उत्तराखंडी ई-पत्रिका की गतिविधियाँ ई-मेल पर

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Monday, September 30, 2013

खुंखार जानवर किलै परेशान छन ?

चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती 

(स्थान जंगळ मा एक कार्यालय  वार्षिक बैठक )

संस्थान प्रबन्धक -सबि सुणो मि तुम लोगुं से  परेशान छौं एक बि कर्मचारी अपण काम ठीक से नी करणु च।  
सबि - नै  हम अपण काम  ढंग से ही करणा छंवा। 
संस्थान प्रबन्धक - क्या रै गुरा ! त्वे पर त  कहावत बि बणी च बल सांप भैर कथगा बि ट्याड़ -बांग हिटो पण अपण दुंळ मा सीधो हिटदो पण तू त अपण गुरौदुंळम बि ट्याड़ -बांगु हिटण बिसे गे ?
गुरौ - अब तुम मि तैं लाल कृष्ण अडवाणी ड़्यार भिजल्या अर फिर उम्मीद करल्या कि मि अपण बिल मा सीधो हिटलो त इन कनकै ह्वे   सकुद?
संस्थान प्रबन्धक - किरम्वळो !  तुमन मेहनत करण छोड़ी आल। अब तुम निरपट अळगसी ह्वे गेवां।  पैल त बुले जांद छौ बल किरम्वळ अर म्वार -मधुमक्खी काडर बेस जानवर छन  ?
मधुमक्खी अर किरम्वळ-पैल हम तैं भरवस छौ कि हम जी तोड़ मेहनत करला त पार्टी टिकेट या राजकीय शहद मा भागीदार मीललि  त हम रात दिन मेहनत करदा छा।  पण जब हमन द्याख कि हमर छ्त्तौं /पेथणु  पर बंश परम्परा को ही राज होलु अर राजकीय शहद खाणो बणिया किस्मौ स्याळु तै मिलणु च अर हम तै शहद चखणो त राइ दूर दिखणो नि मिल्दो त हमन मेहनत करण छोड़ि आल।
संस्थान प्रबन्धक - क्या रै घड़ियाल ! तुम लोगुंन  नकली घड़ियाली अंसदरी /आंसू बगाण छोड़ी आल ?
घड़ियाल -अब जब भारतीय राजनैतिग्य लोग प्राकृतिक आपदा , आतंकवादी हमला मा मर्यां लोगुं बान नकली अंसदरी /आंसू बगाण मिसे गेन त हम घडियालुं आंसू ही सुख गेन।  हमर नकली आंसू त भारतीय राजनीतिज्ञ भारतीय गरीबुं गरीबी पर रूणो लीगेन त हमन अब घड़ियाली आंसू कखन बगाण  ?
संस्थान प्रबन्धक - क्या भै मूसो ! तुम तैं काम दे छौ कि कोयला आबंटन कार्यालय की सरकारी फ़ाइल कुतरो त तुम खाली हाथ अयाँ छंवां। 
मूस /चूहा -अब हमन क्या ख़ाक सरकारी फाइल कुतरण ?  सरकारी महकमौं फ़ाइल त गायब छन।
संस्थान प्रबन्धक -झूट।  भारतक कै बि पुलिस स्टेसन मा फायल गायब हूणै ऍफ़आइआर नि लिखे गे !  
मूस /चूहा - वी त भारतीय सर्वोच न्यायालय बि भारतीय सरकार से पुछणु च बल पैल त फ़ाइल कनकै हर्चिन अर हर्चि बि छन त पुलिसम शिकैत दर्ज किलै नि ह्वैं ?
संस्थान प्रबन्धक -हे भै घूणो-घुन  /टेरुंओ  ! तुम तैं काम दे छौ कि भारत मा फ़ैल जावो अर भारत का अनाज दाळ पर लग जावो पण तुमर ट्रैवेलिंग बिल  देखिक त लगणु च कि तुम इखि ऑफिसम सियां रौंदा ?
घूण /घुन /टेर - अब हम घूण /घुन /टेरुं तैं भारत मा अनाज बरबाद करणै जरुरत नी च। जब  फ़ूड कौर्पेरेसन ऑफ इंडिया  अनाज सड़ाणो /बरबाद करणों काम बखूबी करणु च त हम कीड़ों तै क्या जरुरत कि हम भारत मा अनाज बरबाद करवां ?
संस्थान प्रबन्धक -क्या रै सरसुवो/ खटमलो ! अर झांझ ( मच्छरों )! तुमकुण बोलि छौ बल भारतीय जेलुं मा जैक कैदियों खून चुसि लावो।  क्या ह्वाइ ?
सरसु /खटमल/झांझ/मच्छर - हम त भुखि मोर गेवां।  भारतीय जेलुं मा  अब चौटाला, लालू यादव , जगन्नाथ मिश्रा , कलमाड़ी जन असंख्य राजनीतिज्ञ ऐ गेन अर यूं राजनीतिज्ञों खलड़ /चमड़ी गैंडा से बि मोटी च त हमन इन कैदियुं खून कनकै चुसण ?
संस्थान प्रबन्धक - क्या भै भेड़ियों ! तुम कुण बोलि छौ  भला अदिमुं भेष मा सरा भारत मा फैलि जावो। 
भेड़िया - उख भारत मा पैलि खूंखार डाकू , उच्चका , गुंडा , माफिया लोग नेताओं का भेष मा घुमणा छन त हमारि क्या विषात कि हम भेष बदली भला अदिमु स्वांग कौरवां ?
संस्थान प्रबन्धक - क्या रै गधा तुमर कम्युनिटी का  क्या हाल छन ?
गधा - हमर हाल बि ऊनि च जन भारतीय जनता का बुरा हाल छन। हम  मेहनत पूरो करदां फिर बि रोज हर समय मार खाणा छां 


Copyright@ Bhishma Kukreti  1/10/2013 



[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य;सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...]  

No comments:

Post a Comment

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments