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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, September 19, 2013

हिंदी दिवस : A Contemporary , Satirical Poem

ब्रिजेन्द्र नेगी (सहारनपुर )
आगया है माह सितम्बर,
हिंदी को स्मरण करने का।
ग्यारह मास से नींद में सोई,
राजभाषा जागृत करने का।

ढूंढ पुराने बिल्ले-बैनर
हिंदी दिवस आयोजित होगा।
गतवर्ष का संदेश पुनः  
काट-छाँट कर प्रस्तुत होगा।

एक बार बन गया जो बैनर,
कई वर्ष तक वही चलेगा।
हर साल का माह सितम्बर
वर्ष की चिप्पी बदलेगा।

झाड़-पोंछ कर वर्ष सजाकर,
हर संस्था के द्वार टंगेगा।
सप्ताह, पखवाड़ा, मास मनाकर,
फिर अलमारी की धूल फांकेगा।

हिंदी दिवस के आयोजन का
अंग्रेजी में नोट बनेगा।
हिंदी दिवस की कार्यशाला में
वेलकम, थैन्क्स का बोर्ड लगेगा।

हिंदी दिवस के समापन पर,
कुछ को प्रशस्ति-सम्मान मिलेंगे।
वर्ष-भर की उपलब्धियों का,
उस दिन खूब बखान करेंगे।

भूल जाएँगे फिर हम हिंदी,
अंग्रेजी की राह पकड़ेंगे।
हिंदी में यदि लिखी टिप्पणी,
अंग्रेजी में अनुवाद करेंगे।

अंग्रेजी का ओढ़ आवरण, हिंदी की थामे मशाल।
जोत प्रज्वलित करते हैं, सिर्फ सितम्बर में हर साल॥

अंग्रेजी की बभूति सजती, बचपन से जिनके भाल।
हिंदी उनके दर पर, होगी अपने आप निढाल॥

यद्धपि रस, छंद, अलंकारो से, हिंदी भाषा सुसज्जित है।
अंग्रेजी भाषा के सम्मुख, फिर भी राजभाषा लज्जित है॥

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