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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, July 8, 2012

गढ़वळि संस्कृति क खोज मा -२

खुजनेर - भीष्म कुकरेती
(ब्याळि आपन बांच बल लिख्वार गढ़वळि संस्कृति दगड मुखाभेंट करणो अपण गाँ गे अर उख वैक भेंट एक जंदरौ तौळअ पाट से ह्व़े. फिर लिख्वार संन्युं ज़िना गे )
मीन तौळ नजर मारी त सनै सनै लोगुक तादात बडणि छे . सैत च दुसर गाँव क लोग बि परोठी-बोतल लेकी ये बाटो बिटेन कखि जाणा छया.
मीन कील तै पूछ," ये म्यार बाडा जी बांठौ कील यि लोग परोठी-बोतल लेकि कख जाणा छन ?"
कील न मेरो जाबाब क जगा पर ब्वाल,' ओ त अबि बि तुमारि टक मै तै हथियाणो नि ग्याई? तबी त म्यार बाडा जी बांठौ कील क नाम से मि तै भट्याणि छे."
मीन ब्वाल," हाँ या बात सै च बल बिगळयाणो परांत बि म्यार बुबा जी अर बाडा जी मा प्यार मा कमी नि ऐ पण म्यार बुबा जी ये कील तै कील ना अपण ददा जी क समळौण माणदा छया."
कील न बोली," जन त्यार बाडा जी अपण ददा क लगायुं गदनौ आमौ डाळ तै बुल्दा छा, 'भाई क बांठौ आम ' "
मीन ब्वाल," हाँ ! उन त हम वै आम क एकेक हड्यल तै द्वी हिस्सों मा बंटद छ्या.पण फिर बि बुले जांद छौ कि म्यार बुबा जीक बांठौ आम. यू आम बल म्यार दादा जीक ददा जी न लगै छौ .अर म्यार बडा जी बिगळयाणो बाद बि ये आम की देख भाळ बच्चो जां करदा छा." मि अब भावुक हूण बिसे गौं.
कील न पूछ," त क्या तेरी या त्यार बुबा क टक मोरद मोरद तक ड़्यारम म त्यार बूड ददा क बणयूँ चौंतरा पर नि छे."
मीन हुन्गरी पूज ," हाँ बाबा जी तै वै चौंतरा से बड़ो प्यार छौ. बडा जी अर म्यार बुबा जी जडु मा दगड़ी घाम तापदा छया अर रुड्यू रात वेई चौंतरा मा सीन्दा छया . बिगळयाण से बि दुयुंक प्यार मा फ़रक नि पोड़."
कील न ब्वाल,' हाँ जब बि त्यार बुबा उन्ना देसन (परदेस न ) ड़्यार आन्द छयो त मि तै प्यार से मलासदो छौ. "
मीन ब्वाल," अर जब बुबा जी उन्ना देसन ड़्यार आन्द छ्या त एक राति खुणि अपण भैजी याने म्यार बडा जी क दगड डाँडो कूड़ मा सीणो जरूरर जांदा छा."
कील न बोली," अच्छा अच्छा तू भद्वाड़ो डांडौ बात करणि छे. जख त्यार बडा अर बुबा न द्वी कुठड्यू कूड़ लगै छौ."
मीन उलार मा ब्वाल," हाँ. उख पांच दूणो भद्वाड़ छौ त उख रात दिन काम करण पोड़द छौ त दुयूं न साजो कूड़ चीण बल खेती टैम पर हम कामगती उखी से जंवां. बुबा जी जब बि उन्ना देस बिटेन आन्द छया त म्यार बडा खुण अलग से मिठाई लांदा छया अर फिर एक दिन उख डांडो कूड़ म दगड़ी खाणक बणान्दा छ्या, उखी एक रात बितान्दा छया . बुबा जी क लईं चीजुं मजा लीन्दा छया. सारा अडगै (इलाका ) मा म्यार बडा जी अर म्यार बुबा जी खुणि लोकर राम लक्ष्मण बुल्दा छया."
कील न पूछ," ये त्यार कथगा भै भुला छन ?"
मीन जबाब दे," तीन इ छन भै."
"औ ! त दगड़ी इ रौंदा ह्वेला नी ?" कील अ सवाल छौ.
मीन अणमण ह्वेक जबाब दे,; ना '
कील न ब्वाल,ना अ ?"
"ना हम दगड़ी नि रौन्दां ." मेरो खड़खड़ो जबाब छौ
कील न फिर पूछ," क्या हाल छन हौरी भायुं क ?"
'कुज्याण ठीकि होला " म्यरो उदासीन जबाब छौ.
कील न खौंळे क ब्वाल," कुज्याण मतबल ?"
' कुज्याण मतलब मै पता नी च कि ऊंका क्या हाल छन .' मीन बोल
" हैं ! क्या बुनी छे ?" कील न पूछ
मीन अणमणो ह्वेक जबाब दे,' हाँ सैत च हम चारेक साल बिटेन नि मील होलां "
' पण तुम लोग त एकी शहर मा छन वां ना ?" कीलो सवाल छौ
मीन ब्वाल," हाँ. पण हम तिन्यु मा कथगा सालुं से बातचीत नी च ."
कील न ब्वाल," ये झूट नि बोल हाँ !"
मीन ब्वाल," हाँ हम क्वी बि एक हैंक से नि बचळयान्दवां ."
कील क सवाल छौ ," क्यांक बान झगड़ा ह्व़े ?"
" पैल त भौत सालू तक बुबा जीक कमायिं जायजादो बान झगड़ा राई फिर हमार बूड खूडू क एक भगवती क भाग्यशाली खुन्करी छे. वींक बान त इथगा झगड़ा ह्व़े कि आज तक हम एक हैंकाक मुख बि नि दिखण चाँदवां " मीन भेद ख्वाल
कील न ब्वाल,' त ...?"
मीन मुंड हलाई.
कील न पूछ , त जग्गी जुग्गी मा ?"
मीन बताई ," ना .हम एक तै देखिक मुख फरकै दीन्दा "
कील न ब्वाल,' बड़ो खराब ह्व़े भै,"
अब मीन बात घुमाणो बान पूछ , " ह्यां ! सी लोग परोठी-बोतल लेक कख जाणा छ्या ?"
इथगा मा एक अवाज आई," ये ठाकुर जरा इना आदि ."
मी चचरै ग्यों कि या अवाज कैकी च
कील न बताई,' तुमर सनि पैथर ज्वा सनि च वा भट्याणि च ."
फिर से अवाज आई," ह्यां जरा देरो खुणि इना ऐन जरा."
कील न बोल, "जा जयादी . जब तू छ्वटो छौ त वीन सनी म जान्दो इ छौ "
मीन ब्वाल, " हाँ पण यि लोक परोठी-बोतल लेक कख जाणा छन ?"
कील न ब्वाल" वीं तै इ पूछी लेन ."
मी अपण सनी पैथरा सनि क तरफ जाण लगी ग्यों
(गांका लोग कख अर किलै भागणा छया? वीं सनि न क्या ब्वाल? क्या मै तै संस्कृति क दर्शन ह्व़ेन ? अर ह्वाई च त संस्कृति क्या ब्वाल ? यांक बान अगलो भाग..३ )
Read third   part----
Copyright@ Bhishma Kukreti , 8/7/2012

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