कवि - विजय गौड़
विजय गौड़
06-07-2012
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त्वे परैं कब अकल औण लाटा,
अब ता हवे ग्ये तू ज्वान लाटा.
त्वे परैं ....
बिना सोच बिचारि, स्यीं गिच्ची नि खुल्दन,
अपणु ठट्टा नि लग्वाण लाटा,
कनै कुछ भि त पैल बड़ों कि सल्ला लिन्दन,
अफी नि बणदन परवाण लाटा.
त्वे परैं ...
ब्यटुला कि ज्योन छै सिन्क्वैली होस समाल,
मैत्यों गालि नि खलाण लाटा,
बेट्यु चाल-चलन कुटुमै ऐना होंद,
वा मुलुकै कि होंद पछ्याण लाटा,
त्वे परैं ...
मनखी पछ्यन्ना भि औण चयेंदन,
जै कै मा पिडा नि लगौण लाटा.
द्वी दिनै मैमान मेरा घोल मा छै तू,
फ़िर अफी बनोंण तिन पछ्याँण लाटा.
त्वे परैं ...
ददी-ददा कि खिलौणी, ब्वे-बाबु की गौणी,
चचों कि छै तु पराण लाटा,
ब्यटुलू पर्या धन होंद, बुलदन,
प़र ये मन्न कनक्वे मनांण लाटा.
त्वे परैं ...
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