उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास --8
History of Gastronomy in Uttarakhand -8
आलेख : भीष्म कुकरेती
उत्तराखंड के इतिहास में महाभारतीय कालीन कुलिंद परिवर्ती कुलिंद जनपद के भोज्य पदार्थ और कृषि के बारे में डा डबराल ने पाणिनि कालीन भारत के लेखक डा अग्रवाल, अष्टाध्यायी , मखराम सन्दर्भ देकर लिखा है कि उत्तराखंड में तिल व टिल -भात खूब प्रचलित था.
वास्तव में तिल मनुष्य का पुरानतम खाद्य पदार्थों में भोज्य पदार्थ है.
यद्यपि पहले माना जाता था कि तिल का जन्म अफ्रीका में हुआ। किन्तु दमानिया , जोशी और ब्रैडीजियेन की खोंजों से सिद्ध हुआ कि तिल का जन्म भारत में हुआ। भांग और तिल का पुराना इतिहास है। किन्तु यह पता नही लग सक रहा है कि भांग का प्रयोग रेशे के लिए होता था कि तेल हेतु।
तिल का कृषि करण पहले भारत में हुआ और फिर कांस्य युग के प्रथम भाग में मेसोपोटेमिया में तिल का कृषि करण ज्ञान गया।
हडप्पा के अवशेषों में तिल के अवशेष मिले हैं। इसका अर्थ हुआ कि तिल का नामकरण व कृषिकरण 2600 BC पहले हो चुका था।
पुरानी सभ्यता के अवशेषों से पता चलता है कि तिल और कोदा झंगोरा या मिलेट गर्मियों में बोये जाते थे और तिल से तेल निकालने के लिए सिल्ल बट्ट या पत्थर के इमामदस्ता अथवा ओखली -मूसल (उर्ख्यळ - गंज्यळ ) प्रयोग होता रहा होगा।
संस्कृत में तिल का अर्थ है -मलहम , राजतिलक , और द्रविड़ में तिल एल कहते हैं।
इसी तरह भांग का कृषिकरण या प्रयोग भी मनुष्य सभ्यता के साथ ही हो चुका था। भांग का मुख्य उपयोग रेशे के लिए किया जाता था . भांग तिल से पहले चुकी होगी।
सरसों का जिक्र बुद्ध की कथाओं में मिलता है। संस्कृत में सरसों का जिक्र पांच हजार साल पहले आता है। सरसों का औषधि प्रयोग था।
अत: साफ़ है कि महाभारत और परवर्ती महाभारत काल के कुलिंद जनपद में भांग , तिल और सरसों की कृषि उत्तराखंड में हो चुकी थी।
Reference-
Dr. Shiv Prasad Dabral, Uttarakhand ka Itihas 1- 9 Parts
Dr K.K Nautiyal et all , Agriculture in Garhwal Himalayas in History of Agriculture in India page-159-170
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Copyright @ Bhishma Kukreti 12 /9/2013
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