दालों /दलहन का उत्तराखंड के परिपेक्ष में इतिहास -भाग -1
History Aspects of Chickpea in Uttarakhand
History of Pulses Agriculture and food in Uttarakhand Part-1
उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास --12
History of Gastronomy in Uttarakhand 12
आलेख : भीष्म कुकरेती
उत्तराखंड के परिपेक्ष में चना दाल का भारत में इतिहास
Anup Mishra , Agriculture in Chalolithic Age in North-Central India
Chitranjan Kole , 2007 , Oilseeds
Copyright @ Bhishma Kukreti 15 /9/2013
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History of Gastronomy in Uttarakhand 12
आलेख : भीष्म कुकरेती
उत्तराखंड के परिपेक्ष में चना दाल का भारत में इतिहास
चना सात हजार साल पहले खाद्य उपयोग में आ और भारत में मनुष्य छ हजार साल पहले चना प्रयोग करने लगे थे
सुदर्शन शर्मा व नेने वेदों में व वेद भाष्यों में 'खलवा ' शब्द को दाल मानते हैं। जिससे अंदाज लगाया जा सकता है कि मनुष्य 'दाल प्रयोग ' प्रागैतिहासिक काल से करता आ रहा है।
कौटिल्य (321 -296 BC ) ने 'कलय' शब्दों का प्रयोग किया है जो शायद चना दाल था क्योंकि कौटिल्य ने लिखा है कि 'कलय' भुनकर और कई तरह से प्रयोग किया जाता है.कर्नाटक में चने को 'काडेल' और केरल में चना दल को 'काडाला ' कहा जता है।
बौद्ध साहित्य (400 BC ) में चना दाल को चणक कहा गया और सारे भारत में चना शब्द प्रचलित हुआ। केवल मराठी में चना को हराभरा कहा जाता है। प्राचीन संस्कृत में चना को 'हरिमंथ' (हरि =घोड़ा , मन्थ =चबाना ) कहा गया है। वात्सायन के काम सूत्र , चरक संहिता , मार्केंडेय पुराण , मत्स्य पुराण अदि में चना का विवरण मिलता है।
प्रागऐतिहासिक खुदाई में कालीबांगन (राजस्थान 3000 -2000 BC ) , बिहार (2000 -1200 BC ) , महाराष्ट्र (2000 -800 BC ) , पंजाब (2300 -1400 BC )और अंतरराजिखेड़ा गंगा दोआब उत्तरप्रदेश (2000 BC ) चना के अवशेष मिले हैं। इससे पता लगता है कि चार हजार साल पहले उत्तराखंड के निवासियों को अवश्य ही चना दाल का पता था.
चना की खेती (इतिहास )
कौटिल्य ने लिखा है कि दाल को दो तीन दिन पानी में भिगोकर बोना चाहिये।
कश्यप्याकृषिसूक्ति (800 AD ) में कहा गया है कि चना बिना सिंचाई के बोया जाता है। कश्यप ने कहा है कि चना की दो किस्मे -छोटा बीज और बड़ा बीज होता है। कश्यप बताते हैं कि एक महीने बाद निराई -गुड़ाई होनी चाहिए। इसी समय खाद भी डाली जानी चाहिए।
बारहवीं -तेरहवीं सदी में चना बीज को मनतता पानी में 24 घंटे के लिए बोने पहले भिगोया जाता था। इसी समय फसल चक्र का भी प्रयोग का रिकॉर्ड मिलता है।
दारा सिकोह (1650 AD )बड़े चना बोता था.
दारा सिकोह (1650 AD )बड़े चना बोता था.
काबुली चना का प्रथम बार रिकॉर्ड 'आईने अकबरी ,1590 ) में मिलता है।
उत्तराखंड में चने की खेती
चूँकि चना की उत्पादक शीलता पहाड़ों में कम है तो चना सर्वदा मैदानों -तराई -भाबर में ही बोया जाता रहा है। या कह सकते हैं कि चना का इतिहास उत्तराखंड के मैदानी हिस्से का इतिहास है और बिजनोर, हरिद्वार , देहरादून , सहारनपुर में चने की खेती का इतिहास ही उत्तराखंड में चना का इतिहास माना जाना चाहिए ।
प्राचीन समय में चना घोड़ो और हाथियों को भी खिलाया जाता था और आज भी यही स्थिति कायम है
कृषि उत्पादन शीलता
अशोक काल के पश्चात् भारत में अन्वेषण पर लगाम लग गयी थी। राजनैतिक अस्थिरता और जमीन पर हक को कोई विशेष नीति न होने से किसानो ने कृषि उत्पादनशीलता बढ़ाने का कम अशोक कल के बाद नहीं किया. यहाँ तक कि नहर आदि लाने में भी कृषक अधिक उद्यम नही करते थे।
अकबर के जमाने में चना का भाव
आईने अकबरी (1590 AD ) में लिखा है कि काबुली चना देसी चना से दो गुना भाव में मिलता था। कबुली चना गेंहू से तेतीस प्रतिशत मंहगा था। चने का आटा और गेंहू आटा का भाव एक समान था।
चना के भोज्य पदार्थ
चरक संहिता और सुश्रवा संहिता व अन्य साहित्य से पता चलता है कि चना उबालकर , सत्तू , चने का आटा बनाकर , भूनकर , घोल बनाकर खाया जाता था. प्राचीन कल में पत्तों का प्रयोग साग के रूप में होता था और आज भी । भूने चने पर्यटन में और युद्ध में सिपाहियों का एक महत्वपूर्ण भोज्य पदार्थ था.
आयुर्वेद में चना का चिकित्सा लाभ
चने की पत्तियों से अम्ल निकल कर आयुर्वेदिक दवाइयां बनती थीं (बाग़ भट्ट 800 AD ).
Reference-
Dr. Shiv Prasad Dabral, Uttarakhand ka Itihas 1- 9 Parts
Dr K.K Nautiyal et all , Agriculture in Garhwal Himalayas in History of Agriculture in India page-159-170
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B.K G Rao, Development of Technologies During the Iron Age in South India
V.D Mishra , 2006, Prelude Agriculture in North-Central India (Pragdhara ank 18)Anup Mishra , Agriculture in Chalolithic Age in North-Central India
Mahabharata
All Vedas
Inquiry into the conditions of lower classes of population
Lallan Ji Gopal (Editor), 2008, History of Agriculture in India -1200AD
K.K Nautiyal History of Agriculture in Garhwal , an article in History of Agriculture in India -1200AD
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Joshi A.B.1961, Sesamum, Indian central Oil Seeds Committee , Hyderabad
Drothea Bradigian, 2004, History and Lore of Sesame , Economic Botany vol. 58 Part-3 Chitranjan Kole , 2007 , Oilseeds
Gopinath Mohanty et all, 2007, Tappasu Bhallika of Orissa : Their Historicity and Nativity
Y .L .Nene ,2006, Indian Pulses Through Millenia, Asian Agri-History, Vol.10,No.3 (179-200)
Copyright @ Bhishma Kukreti 15 /9/2013
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