उत्तराखंडी ई-पत्रिका की गतिविधियाँ ई-मेल पर

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Monday, September 16, 2013

विकल्पमुखी सासु

 चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती 
 
सासु -ए  जवैं ! खाणक मा क्या खैल्या ? भात कि झंग्वर ? 
जवैं -भात चौलल !
सासु -वो कन बिसरंत ह्वाइ ! घौरम चौंळ त कुट्यां इ नीन ! 
जवैं - ठीक च झंग्वर इ चल जाल !
सासु -बड़ दाणु  झंग्वर या छुट दाणु  झंग्वर बणाण ? 
जवैं -बड़ दाणु  झंग्वर!
सासु -ये बुरळ पोड़ि गेन  यिं स्मृति पर ! झंग्वरक त एक बि दाणि नी च ड्यारम।  कौणि चौललि ?
जवैं -हाँ !
सासु -अछा कम पीलि कौणि या चिट्ट पीली कौणि ?
जवैं -कम पीलि कौणि?
सासु -गुरा लग जैन ये दिमाग पर कि मि भूलि ग्यों बल  हमर पुंगडुं मा त चिट्ट पीली कौणि ही होंदी। 
जवैं -ठीक च चिट्ट पीली कौणि ही पकै ल्यावो।
सासु -अच्छा ! साग मा थिंच्युं साग कि बगैर थिंच्युं साग बणाण ? 
जवैं -जन तुमर मरजी।
सासु -अच्छा ! तुम तै थिंच्वणि  मूळाक पसंद च कि अलुक ?
जवैं -अलुक थिंच्वणि।
सासु - फिर से भुल्मार ह्वे गै।  चार मैना ह्वे गेन मीन अलुक दाणि बि नि देख। 
जवैं -त मूळाs   थिंच्वणि बणै ल्यावो 
सासु -अच्छा मूळा  थिंच्वणि बणाण त मूळा घिंडक बड़ा हूण चएंदन कि मध्यम आकार का या छ्वटि घिंडकि ? 
जवैं -बड़ा घिंडक। 
सासु -पण ये मेरी स्मरण शक्ति तै क्या बिजोग पड़ी गे।  ये साल त बड़ा क्या !  मध्यम आकार का घिंडक बि नि ह्वेन ! 
जवैं -त छवटा घिंडकुं  थिंच्वणि बणै द्याओ।
सासु -अच्छा मूळा कौंळ (कौली - कच्चा ) हूण चएंदन कि कबास्यला  ?
जवैं -मूळा कौंळ हूण चएंद।
सासु - पण अबारि त पूषौ मैना च त खडर्यां  मूळान कबास्यला ही हूण।  
जवैं -ठीक च कबास्यला मूळा थिंच्वणि इ पकाओ।
सासु - अच्छा ! थिंच्वणि मा हौर  धणिया पतौं मसल डळण कि ना ? 
जवैं -हाँ हौर  धणिया पतौं मसल डाळि द्यावो। 
सासु -पण हौर  धणिया त ये बगत हूंदी नि छन। 
जवैं -जु बि मसल च स्यु डाळि द्यावो।  दुफरा ढ़ळि  ग्यायि अबि तुमन यु निश्चय नि कार कि क्या खाणो बणाण ! 
(एक  घंटा बाद )
सासु -ये जंवै तुम तै त निंद आणि च ? 
जवैं -हां !
सासु -या निंद पळेक (परिश्रम से  , थकावट से  )  च, आदतन निंद च या भूकन निंद आणि च। 
जवैं -भूकान निंद आणि च  
सासु -अच्छा त तुम रुटि अर लूण  खै लेल्या ?
जवैं -हाँ
सासु -लूण मा मुर्या डळण कि … ?  
जवैं -कुछ नि बणावो।  मि अपण गां जाणु छौं बस ! 
सासु -कै रस्ता जैल्या ? सैणु रस्ता , जंगळ या धारो रस्ता ?
जवैं -मि कै बि रस्ता चलि जौल बस मि इख से भैर जाण चाणु छौं। 
सासु -अच्छा सूणो इ जवैं ! तुमर ससुर जी तुमर ड्यार सुखी छन ? द्वी साल ह्वे गेन लड़की ड्यार पड़्या छन।
जवैं -हाँ सुखी छन !
सासु -क्वी बेटिक इख सुखी बि रै सकुद ?
जवैं -मि अब इखम नि रै सकणु छौं।  मि  भागणु छौं
सासु -तुम कन भागिक जैल्या ? जन बाघ गौड़ि  पैथर भागद या जन गौड़ि बाघ से बचणो बान भागदि  ?
जवैं -जन एक जवैं विकल्पमुखी सासु से जान छुड़ै भागदु। 
सासु - ए जवैं !  तुम त इन भागी गेवां जन बुल्यां चिमल्ठुं पेथण फुचि गे हों धौं।  जांद जांद इन बतैक जावो कि विकल्पमुखी सासु आकार  मा कान होंदी -लम्बी कि नाटि या मध्यम उंचाई की ?

Copyright@ Bhishma Kukreti  17 /9/2013



[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य;सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...]  

No comments:

Post a Comment

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments