History of Gastronomy in Uttarakhand -6
उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास --6
आलेख : भीष्म कुकरेती
उत्तराखंड के परिपेक्ष्य में जौ की खेती का भारत में इतिहास
इतिहासकार मानते हैं कि जौ का जन्म भारत में नही हुआ बल्कि मेसोपोटामिया जौ का मूल स्थान है। हड्डपा संस्कृति काल में भारत में जौ का प्रयोग हो चुका था। वैदिक काल में जौ देव पूजा में भी काम आने लगा था।
मेहरगढ़ में जौ की खेती के सात से छह आठ हजार साल पहले के अवशेस मिले हैं। इसी काल में इरान में भी जौ की खेती के अवशेस मिले हैं अत: सकता है कि भारत में जौ और गेंहू की खेती छ से सात हजार साल पहले शुरू हो चुकी थी।
गुजरात में ग्रामीण सहकारी स्तर पर जौ , गेंहू आदि की खेती के चार हजार साल पहले के प्रमाण मिले हैं।
चूँकि संस्कृति प्रसार भी गति पूर्वक होता था तो कह सकते हैं कि महाभारत काल (1400 BC )भारत में जौ की खेती होती थी ।
महाभारत काल में उत्तराखंड में भी की उसी भांति होती थी जैसे अन्य क्षेत्रों में होती थी।
गेंहू की खेती का उत्तराखंड के परिपेक्ष्य में भारत में इतिहास
महाभारत काल में उत्तराखंड में भी की उसी भांति होती थी जैसे अन्य क्षेत्रों में होती थी।
गेंहू की खेती का उत्तराखंड के परिपेक्ष्य में भारत में इतिहास
गेंहू का मूल भी भारत में बल्कि भूमध्य सागरीय क्षेत्र है।
ऋग्वेद या यजुर्वेद में गोधुम; शब्द नही मिलता है।
गोधुम ; का वर्णन यजुर्वेद संहिता और ब्राह्मण में अवश्य मिलता है।
इतिहासकार चमन लाल के अनुसार रंगपुर और प्रभास सोमनाथ (गुजरात ) में पूर्व हडप्पा संस्कृति में जंगली गेंहू होने के सूत्र मिले हैं।
पांच हजार साल पहले गेंहू का प्रयोग शुरू हुआ था। उस समय के गेंहू से भूसे को निकालना सरल नही था. केवल भूनकर ही भूसे को दाने से अलग किया जाता था.
महाभारत के समय गेंहू की खेती होनी शुरू हो गयी थी।
कोदा /मंडुये की खेती का उत्तराखंड के परिपेक्ष्य में भारत में इतिहास
कोदा (मंडुआ ) का जन्म पूर्वी अफ्रीका में भी मना जाता है। और कुछ इतिहासकार हिमालय की पहाड़ियों में भी मंडुआ का जन्म मानते हैं। जहां तक Elusine coracana का संबंध है इसका जन्म पूर्वी अफ्रिका में माना जाता है। Paspalum scrobiculatum (Koda Millet ) का जन्म स्थल हिमालय को माना जाता है. दक्षिण के कर्नाटक क्षेत्र को भी रागी (फिंगर मिलेट ) का जन्म स्थल माना जाता है या कहें तो रागी की कृषि कर्नाटक में प्राचीन काल से होती थी।
इसमें संदेह नही कि महाभारत काल में कोदा उत्तराखंड का महत्व पूर्ण भोजन रहा होगा
झंगोरा की खेती का उत्तराखंड के परिपेक्ष्य में भारत में इतिहास
झंगोरा या सवैया मिलेट भारत में में प्राचीन काल में पाया गया है। झंगोरा का जन्म स्थान भारतीय प्राय द्वीप माना गया है। यह मान लेने में कोई हर्ज नही कि महाभारत काल में उत्तराखंड में झंगोरा का प्रयोग हो चुका था।
जंगली कौणी का कृषि करण भारत में ही हुआ और यह निश्चित है कि महाभारत काल में उत्तराखंड में कौणी की खेती होती थी।
भांग की खेती का उत्तराखंड के परिपेक्ष्य में भारत में इतिहास
भांग का जन्म मध्य एसिया बताया जाता है और तत्पश्चात सभी क्षेत्रों में फैली . चीन में आठ हजार साल पहले भाग के बीजों से तेल निकाला जाता था। इतिहासकार कहते हैं कि भांग की खेती से ही कृषि का प्रारम्भ हुआ। चीन की प्राचीन वैदिकी और भारत की प्राचीन वैदिकी में भांग का उल्लेख मिलता है। अत : यह माना जा सकता है कि महाभारत काल में भांग का उपयोग उत्तराखंड में रेशों , नशे व तेल के लिए होता था।
सिल्ल बट्ट से पिसाई होती थी
छ हजार साल पहले मानव गेंहू आदि पीसने की कला जान चुका था।
ऐसा लगता है कि महाभारत काल में अनाजों की पिसाई सिल्ल बट्ट से होती रही होगी। चक्की का प्रयोग चिन्ह हरप्पा संस्कृति में मिलते हैं तो हो सकता है कि महाभारत काल में चक्की भी उत्तराखंड मी आ चुकी होगी
Reference-
Dr. Shiv Prasad Dabral, Uttarakhand ka Itihas 1- 9 Parts
Dr K.K Nautiyal et all , Agriculture in Garhwal Himalayas in History of Agriculture in India page-159-170
Dr. Shiv Prasad Dabral, Uttarakhand ka Itihas 1- 9 Parts
Dr K.K Nautiyal et all , Agriculture in Garhwal Himalayas in History of Agriculture in India page-159-170
B.K G Rao, Development of Technologies During the Iron Age in South India
V.D Mishra , 2006, Prelude Agriculture in North-Central India (Pragdhara ank 18)Anup Mishra , Agriculture in Chalolithic Age in North-Central India
Mahabharata
All Vedas
Inquiry into the conditions of lower classes of population
Lallan Ji Gopal (Editor), 2008, History of Agriculture in India -1200AD
K.K Nautiyal History of Agriculture in Garhwal , an article in History of Agriculture in India -1200AD
Steven A .Webber and Dorien Q. Fuller, 2006, Millets and Their Role in Early Agriculture. paper Presented in 'First Farmers in Global Prospective' , Lucknow
Copyright @ Bhishma Kukreti 76/9/2013
Notes on History of Gastronomy in Uttarakhand; History of Gastronomy in Pithoragarh Uttarakhand; History of Gastronomy in Doti Uttarakhand; History of Gastronomy in Dwarhat, Uttarakhand; History of Gastronomy in Pithoragarh Uttarakhand; History of Gastronomy in Champawat Uttarakhand; History of Gastronomy in Nainital Uttarakhand;History of Gastronomy in Almora, Uttarakhand; History of Gastronomy in Bageshwar Uttarakhand; History of Gastronomy in Udham Singh Nagar Uttarakhand;History of Gastronomy in Chamoli Garhwal Uttarakhand; History of Gastronomy in Rudraprayag, Garhwal Uttarakhand; History of Gastronomy in Pauri Garhwal, Uttarakhand;History of Gastronomy in Dehradun Uttarakhand; History of Gastronomy in Tehri Garhwal Uttarakhand; History of Gastronomy in Uttarakhand Uttarakhand; History of Gastronomy in Haridwar Uttarakhand;
( उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; पिथोरागढ़ , कुमाऊं उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; कुमाऊं उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ;चम्पावत कुमाऊं उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; बागेश्वर कुमाऊं उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; नैनीताल कुमाऊं उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ;उधम सिंह नगर कुमाऊं उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ;अल्मोड़ा कुमाऊं उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; हरिद्वार , उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ;पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ;चमोली गढ़वाल उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; रुद्रप्रयाग गढ़वाल उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; देहरादून गढ़वाल उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; उत्तरकाशी गढ़वाल उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; हिमालय में कृषि व भोजन का इतिहास ; उत्तर भारत में कृषि व भोजन का इतिहास ; उत्तराखंड , दक्षिण एसिया में कृषि व भोजन का इतिहास लेखमाला श्रृंखला )
No comments:
Post a Comment
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments