राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी लोकगीतों में कल्पना
Imagination in Rajasthani, Garhwali and Kumaoni Folk Songs
गढ़वाली-कुमाउंनी लोकगीतों में कल्पना
Copyright@ Bhishma Kukreti 2/9 /2013
लीलावती बंसल , 2007 , लोक गीत :पंजाबी , मारवाड़ी और हिंदी के त्यौहारों पर गाये जाने वाले लोक प्रिय गीत
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Comparison between Rajasthani Folk Songs, Garhwali, Kumaoni Folk Songs-17
राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग-17
भीष्म कुकरेती
उत्तर पूर्व व राजस्थान लोक साहित्य के जगविख्यात मर्मज्ञ डा जगमल सिंह सत्य है कि लोक गीतों में यथार्थ -चित्रण के साथ ही कल्पना अतिरेक भी मिलता है।
Imagination in Rajasthani, Garhwali and Kumaoni Folk Songs
राजस्थानी लोकगीतों में कल्पना
राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग-17
उत्तर पूर्व व राजस्थान लोक साहित्य के जगविख्यात मर्मज्ञ डा जगमल सिंह सत्य है कि लोक गीतों में यथार्थ -चित्रण के साथ ही कल्पना अतिरेक भी मिलता है।
Imagination in Rajasthani, Garhwali and Kumaoni Folk Songs
राजस्थानी लोकगीतों में कल्पना
लोक गीतों में एक कहावत "मन के लड्डू फीके तो थोड़े क्यों ?" चरितार्थ होती है। निम्न राजस्थानी गीत 'ईसर जी ' ( सन्दर्भ -चूंडावत ) में कल्पना का अतिरेक है।
राजस्थानी लोक गीत में 'गौरी से बोला जाता है कि तुम्हारे लिए सोने जैसा वर लायें। पडले (गढ़वाली में बरडाली, वर पक्ष से भेंट ) में वर सवा मन चांदी , सवा मन मोती , सवा मन सिंदूर , सवा मन रोली देगा।
ईसर जी
कौ तो गौरी दे थारें आदित वर वरां
ओ देवी सवा मण सोनो वर रे पड़लै चढ़े
ओ देवी सवा मण रूपों वर रे पड़लै चढ़े
ओ देवी सवा मण मोती वर रे पड़लै चढ़े
ओ देवी सवा मण सिंदूर वर रे पड़लै चढ़े
ओ देवी सवा मण रोली रे पड़लै चढ़े
ओ देवी सवा मण मोती वर रे पड़लै चढ़े
ओ देवी सवा मण सिंदूर वर रे पड़लै चढ़े
ओ देवी सवा मण रोली रे पड़लै चढ़े
Imagination in Rajasthani, Garhwali and Kumaoni Folk Songs
कल्पना में कृपणता नही की जाती है। गढ़वाली कुमाउंनी लोक गीतों में भी अतिशयोक्ति भरी पडी है , समय समय पर दर्शाते जायेंगे। निम्न गढ़वाली-कुमाउंनी गीत भी 'गौरा -भवानी ' संबंधित गीत है जिसमे अतिशयोक्ति की कल्पना अंत में की गयी है।
गौरा भवानी
गौरा मेरि देवि , जै जै बोला।
मेरी गौरा भवानि ,जै जै बोला।
तेरी जाति को आयो, जै जै बोला।
गौरा मेरि देवि , जै जै बोला।
गौरा मेरि देवि , जै जै बोला।
भेंट कु क्य ल्हायो ?जै जै बोला।
हे गौरा भवानि ,जै जै बोला।
सोबन धुपाणी ,जै जै बोला।
ओ लौंग सुपारी ,जै जै बोला।
तेरी जातरा को आयो, जै जै बोला।
तेरी जातरा को आयो, जै जै बोला।
गौरा मेरि देवि , जै जै बोला।
भेंट कु क्य ल्हायो ?जै जै बोला।
भेंट कु क्य ल्हायो ?जै जै बोला।
मोतियों से भरा थाळ ,जै जै बोला।
-----------अनुवाद -----------
गौरा मेरी देवी , जय जय बोलो।
मेरी गौरा भवानी , जय जय बोलो।
तेरी यात्रा पर आया ,जय जय बोलो।
गौरा मेरी देवी , जय जय बोलो।
गौरा मेरी देवी , जय जय बोलो।
भेंट को क्या लाये , जय जय बोलो।
हे गौरा भवानी , जय जय बोलो।
सुन्दर धूपदान ,जय जय बोलो।
लौंग और सुपारी ,जय जय बोलो।
तेरी यात्रा पर आया ,जय जय बोलो।
गौरा मेरी देवी , जय जय बोलो।
भेंट को क्या लाये , जय जय बोलो।
गौरा मेरी देवी , जय जय बोलो।
भेंट को क्या लाये , जय जय बोलो।
मोतियों से भरा थाल , जय जय बोलो।
Copyright@ Bhishma Kukreti 2/9 /2013
सन्दर्भ
डा जगमल सिंह , 1987 ,राजस्थानी लोक गीतों के विविध रूप , विनसर प्रकाशन , दिल्ली
डा दाधीच , (सम्पादन ) राजस्थानी लोक गीत
रानी लक्ष्मी कुमारी चूंड़ावत , (सम्पादन ) राजस्थानी लोक गीत
डा जगदीश नौडियाल उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर:रवाँई क्षेत्र का लोक साहित्य का सांस्कृतिक अध्ययन लीलावती बंसल , 2007 , लोक गीत :पंजाबी , मारवाड़ी और हिंदी के त्यौहारों पर गाये जाने वाले लोक प्रिय गीत
डा नन्द किशोर हटवाल , 2009 उत्तराखंड हिमालय के चांचड़ी लोक गीत एवं नृत्य ,विनसर पब क. देहरादून(अनुवाद सहित )
अबोध बंधू बहुगुणा , धुयांळ , दिल्ली
महाबीर रंवाल्टा , उत्तराखंड में रवाँई क्षेत्र के लोक साहित्य की मौखिक परम्परा, उद्गाता
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