History of Amaranth (Amarathus virdi and A.caudetus) in Uttarakhand context
उत्तराखंड परिपेक्ष में अनाजों का इतिहास - History of Cereals Agriculture and food in Uttarakhand
उत्तराखंड में कृषि व खान -पान -भोजन का इतिहास --24
History of Gastronomy, food, recipes in Uttarakhand 24
मर्सू /चौली /केदारी चूहा या चुवा /रामदाना /राजगिरा उत्तराखंड का एक महत्वपूर्ण अनाज व साग माना जाता था व कहीं कहीं आज भी मर्सू /चौली /केदारी चूहा या चुवा /रामदाना एक महत्वपूर्ण अनाज है जैसे पांडूकेश्वर जैसे क्षेत्र।
उत्तराखंड में मर्सू /चौली /केदारी चूहा या चुवा /रामदाना शायद सबसे आधुनिक अपनाया अनाजों में से एक अनाज है।
मर्सू /चौली /केदारी चूहा या चुवा /रामदाना खेती का आरम्भ मध्य अमेरिका में 6000 साल पहले हो चुका था। मर्सू /चौली /केदारी चूहा या चुवा /रामदाना मध्य अमेरिका में एक धार्मिक अनाज भी था। जब स्पेनी मध्य अमेरिका पंहुचे और उन्होंने मध्य लोगों पर जोर जबरदस्ती कर मर्सू /चौली /केदारी चूहा या चुवा /रामदाना खेती बंद करवा दी।
उत्तराखंड में मर्सू /चौली /केदारी चूहा या चुवा /रामदाना शायद सबसे आधुनिक अपनाया अनाजों में से एक अनाज है।
मर्सू /चौली /केदारी चूहा या चुवा /रामदाना खेती का आरम्भ मध्य अमेरिका में 6000 साल पहले हो चुका था। मर्सू /चौली /केदारी चूहा या चुवा /रामदाना मध्य अमेरिका में एक धार्मिक अनाज भी था। जब स्पेनी मध्य अमेरिका पंहुचे और उन्होंने मध्य लोगों पर जोर जबरदस्ती कर मर्सू /चौली /केदारी चूहा या चुवा /रामदाना खेती बंद करवा दी।
सोलहवीं सदी में मर्सू /चौली /केदारी चूहा या चुवा /रामदाना यूरोप पंहुचा। ब्रिटिश राजा के उद्यान में मर्सू /चौली /केदारी चूहा या चुवा /रामदाना फूल के रूप सन 1595 में उगाने के रिकॉर्ड मिलते हैं।
जहां एसिया का प्रश्न है मर्सू /चौली /केदारी चूहा या चुवा /रामदाना आदि देशों में अठारवीं सदी अंत में ही पंहुचा होगा। नेपाल व उत्तराखंड में उन्नीसवीं सदी के मध्य या अंत में ही मर्सू /चौली /केदारी चूहा या चुवा /रामदाना का प्रचलन शुरू हुआ ।
ऐसा लगता है कि मर्सू /चौली /केदारी चूहा या चुवा /रामदाना के गढ़वाल प्रवेश में तिब्बत या मरछ्या कौम का कुछ ना कुछ हाथ है तभी गढ़वाली में मरसू /मार्सू बोला जाता है (छ शब्द से स शब्द बदला होगा , छ। ख और स में भेद भी नही पाया जाता था ) याने कि वह अनाज जिसे मार्छ्या /मर्छ्या उगाते हैं।
मर्सू /चौली /केदारी चूहा या चुवा /रामदाना /राजगिरा उगाने के लिए कोई अधिक ताम -झाम करना नही पड़ता है अत: मर्सू /चौली /केदारी चूहा या चुवा /रामदाना /राजगिरा के प्रवेश करते ही उत्तराखंड में इसकी खेती प्रसिद्ध हो गयी हो गयी होगी ।
मर्सू /चौली /केदारी चूहा या चुवा /रामदाना /राजगिरा उगाने के लिए कोई अधिक ताम -झाम करना नही पड़ता है अत: मर्सू /चौली /केदारी चूहा या चुवा /रामदाना /राजगिरा के प्रवेश करते ही उत्तराखंड में इसकी खेती प्रसिद्ध हो गयी हो गयी होगी ।
स्वतन्त्रता से पहले गढ़वाल के लोग मर्सू दुगड्डा (ढाकर ) जाते थे और बदले में दुकानदार से लूण -गुड लेते थे.
Copyright @ Bhishma Kukreti 28/9/2013
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