना ), प्रीतम अपछ्याण, प्रीतम सिंग नेगी, शैलेन्द्र भंडारी, लीला नन्द जोशी, हे.न. भट्ट, शशि भट्ट, संजय सुंदरियाल, आशीष सुंदरियाल आदि गद्य- चबोड्या ऐ गेन . या एक भली बात च.
                  जख तलक गढ़वळी क ख़ास चाबोड्या लिख्वारूं मा भीष्म कुकरेती क चबोड़ विषय अर ब्यूंत क हिसाब से चौतार्फ्या व विवध च. पण समीक्षकुं बुलण च बल भीष्म कुकरेती की एक खासियत च बल भीष्म कुकरेती का व्यंग्य /चबोड़ बणाण्क लगान्दन याने भीष्म कुकरेती का चाबोड्या लेख चर्चा पैदा करी ई दीन्दन ( डा. अनिल डबराल, २००७). अबोध बंधु बहुगुणा (कौंळी किरण २००० ई.) भीष्म कुकरेती तै सरोळया,खरोळया, खचान्ग लगौण्या, ठुणो उठोण्या, खीर मा लूण धुलोण्या, घपरोळया व्यंग्यकार माणदो अर हाँ अर हाँ मार्गदर्शक बि बथान्दो . जख तलक भीष्म कुकरेती को अपण बारा मा बुलण च बल हाँ " म्यरा चबोड्या लेख छ्वीं- चर्चा पैदा नि कौरन त मि तै मजा इ नि आन्द ). वीरेंद्र पंवार भीष्म कुकरेती तै गढ़वाळी व्यंग्य को भीष्म पितामह बुल्दो (बीं 2012) . औसतन भीष्म कु व्यंग्य मा हौंस उथगा नी च जथगा हरीश का व्यंग्यों मा मिलदी
 
                 पाराशर गौड़ की जथगा तारीफ़ करे जाओ ओ कम इ होलू. कनाडा मा रैक कुछ समौ पैल पाराशर गौड़ रोजाना या हर दुसर दिन एक गढवळि व्यंग्य इन्टरनेट मा छापान्दो छौ. संख्या मा पाराशर गौड़ का व्यंग्य तीन सौ से जादा छन. पाराशर गौड़ का द्वी किस्मौ व्यंग्य छन. एक छन जो गढ़वाल मा बचपन कि समळौण अर आज को गढ़वाळ मा जन्मी नवाड़ी संस्कृति क तुलनात्मक स्तरौ व्यंग्य. दुसर किसम च आज की घटनाओं से उपज्यां सरासरी मा लिख्यां व्यंग्य. पाराशर का पैलो किस्मो व्यंग्युं मा टीस/खुद जादा च.त दुसर किस्मौ व्यंग्य सौम्य बि छन त कटाण्ग बि लगान्दन. भासा मा असवाळस्यूं की बोलचाल कि भासा अबि बि च. जादातर व्यंग्य छ्वटा अर सौम्य छन.हरीश अर पाराशर की व्यंग्य शैली अर भाषा अलग अलग छन त तुलना करण ठीक नी च. नरेंद्र कठैत क बारा मा भगवती प्रसाद नौटियाल को ख्याल च बल नरेंद्र कठैत 'आदर्शवादी' व्यंग्यकार च त शिव सिंग निषंग को बुलण च बल कथित 'व्यास शैली' को लिख्वार च (कठैत की किताबुं भूमिका मा ). हरीश जुयाल का व्यंग्यों मा कठैत से हौंस भौति जादा च अर हरीश का व्यंग्यों मा कविताई बहाव च .
             पूरण पंत न भौत पैल गद्य व्यंग्य लिखण शुरू कौरी छौ पण कविता अर संपादन मा जादा व्यस्त होण से वैक यीं विधा मा ध्यान कम राई पण अबि अबि प्रकाशित व्यंग्य पोथी 'स्वस्ति श्री' बथान्दी बल पूरण पंत को ज़िकर कर्याँ बगैर गढ़वळी गद्य व्यंग्य साहित्य को ज़िकर ह्वेई नि सकद, पूरण पंत का व्यंग्य इनी छन - जन क्वी बुल्यां मर्खुड्या बल्द फ्वींफाट करदो, जन बुल्यां यी व्यंग्य /चबोड़ - उड़द डै अर बैठद दै गरुडों फड़फडाट करणा ह्वावन धौ, अर कखी कखी त करैं पंछी जन शाराप बि लगदन. पंत का व्यंग्य भिभरट्या छन, सिपड़ी तड़काँणो डा दीन्दन यि व्यंग्य. पूरण पंत अर हरीश जुयाल द्वी व्यंग्य काव्य का सूर्य छन पण जख तलक गद्यात्मक व्यंग्य सवाल च पंत का गद्य व्यंगों मा हरीश जुयाल से कम हौंस पाए गे. व्यंग्य का मामला मा पंत असला मा अबोध बंधु बहुगुणावादी व्यंग्यकार च जो विद्वता या इंटेकचुवलिटी पर विश्वास करदो त हरीश जुयाल व्यंग्य का मामला मा कन्हयालाल डंडरियालवादी च याने कि गद्यात्मक व्यंग्य मा इमोसन या भावनाओं को बहाव . पंत का गद्यात्मक व्यंग्य गद्य का जादा नजीक छन त हरीश जुयाल का गद्य व्यंग्य -कविता का छैल तौळ आणा आतुर रौंदन.पंत बुद्धि से व्यंग्य रचद दिख्यांद त हरीश जुयाल गद्य व्यंग्य बि जिकुड़ी /हृदय से रचद दिख्यांद. ब्यूंत अर व्यंग्य करणो ढौळ का मामला मा पूरण पंत अर हरीश जुयाल बिलकुल अलग अलग चंखों मा चढ़याँ लगदन. दुयुंक विशेषता या च दुयुंक साम्यता ह्वेई इ नि सकदी. या बात गढवळी व्यंग्य का वास्ता एक सकारात्मक  सैन/ संकेत च
                दुई 'चकडैत' सतवार्या अखब़ारूं कुणि लिखदन त यूँ दुयूं क व्यंग्युं मा निपट वर्तमान की घटनों विषय हूण  लाजमी च. प्रकाश मणि धष्माना (रंत रैबार को चकडैत ) क व्यंगों मा तर्कशाश्त्र को पूरो ध्यान रौंद अर याँ से यूँ व्यंग्युं मा हौंस कम होंद. हाँ विषय मा प्रकाश मणि धष्माना अग्वाड़ी ह्व़े जांद. प्रकाश मणि धष्माना क व्यंग्युं मा संपादकीय गंध बि मिल्दी. याने कि पाराशर गौड़ , प्रकाश धष्माना अर 'चंडीगढ़ का चकडैत का व्यंग्युं मा एक खासियत च की यी व्यंग्य सरासरी मा लिख्यां रौंदन.
                  त्रिभुवन उनियाल को खबर सारौ खाम (कौलम ) की छ्वीं समीक्षक कम इ लगांदन   यो त्रिभुवन उनियाल को दगड एक नाइंसाफी च. त्रिभुवन उनियाल न गढवळी व्यंग्य मा एक अलग शैली अपणायि.अर या शैली च द्वी मनिखुं मा बचळयातौ ब्यूंत . त्रिभुवन उनियाल क "हेलो! हेलो! परधानी बौ" ' कॉलम 'खबर सार' पन्द्रावारो अखबारों एक महत्वपूर्ण अर अभिन्न कॉलम च. डाईलौग /बचळयात  शैली मा त्रिभुवन उनियाल का व्यंग्य भौत इ सामयिक छन पण ऊं मा सरासरी मा रच्यां कमजोरी नि दिख्यांदी.
त्रिभुवन उनियाल अर हरीश जुयाल मा एक खासियत च अर वा खासियत च दुयुंक व्यंग्यों मा हौंस हौर व्यंग्यकारूं से जादा रौंद. पण इखम बि हरीश अर त्रिभुवन कि तुलना नि ह्व़े सकदी किलैकि दुयुंक शैली मा अपणी इ ख़ास विशेषता च. त्रिभुवन का व्यंग्य शैली बचळयातौ ब्यूंत च त हरीश को अलग ढौळ च.
एक सबसे बडी खासियत या विभिन्नता या च बल हरीश जुयाल ठेट गाँव मा रौंद अर असलियत का भौत इ नजीक च जब कि बकै व्यंग्यकार या त कस्बों मा रौंदन या मेट्रो मा. फिर चाहे कविता ह्वाओ या गद्य हरीश जुयालौ कवितों या गद्य मा लोक काव्य की ज्वा लौंस च वा हैंको कै बि व्यंग्यकार मा नी च.
                                                हरीश जुयालौ गद्य व्यग्य संसार
 
                    'ओम मही खाणम्' लेख मनिखों अफखवा प्रवृति अर प्रशासन, शिक्षा, अर प्रजातंतरौ पौ ( मास्टर , पटवार्युं, गर्म प्रधान ) क स्वार्थी भ्रष्ट तंत्र पर चमकताळ लगान्द.
'पर' लेख मनिखों भगार लगाणै आर चरित्र हनन करणो आधारभूत प्रकृति पर खैडौं कटाण्ग लगाण सफल च.
'बल' लेख बथान्द बल कविता सुंणदेर हरीश जुयाल तै किलै कवि समेलनो बादशाह बुल्दन. 'बल' मा हरीश न शब्दुं तै गुलाम बणैक बचनेरूं हंसाई बि च अर दगड मा हमारि पर्विर्ती पर चुनगी बि दे.अनुप्रास (अतिशयोक्ति, वृत्य, अन्त्यानुप्रश, पुनरूक्ति , पुनुर्क्ति आदि) अलंकार, उपमा अलंकार, मालोपमा, उत्प्रेक्षा, अर हौरी अलंकार दिखणो, अनुभव करणो अद्भुत नमूना च 'बल' लेख.
'अतिरिक्त योजना' गढवळयूँ पर मुठक्यूँ मार च. , समाज की ' भैर वळौ खुणि हम गौ अर भितर वळौ खुण खौ" जन प्रवृति तैं हरीश न चबोड्या थान्तो न इनी थंत्यायि /थींच जन बुल्यां उड़द-गैथ थंत्याणो ह्वाओ. ये लेख मा बि अनुप्रास अलंकार का कथगा उदहारण मिल्दन. इन लगद जन बुल्यां शब्द हरीश का ड़्यार नौकरी करणा ह्वावन धौं.
'कट्वरि सिस्टम' इन बथान्द बल राज क्वी बि ह्वाओ घूसखोरी होंदी च बस घूसखोरी अर घूस को रूप बदले जांद. संसार को गद्य मा उपमा अलंकार को विशिष्ठ नमूना च ''कट्वरि सिस्टम' अर दगड मा खिकताटि हंसी मोफत मा सुप्प भोरिक मिलदी .असलियत तै अलंकृत करण सिखण ह्वाओ त 'कट्वरि सिस्टम' बंचण जरूरी च.
'जुत्त' लेख समाज मा अंधविश्वास, एक हैको पर अविश्वास , प्रशासन, राजनीति तै जुत्तुंन खुले आम , बीच बाटो मा सब्युं समणि जुत्यांद. अर मजा क बात या च कि लोक सभा क घूसखोर सदस्य अर सज्जन सदस्य हरीश जुयाल को कुछ नि कौर सकदन किलैकि चबोड़ी जुत पर हौंस को पौलिश जि लगीं च. 'जुत्त' लेख व्यंग्य, चबोड़ , चखन्यौ रुपी हिसर का कांडों बीच हौंस रुपी हिसर का दाण जन छ .
आज 'पाणी' मनिखों बान एक गंभीर मुद्दा च अर इख पर हरीश जुयाल न गम्भीर चर्चा 'पाणी' लेख मा हंसी हंसी मा करी या च हरीश कि खूबी.
'मनख्यात' लेख प्रतीकात्मक ब्यूंत को एक बढिया उदाहरण च अर दगड मा कथनी (नेम प्लेट की लेखनी ) , सामजिक कामों मा बि सरकार पर निर्भरता , समाज मा अपणी भासौ प्रति उदासीनता , मनिख की निर्दयिपन पर घमकताळ च, लत्ती च, नंगो करणो एक नमूना च. अर लेख मा हौंस त व्यंग्य की असली दगड्याणि च
'कुकुर' असला मा नवाडी सौकारूं की पोल खुलद अर दगड मा हौंस का भूड़ा बि खलांद.
'जिलगंड भाई जिंदाबाद' आजौ अजू समाज अर आजै राजकरणि क दोगलापन पर मुंगरौ मार अर मजा या च बंचनेरूं क आंख्युं मा हौन्सन अन्सदरी बगणा रौंदन पण भितर जिकुड़ी मा दौन्कार पड़णि रौंद कि ये सड़यूँ समाज अर सड़ी राजकरणि को क्या करण ?
'घुती दा कि चिट्ठी रामप्यारी बौ खुणि ' अर 'रामप्यारी बौ कि घुती दा खुणि ' एक भाषाई प्रयोग च पण गढवळी साहित्य मा इन प्रयोग क्या करण्याइ जब गढ़वाली उनि बि गढवळी गद्यकार अपण गढवळी गद्य मा बीं बरोबर गढवळी प्रयोग करदन.
'ब्वाडा अर झुमैलो' लेख अन्तराष्ट्रीय राजनीति तै दर्शाण मा सफल हौंसण्या चबोड़ च अर सोटी/ चाबुक बि च .
'थकुला चोर ब्वारी को महात्म्य ' लेख मा हौंस व्यंग्य पर भारी च पर व्यंग्य मा कमी नि आँदी या इ त खूबी हरीश तैं हौर गढवळी व्यंग्यकारूं से विशिष्ठ बणान्द. ये लेख मा भौं भौं किस्मौ अलंकार दिखणो मिल्दन. गद्यकार को शब्द सामर्थ्य को एक नमूना च 'थकुला चोर ब्वारी को महात्म्य' लेख .
'गढवळी साहित्य पर ब्वाडा को इंटरव्यू ' साहित्यकारों खलड़ खैन्चद .
'ब्वाडा क सुपिन' , 'ब्वाडा क सामाजिक चिंतन', 'ब्वाडा क चिंतन' ब्वाडा क पुरुष दर्शन' अर ब्वाडा का लोकल रत्न ' लेखुं मा प्रयोग बि च, शब्दों जादूगिरी बि च अर व्यंग्य कि मार बि च. यूँ लेखुं मा हिंदी, अंगरेजी अर गढ़वळी शब्दुं क
बैठाव बिठाण मा हरीश जुयालन कथगा इ प्रयोग करीन .
                        भाषा पर पकड़ मा त हरीश जुयाल 'कुटज' दुनिया का कन कन व्यंग्यकारूं से अगनै च. शब्दुं से मारण, पिटण थिंचण अर हंसाण मा हरीश कि जथगा बि बडै करे जाव कमी इ च.
                      चबोड़ इ चबोड़ मा पाप अर पाप्युं तैं थप्पड़याण; निकज्ज, निर्लज्ज, मौकापरस्त , बिलंच अर भ्रष्ट राजकरणि वळु तै खुले आम जुत्याण; बेकार मा सरकारी खजाना से कमै करण वाळ नौकरशाही या मास्टर, अर ठेकेदारू तै बीच बजार मा नंगी करण; अळगसी , डरख्वा समाज पर फड्याण; धुर्यापन कि खिल्ली उड़ाण, सौज-सौज मा अड़ाण अर दगड मा हौंस कि छळाबळि करण वाळ हरीश जुयाल जौनाथान स्विफ्ट (१६६७-१७४५), मार्क ट्वैन (१८३५-१९१०), अरिस्तोफेंस (446- 386 B.C. ), हेनरी फील्डिंग (१७०७-१७५४) , डब्ल्यू. एस. गिल्बर्ट (१८३६-१९०१) , रे ब्रेडबरी, रोजर अबोट, जफर अब्बास, स्टीव बेल जन नामी गिरामी व्यंग्यकारूं दगड बैठण लैक च.
                     इख्मा क्वी द्वी राय नी च बल 'खुबसाट' चबोड्या खौळ (व्यंग्य संग्रह ) सरा व्यंग्य संसार को बान एक ख़ूबसूरत जेवर च. अर आस च बल अग्वाड़ी बि हरीश जुयाल 'कुटज' इनी चबोड्या खौळ दुनिया तै दीणु रालू
भीष्म कुकरेती
मुंबई ,
मई २०१२,
सूत भेद अधार (सन्दर्भ) -१- Bhishma Kukreti, Uktat: Satirical Poems by Harish Juyal, http://www.apnauttarakhand.com/uktat-poems-of-harish-juyal-book-review/
२-डा, अनिल डबराल , २००७, गढ़वाली गद्य परम्परा , इतिहास से वर्तमान, (पृ.४२१-४२६)
३- धाद, गढ़वाली ऐना , चिट्ठी पत्री, रंत रैबार , खबर सार, उत्तराखंड रिव्यू का अंक

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